मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के विधानसभा क्षेत्र डोईवाला में खनन माफिया हाइकोर्ट के आदेश और नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाकर खुलेआम अवैध खनन कर रहे हैं। दिन-रात चौबीसों घंटे नदियों को बेतरतीब ढंग से छलनी किया जा रहा है। स्थानीय लोग और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ता चिंतित हैं कि माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है जिससे वे किसी की परवाह नहीं करते। मुख्यमंत्री के एक ओएसडी माफियाओं पर मेहरबान बताए जा रहे हैं
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रदेश में बेनामी संपत्ति पर शिकंजा कसने का कानून लागू कराने में जुटे हैं, तो उनकी वाहवाही होनी स्वाभाविक है। आखिर इस कानून को लागू कराने की हिम्मत दिखाने वाले वे पहले मुख्यमंत्री हैं। लेकिन दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र डोईवाला में खुलेआम हो रहे अवैध खनन को लेकर भी सवालों से घिरते जा रहे हैं। देहरादून जिले की तीन मुख्य नदियां-सौंग, जाखन और सुसवा में खनन माफियाओं की पौ बारह है। खनन माफियाओं ने सबसे ज्यादा शिकार सौंग नदी को बनाया है। नदी में दिन हो या रात 24 घंटे अवैध खनन की खुली लूट मची हुई है। यह स्थिति तब है जबकि सौंग नदी का एक हिस्सा पिछले 11 साल से खनन के लिए प्रतिबंधित है। दूसरे हिस्से में भी खनन की अवधि 30 जून को समाप्त हो चुकी है। इसके बाद भी टेक्टर -ट्रालियों से आरबीएम जमकर लूटा जा रहा है। विधानसभा क्षेत्र डोईवाला में सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि यहां माननीय हाईकोर्ट के आदेशों का भी कोई पालन नहीं हो रहा है।
नैनीताल हाईकोर्ट ने नदी में अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए दो बार आदेश दिए हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि सरकार इन आदेशें का पालन कराने के बजाय अपनी ही पार्टी के उन नेताओं के सामने सरेंडर करती नजर आ रही है, जो दिन के उजाले में समाजसेवी का आवरण ओढ़े रहते हैं, जबकि रात में खनन माफियाओं की भूमिका में होते हैं। सरकार की इस दोगली नीति से क्षेत्र के लोग आजिज आ चुके हैं। स्थानीय लोग पिछले कई महीनों से कभी प्रधानमंत्री कार्यालय, कभी मुख्यमंत्री कार्यालय तो कभी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) के दरवाजे पर दस्तक दे चुके हैं। जब उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई तो वह मजबूरन कोर्ट की शरण में गए। एक स्थानीय अधिवक्ता ने मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन पर नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका तक दायर की है।
गौरतलब है कि डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के सौंग, धर्मूचक, धनियाड़ी, कालूवाला, गूलरघाटी, रानीपोखरी, लालतप्पड़, बक्सरवाला में नदियों से खनन कराया जाता है। इन गांवों में सांग नदी के अलावा जाखन नदी और सुसवा नदी से भी खनन किया जाता है। वन विकास निगम ने नदी क्षेत्र से कुछ पट्टों के जरिये खनन की सवीकृति दी है। लेकिन खनन करने की यह समायावधि 1 अक्टूर से 30 जून तक ही थी। इसके बावजूद नदियों में अभी भी अवैध खनन जारी है। दिन में तो कहीं-कहीं अवैध खनन होता है, लेकिन रात के अंधेरे में खनन माफिया पूरी तरह सक्रिय हो जाते हैं। चर्चा है कि यह खनन माफिया कोई और नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के मुंहलगे कुछ भाजपा नेता हैं। इन नेताओं के चलते खनन माफियाओं को सरकार का खुला संरक्षण बताया जाता है। बताया यह भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का एक ओएसडी इन खनन माफियाओं की बकायदा पुलिस से सेटिंग भी कराता है। इसकी पुष्टि तब हुई जब ‘दि संडे पोस्ट’ टीम ने अवैध खनन में इस्तेमाल किये जा रहे एक ट्रेक्टर के चालक से बात की। ट्रेक्टर चालक के अनुसार वह एक हजार रुपया प्रति दिन कोतवाल (थाना डोईवाला) को देता है। इसके अलावा पंद्रह सौ रुपया चौकी इंचार्ज को दिया जाता है। सौंग नदी के अलावा जाखन और सुसवा नदी में अवैध खनन कर रहे ऐसे ट्रेक्टरों की संख्या 300 से 350 के बीच में है। चर्चा है कि ट्रेक्टर चालकों से प्रतिदिन की जा रही यह लाखां रुपये की अवैध कमाई ऊपर तक जाती है।
नदी के मुहाने पर बने हैं भंडारण
सौंग नदी के अलावा जाखन और सुसवा नदी के मुहाने पर ही आरबीएम के भंडारण बनाए हुए हैं। ट्रेक्टर चालक नदी से सीधा आरबीएम उठाकर भंडारण कर सरकार को प्रतिदिन लाखों रुपये के राजस्व का चूना लगा रहे हैं। खास बात यह है कि भंडारण ऐसे-ऐसे लोगों के नाम पर है जिनके पास खाने को दाने तक नहीं हैं। भंडारण में नाम स्थानीय व्यक्ति का होता है, जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे होते हैं, जबकि भंडारण का असली मालिक धनपति होता है। जिसका भंडारण में कोई नाम तक नहीं होता। पहली बात तो सरकार इन भंडारण पर कोई कार्यवाही नहीं करती है, अगर करती भी है तो उस गरीब व्यक्ति पर जिसके पास कुछ नहीं हाता है। ऐसा ही एक मामला ‘दि संडे पोस्ट’ टीम को धर्मूचक में मिला। यहां अंबेडकर पार्क के पास एक पंजाबी व्यक्ति ने आरबीएम का भंडारण बना रखा है, जबकि वह नाम किसी और व्यक्ति के है। श्रीराम ट्रेडर्स नामक भंडारण का यह मामला पूरे धर्मूचक में चर्चा में है। ऐसे ही कई भंडरण हैं जिनमें नाम किसी का और काम किसी और का होता है। भंडरण के अलावा नदी के किनारे ही स्क्रीनिंग प्लांट भी लगा दिए गए हैं। जिनकी सारी गंदगी नदियों में ही प्रवाहित हो रही है। गौरतलब है कि स्क्रीनिंग प्लांटों में आरबीएम की धुलाई होती है। इसके बाद इसे बेच दिया जाता है, जबकि नियमों के अनुसार ऐसा करना अपराध है।
अवैध खनन से सरकार को भारी राजस्व नुकसान हो रहा है। माफियाओं द्वारा बेतरतीब खनन से वनस्पति (पेड़-पौधों) को की नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इसको रोकने के लिए स्थानीय अधिवक्ता विरेंद्र पेगवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस जनहित याचिका पर 26 अक्टूबर 2018 को हाईकोर्ट नैनीताल ने खनन पर रोक लगा दी। इसके बाद खनन करने वाले लोगों ने हाईकोर्ट में रिव्यू पिटिशन डाली। जिसमें कहा गया कि पूर्व की भांति सौंग नदी के संरिक्षत क्षेत्र में खनन प्रतिबंधित रहेगा। लेकिन जहां उत्तराखण्ड वन विकास निगम के पट्टे हैं, वहां खनन करवाया जा सकता है। लेकिन कोर्ट ने इसमें यह शर्त रखी कि खनन वही ट्रेक्टर कर सकते हैं जिनको परिवहन विभाग में वाणिज्यिक कार्यों के लिए रजिस्टर्ड कराया जाएगा। हाईकोर्ट की ओर से यह आदेश 5 मार्च 2019 को दिया गया। इसी दौरान हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन भी किया गया। एक महीने में ही अवैध खनन कर रहे 7 ऐसे ट्रेक्टरों को पकड़ा गया जो परिवहन विभाग में बिना रजिस्ट्रेशन कराए ही संचलित किए जा रहे थे। इसके बाद ट्रेक्टर चालकों में हड़कंप मच गया। बताया जाता है कि अवैध खनन कर रहे ट्रेक्टर चालक रातों-रात देहरादून सीएम कार्यालय में पहुंचे थे। जहां मुख्यमंत्री के एक ओएसडी के समक्ष उन्होंने गुहार लगाई कि उनके ट्रेक्टर पुलिस द्वारा न पकड़े जाएं। बताया जा रहा है कि इसी दौरान सेटिंग-गेटिंग का खेल खेला गया। सीएम कार्यालय के ओएसडी के इशारे पर ट्रेक्टर चालकों को नदियों का सीना चीरने की मौखिक स्वीकृति दे दी गई। पहले जहां नदियों में कॉमर्शियल ट्रेक्टर (परिवहन विभाग में वाणिज्य रजिस्ट्रेशन करार हुए) चल रहे थे, वहीं बाद में कॉमर्शियल और नॉन कॉमर्शियल दोनों तरह के ट्रेक्टर अवैध खनन में चलने लगे। चौंकाने वाली बात यह है कि 30 जून को खनन की समयावधि समाप्त हो जाने के बावजूद अवैध खनन जोरों से जारी है। दिन और रात दोनों समय ही नदियों का सीना छलनी किया जा रहा है। ‘दि संडे पोस्ट’ टीम ने दिन और रात में अलग-अलग स्थलीय निरीक्षण किया। जिसमें ट्रेक्टरों को अवैध खनन करते हुए पाया गया। ‘दि संडे पोस्ट’ ने बकायदा इसकी वीडियोग्राफी भी की है।
‘दि संडे पोस्ट’ टीम ने देखा कि ट्रेक्टर चालकों ने नदी में जगह-जगह गड्ढे 15 से 20 फुट तक किए हुए हैं। हद तो यह है कि अधिवक्ता विरेंद्र पेगवाल की उस जनहित याचिका का भी लिहाज नहीं किया जा रहा है जिसमें हाईकोर्ट द्वारा पर्यावरण संरक्षण करने, अवैध खनन रोकने तथा पेड़ पौधों को नुकसान न पहुंचाने की सख्त हिदायतें दी गई थी। किसी भी कानून का कोई पालन नहीं किया जा रहा है। नदी से आरबीएम खोदने के लालच में पेड़ पौधों को ही जड़ से उखाड़ दिया जा रहा है। यही नहीं बल्कि नैनीताल हाईकोर्ट में सौंग नदी के जिस संरक्षित क्षेत्र को खनन के लिए प्रतिबंधित माना गया था और उससे खनन न करने की चेतावनी दी गई थी, उसको भी नहीं बख्शा गया है। खनन माफियाओं द्वारा सौंग नदी के खनन प्रतिबंधित संरक्षित एरिया में भी दिन-रात खुलेआम नदी को खोदा जा रहा है। हालत यह है कि नदी में जहां पानी बहना चाहिए था वहां ट्रेक्टर दौड़ रहे हैं। खनन प्रतिबंधित संरक्षित क्षेत्र को समाज एरिया कहते हैं। सौंग नदी का यह करीब तीन किलोमीटर का हिस्सा है। जहां बिना किसी खौफ के खुलेआम नदी का सीना चीरा जा रहा है। एक-एक ट्रेक्टर पर 7 से 10 आदमी होते हैं। अगर कोई इन्हें रोकने की या कुछ कहने की जहमत करता है, तो ये लोग उस पर हमला कर देते हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ पर भी रात के अंधेरे में हमला करने की कोशिश की गई। लेकिन स्थानीय बुद्धिजीवियों की सूझ-बूझ से यह सफल नहीं हो सका।
बात अपनी-अपनी
सुसवा नदी में रिवर ट्रेनिंग की माइनिंग चल रही है। सौंग और जाखन नदी में अगर खनन हो रहा है तो यह गलत है। हम इस पर कार्यवाही करेंगे। आप हमें अवैध खनन के फोटो भेज दीजिए।
लक्ष्मी राज चौहान, उपजिलाधिकारी डोईवाला
समाज क्षेत्र में सान्ग नदी में खनन प्रतिबंधित है। अगर वहां अवैध खनन हो रहा है तो मैं चेक कर आता हूं।
राजीव ट्टामान डीएफओ देहरादून
सौंग नदी और जाखन नदी में अवैध खनन की सूचनाएं मिलती रहती हैं। जिस पर हम छापे मारते हैं। खनन विभाग ने दो दिन पहले ही दो ट्रेक्टरों को अवैध खनन करते पकड़ा है। आप उनसे पूछ लीजिए।
सुरवीर सिंह राणा, तहसीलदार डोईवाला
नदियों में अवैध खनन की शिकायत हमें मिलती रहती है। हम मौके पर जाकर कार्यवाही करते हैं। फिलहाल तो हमारे पास फोर्स की कमी है। उनकी ड्यूटी कांवड में लगी है। हम किसी से कोई पैसा नहीं ले रहे हैं। अगर कोई पैसे की बात कर रहा है, तो उसका नाम बताइए।
राकेश गुसाईं, थानाध्यक्ष डोईवाला
सौंग नदी हमारे पास थी। लेकिन 25 मई 2019 को इसमें खनन कराने की अवधि समाप्त हो चुकी है। फिलहाल हम नदी में फिर से 10 साल के लिए खनन की स्वीकृति भारत सरकार से ले रहे हैं। उसकी प्रक्रिया जारी है। अभी नदी का इलाका वन विभाग के पास है। अवैध खनन के लिए वन विभाग से ही बात कीजिए।
शेर सिंह, जिला लॉगिंग अधिकारी वन विकास निगम
खनन माफिया नदियों से आरबीएम की लूट मचाए हुए है। सरकार की शह पर माफियाओं ने हाईकोर्ट के आदेशां को भी धता बना दिया। मुख्यमंत्री कार्यालय से अवैध खनन करने वालों को सपोर्ट मिल रहा है। फिलहाल जब तक अवैध खनन बंद नहीं होगा, हम चुप नहीं बैठेंगे।
विरेंद्र कुमार पेगवाल, अधिवक्ता एवं पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता
सौंग नदी में 20 से 30 फुट तक गहरे गड्ढे खनन माफियाओं ने बना दिए हैं। इस मामले में हमने सीएम साहब को भी अवगत कराया। लेकिन कुछ नहीं हुआ।
परमिंदर सिंह बाऊं, ग्राम प्रधान मारखम ग्रांट