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उत्तराखण्ड की शान है हल्द्वानी

एक समय जिस हल्द्वानी में लोग बसने को तैयार नहीं थे, वह आज उत्तराखण्ड की आर्थिक राजधानी है। कई महत्वपूर्ण संस्थान और अंतरराष्ट्रीय खेल स्टेडियम तक यहां हैं। शहर की जागरूकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जनआंदोलनों में यहां के लोगों की अहम भूमिका रही। यहां की धरती स्व. पंडित नारायण दत्त तिवारी, डॉ. इंदिरा हृदयेश, यशपाल आर्य, बंशीधर भगत, गजराज बिष्ट जैसे राजनेताओं के लिए काफी उर्वरा साबित हुई। सचमुच आज हल्द्वानी एक तरह से उत्तराखण्ड की शान भी है

 

कुमाऊं का प्रवेश द्वार और उत्तराखण्ड की आर्थिक राजधानी कहा जाने वाला हल्द्वानी राज्य के सर्वाधिक जनसंख्या वाले शहरों में से एक है। हल्द्वानी भाबर क्षेत्र में आता है। अत्यधिक गर्मी, दलदली क्षेत्र, अत्यधिक बारिश, परिवहन के संसाधनों का अभाव, विभिन्न प्रकार की बीमारियों व जंगली जानवरों की बहुतायत और सघन वन क्षेत्र के कारण यहां लंबे समय तक लोग नहीं बसे। शायद इसी कारण यहां एतिहासिक मानव बस्तियों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। हल्दू (कदम्ब) के वृक्षों की या कहें हल्दू वनों की प्रचुरता के कारण कालांतर में इस क्षेत्र को हल्द्वानी कहा जाने लगा। 1816 में गोरखाओं को पराजित करने के बाद गार्डनर ने कुमाऊं आयुक्त का पद संभाला। परन्तु इसे 1834 में हल्द्वानी नाम मिला। विलियम ट्रेल ने जो उस समय कुमाऊं के आयुक्त थे, 1834 में इसे पहाड़ों से सार्दियों में भाबर आने वाले लोगों के लिए मंडी के रूप में बसाया। मोटा हल्दू में प्राचीन शहर स्थित था। शुरूआत में यहां घास की झोपड़ियां थी। 1850 के आस-पास यहां ईंट के घरों का निर्माण शुरू हुआ। पहला अंग्रेजी माध्यम का माध्यमिक विद्यालय 1831 में स्थापित हुआ। 1882 में नैनीताल व गाठगोदाम को सड़क मार्ग से जोड़ा गया। 1883-84 में बरेली-काठगोदाम के मध्य रेलमार्ग बिछाया गया। लखनऊ से हल्द्वानी के लिए रेल गाड़ी पहली बार 24 अप्रैल 1884 को पहुंची। 1891 में नैनीताल जिले के अस्तित्व में आने से पहले हल्द्वानी कुमाऊं जिले का भाग था जो अब अल्मोड़ा के नाम से जाना जाता है। 1885 में टाउन अधिनियम लागू होने के बाद पहली फरवरी 1887 को हल्द्वानी को नगर पालिका घोषित किया गया। 1899 में यहां तहसील कार्यालय खोला गया। आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत के नैनीताल जिले के भाबर क्षेत्र का मुख्यालय हल्द्वानी में ही था। साथ ही ये कुमाऊं मंडल व नैनीताल जिले का शीतकालीन कैम्प ऑफिस भी था। वृहत्तर हल्द्वानी आज महानगर का रूप ले चुका है। उच्च कोटि के शिक्षण संस्थान व चिकित्सा सुविधाओं से युक्त हल्द्वानी की आज अलग पहचान है। नगर निगम हल्द्वानी काठगोदाम के मेयर इस समय लगातार दूसरी बार चुने गये जोगेंद्र पाल सिंह रौतेला हैं। शहर के अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स स्टेडियम ने इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दी है जिसका श्रेय पूर्व कैबिनेट मंत्री व नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश को जाता है। राजनीतिक रूप से परिपक्व हल्द्वानी ने नारायण दत्त तिवारी, डॉ इंदिरा हृदयेश, बंशीधर भगत, यशपाल आर्य, गजराज बिष्ट, जैसी हस्तियां राजनीति में दी हैं।


डॉ. मोहन तिवारी : 1985 में कानपुर से एमबीबीएस पूर्ण करने के बाद डॉ. मोहन चन्द्र तिवारी और उनकी पत्नी डॉ जयश्री तिवारी ने तिवारी मैटरनिटी सेंटर एवं नर्सिंग होम की स्थापना 1995 में मुखानी हल्द्वानी में की। एमडी डॉ मोहन चन्द्र तिवारी वरिष्ठ फिजीशियन, हृदय रोग व डायबिटीज विशेषज्ञ हैं, जबकि डॉ जयश्री तिवारी स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ हैं। इसके अतिरिक्त तिवारी मैटरनिटी सेंटर में नवजात शिशु, जर्नल सर्जरी, रेडियोलॉजी की पूर्ण सुविधा उपलब्ध है।

शंकर हास्पिटल : 1977 में गोरखपुर से एमबीबीएस करने वाले डॉ योगेश शर्मा वरिष्ठ चिकित्सकों में शुमार हैं। 1990 में डॉ. शर्मा ने निश्चेतक का कोर्स किया तथा 2003 में नशा उन्मूलन में ऑस्ट्रेलिया में फैलोशिप की। डॉ योगेश चन्द्र शर्मा उत्तराखण्ड में कई जगह सेवा देने के पश्चात उत्तराखण्ड के स्वास्थ्य महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए। डॉ गीता शर्मा स्वास्थ्य विभाग में कुमाऊं निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुई हैं। 2004 में अपने पिता की स्मृति में स्थापित शंकर हास्पिटल आज हल्द्वानी के महत्वपूर्ण निजी चिकित्सालयों में एक है। जहां डॉ. योगेश शर्मा व डॉ गीता शर्मा की कुशल देखरेख में सभी बीमारियों का इलाज स्त्री रोग प्रसूति से सम्बंधित इलाज व ऑपरेशन किए जाते हैं।

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