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दलालों और मुनाफाखोरों की नजर वर्षों पुराने औद्योगिक क्षेत्र पर इस कदर पड़ी कि उद्योग सिमटने लगे और उनकी जगह व्यावसायिक गतिविधियां शुरू हो गई। इस मामले में पहले यूपीएसआईडीसी और फिर सिडकुल की लापरवाही के चलते 1973 में स्थापित औद्योगिक क्षेत्र आज व्यावसायिक नगर में तब्दील हो चुका है

 

सन् 1973 से हिलबाईपास मार्ग पर स्थापित हरिद्वार जनपद का सबसे पुराना औद्योगिक क्षेत्र इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। धीरे-धीरे इस औद्योगिक क्षेत्र का अस्तित्व ही समाप्ति की ओर जाता दिखाई पड़ रहा है। कुछ बड़े मुनाफाखोरों और दलालों की नजर इन दिनों इस औद्योगिक क्षेत्र पर गड़ी हुई है जिसके चलते यहां की औद्योगिक इकाइयों को धीरे-धीरे बंद कराकर यहां व्यावसायिक गतिविधियां शुरू की जा रही हैं, क्योंकि शहर के व्यस्ततम इलाके रानीपुर मोड़ और हर की पैड़ी क्षेत्र से यह सीधा मिला हुआ है। यह इलाका मुख्य शहर के नजदीक होने के कारण व्यापारिक दृष्टिकोण से अतिमहत्वपूर्ण है जिसका फायदा यहां के प्रोपर्टी डीलर और मुनाफाखोर कुछ उद्योगपतियों की जुगलबंदी से उठा रहे हैं। बड़े मुनाफे को देखते हुए यहां के कुछ उद्योगपति नेता भी दलाली के दलदल में उतरकर इसमें चार चांद लगा रहे हैं।

सत्तर के दशक में सबसे आधुनिक कहा जाने वाला यह औद्योगिक क्षेत्र आज इतनी बुरी तरह पिछड़ गया है कि कुछ लोग इसको औद्योगिक क्षेत्र ही नहीं मानते। इसके लिए सबसे ज्यादा दोषी हमारा लापरवाह प्रशासन है। अभी भी तकरीबन 171 छोटी बड़ी औद्योगिक ईकाइयां कागजों में इस क्षेत्र से संचालित की जा रही हैं, जबकि इनमें से अधिकांश शोरूम, दुकानों, रेस्टोरेंट तथा रिहायशी कॉलोनियों में तब्दील हो चुकी हैं। शुरुआती दौर में यूपीएसआईडीसी यानी उत्तर प्रदेश लघु उद्योग विकास परिषद ने इस औद्योगिक क्षेत्र को विकसित किया था। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 से यूपीएसआईडीसी ने इस क्षेत्र में अपनी अधिकारिक गतिविधियां और दखलअंदाजी विवशताओं के चलते बंद कर दी। हां, कुछ मामलों में उन्होंने औद्योगिक प्लॉट भी ट्रांसफर किए जिसमें बडे़ पैमाने पर घूसखोरी की चर्चाएं चली।


राज्य निर्माण से लेकर वर्ष 2011 तक के बीच का समय यहां मुनाफाखोरों और दलालों के लिए लाइफलाइन भी साबित हुआ। हालांकि कुछ वर्ष बाद सिडकुल अपने अस्तित्व में आ गया था, पर ढीले-ढाले रवैये के चलते यूपीएसआईडीसी ने सिडकुल को इस क्षेत्र का अधिकार नहीं दिया। हालांकि आखिरकार वर्ष 2011 में सिडकुल प्रशासन को यहां की पूरी जिम्मेदारी तो मिली, पर तब तक यहां पनपे मुनाफाखोर और दलाल इतने ढीठ हो चुके थे कि उन्होंने सिडकुल के आदेशों को मानने से ही इंकार कर दिया। दस सालों तक मिली खुली छूट में कई औद्योगिक प्लॉटों को शोरूम, आवासीय प्लॉट, दुकानों की शक्ल दे दी गई। रास्तों और नालों पर अपनी मर्जी के अनुसार कब्जा कर लिया गया। कई जगह तो बरसाती नालों को कब्जाकर वहां निर्माण कर लिया गया इस तरह के कब्जे होना अब भी बदस्तूर जारी है। जिसमें सिडकुल के अधिकारियों की मिलीभगत के भी प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि अधिग्रहण के बाद भी सिडकुल के प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही या मिलीभगत कह सकते हैं। यहां औद्योगिक इकाइयां अपने पतन की ओर तथा व्यापारिक प्रतिष्ठान बड़े जोर-शोर से संचालित किए जा रहे हैं।

इस औद्योगिक क्षेत्र में कितने बड़े पैमाने पर नियमों को तोड़कर अपनी मनमर्जी चलाई जा रही है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें आरटीआई में प्राप्त दस्तावेजों के सामने आने पर पता चला। 10 नवंबर 2006 को यानी राज्य गठन के पांच साल बाद जब तक इस क्षेत्र पर यूपीएसआईडीसी का अधिकार था। उस समय ई-5 और ई-6 नंबर के दो प्लॉट शाकुम्बरी ऑटो के नाम पर दिए गए। इनमें से एक प्लॉट का क्षेत्रफल 826.9 मीटर और दूसरे का 780.92 मीटर है। लीज एग्रीमेंट के अनुसार शाकुम्बरी ऑटो को यहां कोई उत्पादन ईकाई स्थापित करनी थी, पर यहां कोई औद्योगिक ईकाई नहीं, बल्कि हरिद्वार का सबसे प्रसिद्ध मारूति सुजुकी कंपनी का आलीशान शोरूम खोला गया जहां हर रोज दर्जनों गाड़ियां बेची जाती हैं। दर्जनां गाड़ियों की सर्विस की जाती हैं। नियमानुसार औद्योगिक क्षेत्र में किसी भी तरह की व्यवसायिक गतिविधि पर प्रतिबंध होता है, पर सालों से यह शोरूम धड़ल्ले से चल रहा है। यही नहीं शोरूम पर आने वाले सैकड़ों वाहन आस-पास की पूरी सड़क पर कब्जाकर लेते हैं जिस कारण अन्य वाहनों का यहां से निकलना भी मुश्किल हो जाता है।

ठीक इसी तरह 10 सितंबर 2008 को आईएस मोटर्स के नाम ई-17 नंबर का 682 मीटर क्षेत्रफल का प्लॉट उत्पादन ईकाई के नाम पर दिया गया इसमें भी एग्रीमेंट के अनुसार कोई प्रोडक्शन कंपनी खोली जानी थी, पर कुछ समय के बाद यहां टाटा मोटर्स के एक बडे़ शोरूम की ओपनिंग हुई और आज यहां भी प्रतिदिन दर्जनों चार पहिया वाहन सेल किए जाते हैं। ठीक इसी प्रकार 734 मीटर क्षेत्रफल का प्लॉट नंबर ई-37 किसी आशीष मित्तल को 26 दिसंबर 2014 को प्रोडक्शन ईकाई के लिए दिया गया था, पर यहां हीरो मोटरसाइकिल का सर्विस सेंटर बना दिया गया।

प्रोडक्शन यूनिटों के नाम पर औद्योगिक क्षेत्र में नामचीन पब्लिक स्कूल तक खुल गए हैं। दून कैम्ब्रिज, विजकिड इंटरनेशनल जैसे उच्चस्तरीय पब्लिक स्कूल इसका उदाहरण हैं। हद तो उस वक्त हो गई जब हाल ही में मिठाई बनाने की अनुमति लेकर यहां एक आलीशान रेस्टोरेंट और बैंकट हॉल भी खुलवा दिया गया। खबर यह भी मिली है कि इन दिनों हीरो सर्विस सेंटर के पास ही एक विशाल निर्माण कराया जा रहा है। चर्चा है कि यहां एक बड़ा होटल बनाया जा रहा है। कुल मिलाकर देखा जाए तो ऐसा लगता है जैसे सिडकुल अधिकारियों ने अपने आंख और कान पूरी तरह बंद कर लिए हैं या फिर वो मेज के नीचे की व्यवस्था के इतने आदी हो चुके हैं कि उन्हें यह बाजार बनता औद्योगिक क्षेत्र दिखाई नहीं पड़़ता।

यहां कोई व्यावसायिक प्रतिष्ठान है ही नहीं। यदि मारुति सुजुकी और टाटा के शोरूम गाड़ियां बेचते हैं तो उनकी सर्विस भी करते हैं। इस तरीके से वह व्यापारिक प्रतिष्ठान हैं ही नहीं और अगर मिठाई बनेगी तो वह बिकेगी। इस तरीके से कोई रेस्टोरेंट भी व्यापारिक प्रतिष्ठान नहीं हैं। हां, एक निर्माणाधीन होटल जरूर गलत बन रहा है।
प्रभात कुमार, अध्यक्ष इंडस्ट्रीयल एरिया एसोसिएशन हरिद्वार

वैसे तो मैंने अभी 3 दिन पहले ही यहां का कार्यभार संभाला है। यदि इस औद्यौगिक क्षेत्र में अनियमितताएं हैं और उसकी शिकायत मिलती है तो शीघ्र ही जांच कराकर कार्यवाही की जाएगी
संतोष कुमार पांडे, क्षेत्रीय प्रबंधक सिडकुल हरिद्वार

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