भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सैनानी चंद्रशेखर आजाद की आज पुण्यतिथि है। बहुत कम उम्र में चंद्रशेखर देश की आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने। 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए थे। आज भी अंग्रेज ‘आजाद’ का नाम बहुत सम्मान से लिया करते हैं।
चंद्रशेखर को ‘आजाद’ कहने के पीछे एक खास वजह है। जब 15 साल की उम्र में आजाद को जज के सामने पेश किया गया तो उन्होंने ने कहा, “मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है।” जज ये सुनने के बाद भड़क गया और चंद्रशेखर को 15 कोड़ों की सजा सुनाई। यहीं से उनका नाम ‘आजाद’ पड़ गया। दरअसल, ‘आजाद’ अल्फ्रेड पार्क में भगत सिंह को जेल से निकालने समेत कई महत्वपूर्ण विषयों पर अपने साथियों के साथ बैठकर चर्चा कर रहे थे तभी उन्हें खबर लगी कि अंग्रेजों ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया है।
आजाद ने अंग्रेजों से अकेले ही मुकाबला करते हुए अपने साथियों को पार्क से बाहर निकाल दिया, जिससे भारत की आजादी के लिए बनाई उनकी योजनाओं पर कोई प्रभाव न पड़े। जब उनकी रिवाल्वर में आखिरी गोली बची तो उन्होंने अंग्रेजों के हाथ आने की वजाय खुद के जीवन को खत्म करना सही लगा। और उस आखिरी गोली से उन्होंने खुद को ही खत्म कर लिया। इलाहाबाद संग्रहालय में रखी किताब ‘अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद’ के लेखक विश्वनाथ वैशंपायन आज़ाद के साथी रहे थे।
वे लिखते हैं, “मेरी गिरफ़्तारी के 15 दिन बाद आज़ाद एल्फ़्रेड पार्क में शहीद हुए थे। उस समय मैं बाहर नहीं था। इसलिए जो समाचारों में प्रकाशित हुआ, उसी के आधार पर लिख रहा हूं।” वैशंपायन लिखते हैं कि जिस दिन यह वारदात हुई तब आज़ाद हिंदुस्तान से बर्मा जाने के बारे में चर्चा कर रहे थे, तभी वीरभद्र जाता हुआ दिखाई दिया। दोनों लोग (सुखदेव और आज़ाद) वीरभद्र के बारे में चर्चा कर ही रहे थे कि एक मोटर कार आकर रुकी और उसमें से उतरकर एक अंग्रेज़ अफसर आया और उसने नाम पूछा। उसके नाम पूछते ही दोनों लोगों ने गोली चला दी।
अंग्रेज अफसर ने भी गोली चलाई। इस बीच घायल होने के बाद आज़ाद ने सुखदेव को वहां से निकल जाने के लिए कहा और सुखदेव वहां से किसी तरह निकलने में कामयाब हुए। महात्मा गांधी ने 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद आंदोलन वापस ले लिया। इसके बाद आजाद ने अहिंसा छोड़ कर उग्र हमलों का रास्ता अपना लिया।
आजाद रामप्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ से जुड़े। यहां से उनकी जिंदगी बदल गई। उन्होंने सरकारी खजाने को लूटकर संगठन की क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया। उनका मानना था कि यह धन भारतीयों का ही है जिसे अंग्रेजों ने लूटा है। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया था।
चंद्रशेखर आजद का एक शेर आज भी काफी मशहूर है-
दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।