By मानसी जोशी
उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी 2021 को आई आपदा को आज 13 दिन से ज्यादा हो चुके है । इसके बाद ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट का क्षतिग्रस्त बाँध और तपोवन की क्षतिग्रस्त सुरंग खुद ही अपनी गाथा लोगों तक पहुँचा रहा है। इस बाँध और सुरंग को देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता है की वो आपदा कितनी भयावह रही होगी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार आपदा के बाद तपोवन सुरंग और ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट में काम कर रहे लगभग 150 से ज्यादा लोग अभी भी लापता है। जबकी 61 मृतकों के शव अभी बरामद कर लिए गए है। इनमे से कुछ शव टनल के मलबे में से निकाले गए और कुछ शव पानी के बहाव में बहकर आस पास के इलाको में जा पहुँचे थे जिन्हे वहाँ से बरामद किया गया। इससे भी ज्यादा विचलित एवं दयनीय दृश्य भी नज़र आया जब आपदा के बाद चमोली के कुछ गाँवो में मानव अंग भी बरामद हुए। अभी तक 25 मानव अंग बरामद कर लिए गए हैं। रेस्क्यू के दौरान 12 मजदूरों को टनल में से सुरक्षित निकला गया था, पर अब टनल के अंदर फंसे लोगो के जीवित होने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही है।
आज आपदा के 13 दिन बाद भी तपोवन सुरंग से मलबा पूरी तरह से साफ़ नहीं हो पाया है। बचाव एवं राहत कार्य तो अभी भी जारी है लेकिन अब राहत कार्य सिर्फ दिन में ही हो रहा है । खबरों की मानें तो एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार बचाव कार्य में जुटी हुई है। परन्तु एक कथन तो आप सबने सुना ही होगा की कभी कभी जो दिखता है वो होता नहीं है। ऐसा ही कुछ तपोवन में देखने को मिल रहा है । रैणी गाँव, वह गाँव है जो इस आपदा का प्रत्यक्ष प्रमाण है, और सबसे करीब से इस गाँव ने इस आपदा को देखा है। इसी गाँव के निवासियों का कहना है की शुरुआत में 3 दिनों में जो फुर्ती राहत और बचाव कार्य में दिखी थी, अब वो फुर्ती देखने को नहीं मिल रही है। राहत एवं बचाव कार्य अब तेज़ी से नहीं हो रहा है और ना ही इसमें अब कोई गंभीरता दिखाई दे रही है।
इस आपदा के बाद ना सिर्फ सुरंग में काम कर रहे कर्मी ही लापता हुए बल्कि रैणी गाँव के भी कई लोग लापता हो गए जिनका पता अभी तक नहीं चल पाया है। रैणी गाँव से लापता लोगों में शामिल है अमृता देवी, जो की आपदा के दिन से ही लापता है। अमृता देवी के पोते सूरज राणा का कहना है की उनकी दादी 7 फरवरी यानी आपदा वाले दिन अपने खेतों में काम करने गयी थी। उनका खेत ऋषिगंगा नदी के पास था और आपदा के बाद उनका कुछ भी पता नहीं चल पाया है। सूरज राणा का कहना है “एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें बचाव कार्य में तो लगी हुई है लेकिन उनके कार्य में कोई गंभीरता नज़र नहीं आ रही है। ये टीमें लापता लोगों को ढूढ़ने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। यदि कोई डीएम या फिर अन्य सरकारी अधिकारी मामले के निरीक्षण के लिए आते हैं तो बस तस्वीरें खिचाई जाती हैं।”
सूरज राणा का कहना यह भी है की ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट जब चल रहा था उस दौरान कुंदन केयर ग्रुप ने प्रोजेक्ट के आस पास के इलाकों में भारी ब्लास्ट किये थे जिसके कारण पहाड़ो में दरारे पढ़ गयी। यदि गर्मियों में अब कोई ग्लेशियर पिघलने जैसी या बाढ़ आने जैसी घटना होती है तो इससे रैणी गाँव को काफी नुक्सान पहुँच सकता है। या फिर गाँव का कुछ हिस्सा टूट कर नदी में भी समा सकता है । सूरज यह भी कहते है की गाँव वालों के कई बार इस प्रोजेक्ट के खिलाफ आवाज़ उठाने के बावजूद भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली और आज उन्हें यह सब कुछ झेलना पढ़ रहा है।
रैणी गाँव के ही एक और निवासी जिनका नाम यशपाल राणा है वो भी इस आपदा में लापता हो गए। उनके भाई राजपाल राणा का कहना है की आपदा वाले दिन यशपाल घाटी में नदी के किनारे बकरी चराने गए थे उसके बाद उनका कुछ भी पता नहीं चल पाया है। यशपाल सिंह की शादी करीब 1.5 साल पहले ही हुई थी। उनकी पत्नी का नाम पुष्पा देवी है। उनका एक 3 माह का बेटा भी है । यशपाल राणा के लापता हो जाने के बाद उनके परिवार और उनकी पत्नी का रो रो कर बुरा हाल है।
यशपाल राणा के भाई राजपाल राणा कहते है की “प्रसाशन उम्मीदों के अनुसार बिलकुल कार्य नहीं कर रहा है। राहत कार्य के लिए अभी तक सिर्फ जेसीबी, बुलडोज़र और पोकलैन जैसी मशीनों का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकी इस आपदा में कई लोग फंसे है तो आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए लेकिन आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। ना ही कार्य में पहले जैसी गंभीरता है।”
राजपाल राणा यह भी कहते है की है सरकार ने लापता लोगों की गिनती ठीक तरह से नहीं की है। अभी भी आंकड़े गलत है, तपोवन प्रोजेक्ट और ऋषिगंगा प्रोजेक्ट आपदा के बाद लगभग नष्ट हो गया। लोगों का कहना है की उसमे काम कर रहे लोगों की गिनती और लापता लोगों की गिनती ना ही सरकार ने ठीक से करी है और ना ही ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को चला रही कंपनी इन आंकड़ों ठीक से बता रही है।
रणजीत सिंह नाम के 27 वर्षीया व्यक्ति भी इस आपदा में लापता हो गए। उनके भाई बलवंत सिंह ने बताया की रणजीत सिंह ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट में कर्मी थे। उनके लापता हो जाने के बाद बलवंत सिंह ने जोशीमठ थाने में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई। जिसके बाद अभी तक उनका कुछ पता नहीं चल पाया है। उनका कहना यह भी है की ऋषिगंगा प्रोजेक्ट के बाँध के पास अभी तक कोई मशीन नहीं पहुँची है जिससे बचाव कार्य शुरू किया जा सके। बचाव कार्य को लेकर तपोवन प्रोजेक्ट के पास ग्रामीणों और बचाव दलों के बीच में बहस भी हुई थी। जिसमे गाँव वालो का कहना था की बचाव कार्य गंभीरता से नहीं किया जा रहा है।
रैणी गाँव से जाने वाली रोड बॉर्डर रोड है जो की जाकर चीन बॉर्डर पर मिलती है। आपदा के बाद हाईवे से रैणी गाँव को जोड़ने वाला एक पुल भी क्षतिग्रस्त हो चूका था। जिसके कारण रैणी गाँव और अन्य 12 से 13 गावों तक पहुँचने का रास्ता पूरी तरह से बंद हो गया। बीआरओ की टीम जो की बचाव कार्य के लिए रैणी पहुँची थी अब वो पुल के निर्माण में जुट गयी है। इस पुल के टूटने के कारण आने वाले कुछ दिनों में उन गाँव वालों को परेशानी का सामना करना पढ़ सकता है जो हाईवे से अलग हो गए है। राशन की कमी हो सकती है, साधनो की भी कमी हो सकती है। आपदा के बाद सरकार ने इन गाँवो में राशन भी पहुँचाया । प्रशासन का कहना है हमने ग्रामीणों को राशन मुहैया करवाया है। लेकिन राशन के नाम पर उन तक बस 5 किलो चांवल , 5 किलो आटा, 1 लीटर तेल , 1 किलो चीनी , 1 किलो दाल, नमक एवं अन्य मसाले ही पहुँचे। ज़ाहिर सी बात है की इतने कम राशन में किसी भी परिवार का गुज़ारा लम्बे समय तक नहीं हो सकता। यदि किसी का परिवार बड़ा हो तब तो ये बात असंभव ही है। हाईवे से संपर्क टूटने के बाद उन गाँवों में ये सरकार की राशन को लेकर पहली और आंखरी मदद थी। 7 फरवरी से अभी तक पुल का निर्माण भी नहीं हुआ ना ही अस्थायी तौर पर यहाँ कोई पुल बनाया गया। इन गाँवो में गाड़ियों की आवाजाही पूरी तरह से बंद हो चुकी है । जिसके कारण आने वाले कुछ दिनों में उन्हें किसी भी प्रकार के संकट का सामना भी करना पड़ सकता है।
रैणी गाँव के युवको ने बताया की, बचाव कार्य के दौरान रैणी गाँव के ही कुछ युवको की एक टीम जिसका नाम युवक मंगल दल है बचाव कार्य में जुटे लोगों को खाना और पानी पहुँचा रहे है। यह दल शुरूआती दौर से ही रैणी गाँव में होने वाली समस्याएं जैसे बिजली के संकट या पानी के संकट के खिलाफ लड़ता आया है। इस दल के पास अनेक एनजीओ से राशन और ईंधन पहुँचता है। जरूरत पढ़ने पर ये दल खुद ही गाँव वालो से पैसे जमा करके राशन ले आता है। इस संकट के बीच में रैणी गाँव के युवको का कार्य बहुत सराहनीय है।
अभी भी कई लोग अपने लापता परिजनों को ढूंढ़ने या फिर मदद की गुहार करने इन प्रोजेक्ट्स के पास आते है लेकिन बचाव कार्य में ढीलापन आने के कारण उनकी उम्मीदें अब गिरती ही नज़र आ रही है। जो लोग अपने परिजनों को ढूंढने आते हैं प्रसाशन उन्हें घटना स्थल पर आने भी नहीं देता। ग्रामीणों का कहना है की ऋषिगंगा प्रोजेक्ट और तपोवन प्रोजेक्ट दोनों में मिलाकर लगभग 400 से ज्यादा कर्मी काम कर रहे थे लेकिन सरकारी आंकड़े इसके आधे भी नहीं हैं।
तपोवन प्रोजेक्ट में तो फिर भी बचाव कार्य चल रहा है, लेकिन ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट की कंपनी ने प्रोजेक्ट के टरबाइन के आस पास बचाव कार्य करने से साफ़ मना कर दिया। उस टरबाइन और प्रोजेक्ट के पास कई कर्मियों के दबे होने की आशंका है। बावजूद इसके कंपनी अपने टरबाइन के पास खुदाई नहीं करने देना चाहती। कंपनी का ये बर्ताव एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है की आखिरकार ऐसा क्या है की उन्होंने बाँध और प्रोजेक्ट के पास खुदाई करने से मना कर दिया?
आज हम इक्कीसवी सदी में प्रवेश कर चुके हैं। आज हम सभी साधनो से परिपूर्ण हैं। इसके बावजूद भी इतनी बड़ी आपदा आने के बाद बचाव कार्य में जो फुर्ती नज़र आनी चाहिए थी वो नज़र नहीं आ रही । लोगों का कहना है की सरकार इस घटना को लगता है गम्भीरता से नहीं ले रही है।
** मानसी जोशी ने पत्रकारिता में ग्रेजुएशन कर चुकी है बनस्थली कॉलेज राजस्थान से, अभी वर्तमान में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं।