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‘रियलिटी शो से गुमराह हो रहे हैं बच्चे’

रियलिटी शो से गुमराह हो रहे हैं बच्चे

हाल ही में कई कलाकार और विद्वानों को उत्तर प्रदेश संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। इन कलाकारों एवं विद्वानों में दरभंगा घराने के प्रख्यात ध्रुपद गायक पंडित सुखदेव चतुर्वेदी भी शामिल हैं। ध्रुपद गायन में आज बहुत कम कलाकार अपना हाथ आजमाते हैं। ध्रुपद ही क्यों, शास्त्रीय संगीत की ओर भी युवाओं का रुझान बहुत कम हुआ है। पुराने शास्त्रीय संगीतज्ञ और घराने ही इसे अभी भी आगे बढ़ा रहे हैं। पुराने लोगों के जाने के बाद यह संगीत खत्म होने के कगार पर पहुंच जाएगा। ऐसे में सुखदेव चतुर्वेदी का ध्रुपद सीखना और उसकी ऊंचाइयों तक पहुंचना बड़ी बात है। उत्तर प्रदेश द्वारा ऐसे लोगों को सम्मानित करने से यह क्षेत्र अन्य लोगों को भी आकर्षित कर सकता है। आज शास्त्रीय संगीत की स्थिति के अलावा इससे जुड़े कई महत्वपूर्ण मसलों पर धु्रपद गायक पंडित सुखेदव चतुर्वेदी से कुमार गुंजन की बातचीत के प्रमुख अंश:

 

पुरस्कार मिलने का श्रेय किसे देना चाहेंगे?
मैं इसका श्रेय अपने मित्र पंडित राज खुशी राम और गुरु भाई, बृजभूषण गोस्वामी को देना चाहूंगा। संगीत साधना में इन दोनों का सहयोग शुरू से मुझे मिलता रहा है। यदि ये दोनों हमारे जीवन में नहीं होते तो शायद मैं आज जहां हूं, वहां नहीं पहुंच सकता। इन्होंने हमेशा मुझे प्रेरित किया और आगे बढ़ने के लिए हौसला दिया। इनके अलावा हमारे गुरु और परिवार के लोगों का भी सहयोग रहा।

संगीत के प्रति रुझान कैसे हुआ?
मेरे पिता श्री हरदेव चतुर्वेदी लोकसंगीत के गायक थे। वे चाहते थे कि मैं शास्त्रीय संगीत में अपना नाम स्थापित करूं। मैं 4 साल की उम्र से ही हार्मोनियम के साथ गीत एवं भजन गाने लगा था। धीरे-धीरे इसमें आगे बढ़ता गया। शास्त्रीय संगीत के गूढ़ को समझने लगा। कुछ समय बाद इसका आनंद उठाने लगा। आनंद आने के बाद तो सीखने की रफ्तार तेज हो गई।

युवाओं के स्कूल-कॉलेज कि कई गुदगुदाते संस्मरण होते हैं। आप के साथ भी ऐसा कुछ हुआ होगा, कुछ सुनाएं?
मेरी शिक्षा-दीक्षा मथुरा में हुई। पढ़ाई मैंने हाईस्कूल के बाद छोड़ दी, लेकिन स्कूल में होने वाली सभी संगीत प्रतियोगिताओं में मैं शीर्ष पर रहता था। स्कूल में मेरे शिक्षक श्री राजशरण जी मुझे हिंदी और संस्कृत के कई दोहे और छंद बच्चों को गाकर सुनाने के लिए कहते थे, ताकि आसानी से उन्हें पाठ याद हो जाये। यानी मैं अपनी क्लास में बच्चों को पाठ आसानी से याद कराने का जरिया बन गया था।

आप मुंबई में 24 साल से संगीत साधना कर रहे हैं। लेकिन अभी तक महाराष्ट्र सरकार से आपको कोई पुरस्कार नहीं मिला है, क्यों?
इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे क्या किसी भी कलाकार के लिए यह मायने नहीं रखता। मैं कलाकार हूं और संगीत साधना ही मेरा धर्म है। पुरस्कार पाने की चिंता करना मेरा काम नहीं है।

धु्रपद कैसे और कब से आपने सीखना शुरू किया?
दूसरे देशों के संगीत प्रेमियों को ध्रुपद सिखाने वाले दरभंगा घराने के ध्रुपद गायक पंडित विदुर मलिक जी वृंदावन के श्रीवत्स गोस्वामी जी के बुलावे पर दरभंगा, बिहार से वृंदावन आये। उन्हीं से मैंने 1985 में ध्रुपद सीखना शुरू किया। तब रोज मथुरा से वृंदावन साइकिल से जाता, वहां उनसे शिक्षा लेता था। हमने वहां भी खूब आनंद लिया। संगीत के रियाज के लिए सुबह-सुबह ही गुरुजी के पास पहुंच जाता था। चाहे ठंड हो, गर्मी या बरसात हो।

धु्रपद गायकी के बारे में कुछ बताएं?
मतभेदों के बीच एक मत के अनुसार ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर ने पंद्रहवीं शताब्दी में इस गायकी की शुरुआत की। तानसेन और उनके गुरु स्वामी हरिदास ने इस गायकी का मान बढ़ाया। किवदंति है कि उस कालखंड में ‘मेघ मल्हार’ गाने से बारिश हो जाती थी। ध्रुपद में पहला दरभंगा घराना और दूसरा डागर घराना है। दरभंगा घराने से मैं और मेरे गुरु भाई प्रेम कुमार मलिक जी ध्रुपद के प्रचार-प्रसार में लगे हैं। देखते हैं हम इसे कहां तक पहुंचा पाते हैं। अपनी ओर से प्रयास पूरा है।

बॉलीवुड से आपका जुड़ाव कहां तक रहा है?
वर्ष 1995 में मुंबई आने के बाद मैंने पश्चिमी संगीत की तालीम बॉलीवुड के प्रसिद्ध संगीत निर्देशक श्री कल्याण जी आनंद जी भाई से 5 सालों तक ली है। भूपेंद्र हजारिका के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म ‘दमन’, सुष्मिता सेन और मनीषा कोइराला अभिनीत फिल्म ‘पैसा वसूल’, एकता कपूर निर्देशित फिल्म ‘रागिनी एमएमएस’, टीवी सीरियलों में ‘देवों के देव महादेव’, ‘भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप’, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’, ‘सिया के राम’ आदि में मैंने अपनी आवाज दी है। मैंने कई फिल्मों, टीवी सीरियलों और म्यूजिक एल्बमों के लिये म्यूजिक भी कम्पोज किया है। पहला फ्यूजन म्यूजिक एल्बम ‘मोक्ष’ वर्ष 1999 में रिलीज हुआ था, जो बहुत ही चर्चित रहा। इसके साउंड ट्रैक्स को पॉप सिंगर मैडोना ने अपने म्यूजिक एल्बम में शामिल किया। बॉलीवुड के कलाकार शिष्यों में जुबिन नौटियाल, मीत ब्रदर, प्रीती पिंकी, शेखर सुमन आदि प्रमुख हैं।

क्या रियलिटी शो से संगीत का भला हो सकता है? क्या बच्चों को इसमें हिस्सा लेना चाहिए?
मेरे अनुसार कुछ अपवाद को छोड़कर रियलिटी शो से अधिकांश बच्चे गुमराह हो रहे हैं। हारने पर बच्चे अक्सर अवसाद के शिकार हो जाते हैं। गंभीरता से संगीत सीखने वाले बच्चों को शास्त्रीय संगीत समर्पण के साथ सीखना चाहिए।

धु्रपद के अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने के लिए आप क्या करना चाहते हैं?
मैं स्वयं द्वारा संचालित समन्वय चौरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर, लेकिन प्रतिभाशाली बच्चों को निःशुल्क ध्रुपद सिखा रहा हूं। मैं देशभर में ऐसे गुरुकुल की स्थापना करना चाहता हूं, जहां बच्चों को योग, ध्रुपद और सत्संग तीनों की तालीम दी जाए। संगीत साधना के लिए योग और सत्संग दोनों जरूरी है।

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