भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के कुछ ऐसे महान सपूत हैं जो हमेशा लोगों के दिलों में याद रहेंगे इनमे से एक है महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल जो काकोरी काण्ड के महानायक थे, आज उनकी जयंती है। बिस्मिल सिर्फ क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि वह एक बहुआयामी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। वह शायर, कवि, अनुवादक और साहित्यकार भी थे। राम प्रसाद किशोरावस्था में आर्यसमाज के संपर्क में आ गए थे। उनका एकमात्र उद्देश्य पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करना था।
उन्होंने गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया लेकिन चौरी-चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी के आंदोलन वापस लेने से वे बहुत निराश भी हुए। उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) पार्टी की स्थापना करके उसका मुख्यालय बनारस में बनाया। अपने दल के लिए हथियार खरीदने का कार्य बिस्मिल का था। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, सचिंद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मन्मथनाथ गुप्त, मुरारी लाल गुप्ता, मुकुन्दी लाल गुप्ता और बनवारी लाल आदि ने मिलकर 9 अगस्त 1925 को ऐतिहासिक काकोरी कांड को अंजाम दिया गया, जिसका मूल उद्देश्य संगठन के लिए पैसों का बंदोबस्त करना था।
स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उनके पिता मुरलीधर एक रामभक्त थे, इसी कारण उन्होंने अपने बेटे का नाम रामप्रसाद रख दिया था। पूरा देश उन्हें बड़ी शिद्दत से याद करता है। गोरखपुर के लिए तो बिस्मिल एक अलग ही पहचान हैं। अपने जीवन के आखिरी चार महीने और दस दिन उन्होंने यहां की जिला जेल में बिताए थे।
यह वक्त उनके आध्यात्मिक सफर का भी अंतिम पड़ाव था। फांसी के तीन दिन पहले ही उन्होंने अपनी आत्मकथा का आखिरी अध्याय पूरा किया था।19 दिसंबर 1927 की सुबह गोरखपुर जिला जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। वह हँसते-हँसते फांसी के फंदे पर चढ़े थे। इस संबंध में उनकी एक बहुत ही लोकप्रिय रचना है:-सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है……..