महान कलाकार चार्ली चैप्लिन की स्मृतियों को आज याद करने का दिन है, जिनकी आज 130वीं जयन्ती है।
प्रतिष्ठित हिन्दी साहित्यिक पत्रिका ‘पाखी’ के द्वारा रचनाकारों के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है। ग्रुप में नैनीताल के जाने माने कवि एवं लेखक संतोष तिवारी ने एक संदेश प्रेषित किया। वो संदेश महान कलाकार चार्ली चैप्लिन के बारे में है। इस लेख के लिए हम अनुवादक परवेज़ अख़्तर के आभारी हैं। आप भी पढ़े यह शानदार अनुवाद और सलाम करें चार्ली चैपलिन को।
सलाम चार्ली चैप्लिन, सलाम अद्वितीय कलाकार !
ओ चार्ली चैप्लिन, तुम अमर हो और दुनिया रहते तुम मौजूद रहोगे हर उस कला सृजन में; जो ग़ैर-बराबरी, शोषण, अत्याचार, ज़ुल्म के ख़िलाफ़ किया जा रहा है।
महान चार्ली चैप्लिन की फ़िल्म ‘दि ग्रेट डिक्टेटर’ में उनके अंतिम भाषण का हिन्दी अनुवाद; जो न सिर्फ़ फ़िल्मकला, बल्कि विश्व साहित्य की भी अनमोल धरोहर है (मित्रो, इस अमूल्य और कालजयी रचना को एक बार पढ़ें ज़रूर) :
” जिन लोगों तक मेरी आवाज़ पहुँच रही है, मैं उनसे कहता हूँ कि – ‘निराश न हों।’
माफ़ कीजिये, मैं सम्राट बनना नहीं चाहता, यह मेरा धंधा नहीं है। मैं किसी पर हुकूमत नहीं करना चाहता, किसी को हराना नहीं चाहता। मुमकिन हो, तो हर किसी की मदद करना चाहूँगा – युवा, बूढ़े, काले और गोरे हर किसी की। हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं, इन्सान की फ़ितरत यही है। एक दूसरे के दुःख की क़ीमत पर नहीं, बल्कि हम सब एक दूसरे के साथ मिल कर ख़ुशी से रहना चाहते हैं। हम एक दूसरे से नफ़रत और घृणा नहीं करना चाहते। इस दुनिया में हर किसी के लिए गुंजाइश है और धरती इतनी अमीर है कि सबकी ज़रूरतें पूरी कर सकती है।
ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा आज़ाद और ख़ुबसूरत हो सकता है। लेकिन हम रास्ते से भटक गये हैं।
लालच ने इन्सान के ज़मीर को ज़हरीला बना दिया है, दुनिया को नफ़रत की दीवारों में जकड़ दिया है; हमें मुसीबत और ख़ुन-ख़राबे की हालत में धकेल दिया है।
हमने रफ़्तार पैदा किया, लेकिन ख़ुद को उसमें जकड़ लिया – मशीनें बेशुमार पैदावार करती है, लेकिन हम कंगाल हैं।
हमारे ज्ञान ने हमें सनकी बना दिया है, चालाकी ने कठोर और बेरहम !
हम बहुत ज्यादा सोचते और बहुत कम महसूस करते हैं – मशीनों से ज़्यादा, हमें इंसानियत की ज़रूरत है; चालाकी की बजाय, हमें नेकी और भलमनसाहत की ज़रूरत है।
इन ख़ूबियों के बिना; ज़िन्दगी, वहशी हो जायेगी और सब कुछ ख़त्म हो जाएगा !
हवाई जहाज और रेडियो ने हमें एक दूसरे के क़रीब ला दिया। इन खोजों की प्रकृति इंसानों से ज़्यादा शराफत की माँग करती है। हम सब की एकजुटता के लिए दुनिया भर में भाई-चारे की माँग करती है। इस वक़्त भी मेरी आवाज़, दुनिया भर में लाखों लोगों तक पहुँच रही है, लाखों निराश-हताश मर्दों, औरतों और छोटे बच्चों तक। व्यवस्था के शिकार उन मासूम लोगों तक, जिन्हें सताया और कैद किया जाता है। जिन लोगों तक मेरी आवाज़ पहुँच रही है, मैं उनसे कहता हूँ — ‘निराश न हों।’
जो बदहाली आज हमारे ऊपर थोपी गयी है, वह लोभ-लालच का, इंसानों की नफ़रत का नतीजा है, जो इंसानों को एकजुट होने से रोकता है। लेकिन एक दिन लोगों के मन से नफ़रत ख़त्म होगी ही, तानाशाहों की मौत होगी और जो सत्ता उन लोगों ने जनता से छीनी है, उसे वापस जनता को लौटा दिया जायेगा। और आज भले ही लोग मारे जा रहे हों, लेकिन उनकी आज़ादी कभी नहीं मरेगी।
सिपाहियो ! अपने आप को धोखेबाज़ों के हाथों मत सौंपो, जो लोग तुमसे नफ़रत करते हैं – तुम्हें ग़ुलाम बनाकर रखते हैं – जो ख़ुद तुम्हारी ज़िन्दगी के फैसले करते हैं – तुम्हें बताते हैं कि तुम्हें क्या करना है – क्या सोचना है और क्या महसूस करना है – जो तुम्हें खिलाते हैं – तुम्हारे साथ पालतू जानवरों और तोप के चारे जैसा व्यवहार करते हैं। अपने आप को इन बनावटी लोगों – मशीनी दिल और मशीनी दिमाग़ वाले इन मशीनी लोगों के हवाले मत करो ! तुम मशीन नहीं हो ! तुम पालतू जानवर भी नहीं हो ! तुम इन्सान हो ! तुम्हारे दिलों में इंसानियत के लिए प्यार है ! तुम नफ़रत नहीं करते, नफ़रत सिर्फ वे लोग करते हैं, जिनसे कोई प्यार नहीं करता, सिर्फ बेमुहब्बत और बेकार लोग। सिपाहियो ! ग़ुलामी के लिए नहीं, आज़ादी के लिए लड़ो !
तुम ही असली अवाम हो, तुम्हारे पास ताक़त है, ताक़त मशीन बनाने की, ताक़त ख़ुशियाँ पैदा करने की, तुम्हारे पास ज़िन्दगी को आज़ाद और ख़ूबसूरत बनाने की, इस ज़िन्दगी को एक अनोखा अभियान बना देने की ताकत है। तो आओ, लोकतंत्र के नाम पर इस ताक़त का उपयोग करें, हम सब, एक हो जाएँ ! एक नई दुनिया के लिए संघर्ष करें – एक ख़ूबसूरत दुनिया, जहाँ इंसानों के लिए काम का अवसर हो, जो हमें बेहतर आनेवाला कल, लम्बी उम्र और हिफ़ाज़त मुहय्या करे. धोखेबाज़ इन्हीं चीज़ों का वादा करके सत्ता पर क़ाबिज़ हुए थे, लेकिन वे झूठे हैं। वे अपने वादे को पूरा नहीं करते और वे कभी करेंगे भी नहीं। तानाशाह ख़ुद तो आजाद होते हैं, लेकिन बाक़ी लोगों को ग़ुलाम बनाते हैं। आओ, हम इन वादों को पूरा करवाने के लिए लड़ें। क़ौमियत की सीमाओं को तोड़ने के लिए, लालच को ख़त्म करने के लिए, नफ़रत और कट्टरता को जड़ से मिटाने के लिए, दुनिया को आज़ाद कराने के लिए लड़ें। एक माकूल और मुकम्मिल दुनिया बनाने की लड़ाई लड़ें। एक ऐसी दुनिया – जहाँ विज्ञान और तरक़्क़ी सबकी ज़िन्दगी में ख़ुशहाली लाए।
सिपाहियो ! आओ, लोकतंत्र के नाम पर हम सब एकजुट हो जायें ! ” (अनुवाद:परवेज़ अख़्तर)