‘भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है। हम जियेंगे तो इसके लिये मरेंगे तो इसके लिये।’ ये कथन कहते वक्त अटल बिहारी वाजपेयी के मनःस्थिति और देशभक्ति की ऊर्जा का पार पाना असम्भव है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है। बीते साल 16 अगस्त को दिल्ली के एम्स में उनका 93 साल की उम्र में निधन हो गया था। 2004 में हुए लोकसभा में एनडीए की हार के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास से ले लिया था।
उसके बाद उनकी सेहत लगातार बिगड़ती चली गई। कुछ दिन बाद एक स्ट्रोक के चलते उनकी आवाज चली गई। जिस दमदार आवाज और भाषण के दम पर अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में 50 सालों से ज्यादा शिखर पर रहे अब वह शांत हो गए थे और इशारों पर ही बात करते थे।
बीच-बीच में उनके सबसे अच्छे दोस्त और नजदीकी लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह मिलते जाते थे।इसके अलावा बीजेपी के नेता भी उनका हाल-चाल लेने जाते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी समय-समय पर उनसे मिलने जाते थे। अटल बिहारी वाजपेयी भले ही दिल्ली के एक सरकारी में शांत लेटे थे लेकिन उनके भाषण और कविताएं कार्यकर्ताओं के बीच जोश भरती थीं। चुनावों में उनकी कविताओं का इस्तेमाल जरूर होता था।
अटल जी की कविताओं की सबसे खास बात यह है कि राजनीति और देशभक्ति के अलावा जिस विषय पर उन्होंने सबसे ज्यादा लिखा वह ‘मौत’ था।

अटल की 13 दिनों की सरकार का किस्सा……..
मगर एक वक्त ऐसा भी था, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार को सदन में बहुमत साबित करना पड़ा था और इस अग्नि परीक्षा में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार विफल साबित हुई थी और महज एक वोट से उनकी सरकार गिर गई थी. बात दरअसल, 1999 में की है, जब तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने अपनी पार्टी को एनडीए से अलग कर लिया था और वाजपेयी सरकार विश्वास मत साबित करने के लिए मजबूर हो गई थी।
दरअसल, 1998 के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूरी तरह बहुमत नहीं मिला था मगर, AIADMK के समर्थन से एनडीए ने केंद्र में सरकार बनाई थी। करीब 13 महीने बाद अप्रैल, 1999 में दिवंगत नेता जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके ने वाजपेयी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, और सरकार अल्पमत में आ गई। इसके बाद फिर राष्ट्रपति ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा। जिसके बाद वाजपेयी सरकार को विश्वास प्रस्ताव रखना पड़ा। इसके बाद से संसद के गलियारों में गहमागहमी शुरू हो गई थी।
17 अप्रैल 1999 को लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पर जब वोटिंग हुई तब सरकार एक ही वोट से हार गई और इस तरह सरकार गिर गई। ऐसा कहा जाता है कि उस वक्त ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरधर गमांग ने सरकार के खिलाफ वोट दिया था। वो ठीक दो महीनों पहले यानी 18 फ़रवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे, मगर उन्होंने लोकसभा से इस्तीफ़ा नहीं दिया था। वो कोरापुट संसदीय क्षेत्र की नुमांइदगी कर रहे थे।
ऐसा कहा जाता है कि सिर्फ गमांग ही नहीं, बल्कि मायावती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद सैफुद्दीन सोज ने भी सरकार के खिलाफ फोट किया था। इस तरह से विश्वास मत के पक्ष और खिलाफ में वोट पड़ने के बाद लोकसभा स्पीकर ने एलान किया कि विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े। इस तरह से तेरह महीने की पुरानी वाजपेयी सरकार महज एक वोट गिर चुकी गई।
मगर समय का पहिया फिर से घुमा, अगले चुनाव में एनडीए को बहुमत मिला और फिर अगले पांच साल तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे। हालांकि, इसके बाद कई बार गमांग ने यह बातें कही कि उनकी वजह से वाजपेयी की सरकार नहीं गिरी थी।
अटल जी की एक कविता जो आज के कश्मीर मुद्दे पर बिल्कुल सटीक बैठता है:
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता
त्याग, तेज, तप, बल से रक्षित यह स्वतंत्रता
प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से
कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है
औरों के घर आग लगाने का जो सपना
वह अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो
आजादी अनमोल न इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है
तुम्हें मुफ्त में मिली न कीमत गई चुकाई
अंगरेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं
मां को खंडित करते तुमको लाज न आई।
अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो
दस-बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली
बरबादी से तुम बच लोगे, यह मत समझो।
धमकी, जेहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे, यह मत समझो
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का भाल झुका लोगे, यह मत समझो।
जब तक गंगा की धार, सिंधु में ज्वार
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे
अगणित जीवन, यौवन अशेष।
अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध
काश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
साभार : ‘मेरी इक्यावन कविताएं’
अटल जी आज हमारे बीच में नहीं रहे, लेकिन उनकी प्रेरणा, उनका मार्गदर्शन, हर भारतीय को हमेशा मिलता रहेगा।