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उत्तराखण्ड: अब शिक्षक पुरस्कारों में भी भ्रष्टाचार

उत्तराखण्ड: अब शिक्षक पुरस्कारों में भी भ्रष्टाचार

राज्य में अब शिक्षक पुरस्कारों में भी भ्रष्टाचार होने लगा है

उत्तराखण्ड में भ्रष्टाचार इस तरह कुंडली मार चुका है अब यहां पुरस्कारों के वितरण में भी गड़बड़झाला होने लगा है। गड़बड़झाला भी उन पुरस्कारों में हो रहा है जो जाने-माने साहित्यकारों के नाम पर शिक्षकों को दिए जाते हैं। पौड़ी जिले में एक ऐसा ही मामला सामने आया है जिसमें पुरस्कार के लिए पात्र शिक्षक का हक मारकर चहेते को पुरस्कृत किया जाना सुर्खियों में है।

बताया जाता है कि माध्यमिक स्तर पर पुरस्कार के लिए गठित चयन समिति ने जिस शिक्षक को सर्वोच्च अंक देकर प्रथम वरीयता में रखा था पुरस्कार के लिए उसके बजाए दूसरी वरीयता में शामिल शिक्षक को चयनित कर लिया गया। मामला अब तूल पकड़ने लगा तो विभागीय अधिकारी भी कुछ कहने से बच रहे हैं।

पुरस्कार के असली हकदार थे शिक्षक केशर सिंह

सरकार की ओर से शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले शिक्षकों को ‘शैलेश मटियानी पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाता है। पौड़ी जनपद में भी वर्ष 2017 के लिए शिक्षा विभाग की ओर से अगस्त 2018 को जनपद स्तरीय बैठक बुलाई गई। बैठक मुख्य शिक्षा अधिकारी की अध्यक्षता में आयोजित हुई। जिसमें प्राचार्य डायट प्रतिनिधि के अलावा जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक और प्रारंभिक शिक्षा बतौर सदस्य शामिल रहे।

बताया गया कि चयन समिति ने बैठक में शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार वर्ष 2017 के लिए निरीक्षण और मूल्यांकन करने पर माध्यमिक स्तर पर पौड़ी के जीआईसी उज्याड़ी में सेवारत शिक्षक केशर सिंह असवाल के कार्यों को देखते हुए सर्वोच्च अंक देकर उन्हें प्रथम वरीयता में रखा। चयन समिति ने केशर सिंह असवाल को 75, जबकि दूसरे स्थान पर आए शिक्षक को 60 अंक दिए गए।

केशर सिंह असवाल को सर्वोच्च अंक देकर चयन समिति ने इसकी रिपोर्ट अपर शिक्षा निदेशक माध्यमिक शिक्षा को भी भेजी। अब निदेशालय से पौड़ी जिले से माध्यमिक स्तर पर शैलेश मटियानी पुरस्कार के लिए जो नाम चयनित किया गया है, उसमें शिक्षक केशर सिंह असवाल का नाम ही गायब है। शिक्षा जैसे विभाग और उसमें भी शैलेश मटियानी जैसे पुरस्कार के लिए हुए इस गड़बड़झाले और अंकों में हुए हेर-फेर पर अब सवाल भी उठने शुरू हो गए हैं।

वहीं अधिकारी इस मामले में ज्यादा कुछ बोलने से बच रहें हैं। उनका कहना है कि निदेशालय देहरादून से ही पुरस्कार के लिए शिक्षकों का अंतिम चयन किया जाता है। जिले के अधिकारी कुछ भी कहें, लेकिन शिक्षकों के चयन में हुए अंकों के हेर-फेर को लेकर विभाग की साख पर भी सवाल उठने लगे हैं।

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