आजादी के आंदोलन की अगुआ रही कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व कालांतर में एक परिवार तक सिमटकर रह गया। बीच में जब कभी नेतृत्व परिवार से बाहर रहा पार्टी बिखराव की कगार पर जा पहुंची। सत्ता का वनवास भी सोनिया के नेतृत्व से ही समाप्त हुआ। एक बार फिर जिस तरह से राहुल को सिंहहासन की ओर सरकाया गया है उससे तय हो गया है कि नेहरू-गांधी परिवार की चैथी पीढ़ी में कांग्रेस खुद के साथ-साथ इस देश का भी भविष्य देख रही है