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खतरे में तितलियां

तितली ट्रस्ट द्वारा उत्तराखण्ड में किए गए सर्वे के अनुसार फाॅरेस्ट हापर, पावडर्ड ओकब्ल्यू, स्केयर बाल, एंगिल्ड पेइराॅट, टाइगर हूपर, ब्लैक प्रिंस, ग्रेट यलो सेलर सहित कई प्रजातियां अब नहीं दिखाई दे रही हैं। ये तितलियं विश्वभर में समुद्रतल से 100-1500 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती हैं। पूरे देश में तितलियों की करीब 1350 प्रजातियां हैं। अकेले उत्तराखण्ड में इसकी 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। अब बाॅम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के तत्वाधान में पहली बार तितलियों की गणना हो रही है। 24 राज्यों के 200 जिलों में रंग-बिरंगी तितयिों की गणना होगी। इनका डाटा बनेगा। वाइल्ड लाइफ से जुड़ी 50 संस्थाएं इस काम में लगी है। इस दौरान दूरबीन, कैमरा और ड्रोन की मदद ली जा रही है। इस तरह तितलियों का विवरण प्रजातिवार उपलब्ध होगा। किसी प्रजाति की देश में कितनी तितलियां हैं

 

आज मानव जीवन ही नहीं तितलियों का जीवन भी संकट में है। यूं तो तितली कीट वर्ग का वह प्राणी है जो सभी जगह पाया जाता है, लेकिन अब इस सुंदर एवं आकर्षक प्रजाति पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जानकार बताते हैं कि पिछले चार दशक में तितलियों की 41 प्रतिशत आबादी खत्म हो चुकी है। तापमान परिवर्तन, पेड़ों की कटाई, मानवविहीन जगहें इसकी बड़ी वजह बन रही हैं। पिछले 100 सालों में तितलियों की 64 प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तितलियों के जीवन भी सर्वाधिक पड़ा है। उनके जीवन चक्र में परिर्वतन आ रहा है। तितलियों के प्राकृतिक आवास तेजी से नष्ट हो रहे हैं। जानकारों का कहना है कि तापमान में आए परिवर्तन के कारण या तो वह अधिक ऊंचाई पर चली गई हैं या फिर उनकी प्रजातियां तेजी से नष्ट हो गई हैं। बसंत के मौसम में अब पहले की तरह तितलियां नहीं मंडराया करती। बसंत में पड़ती ठंड उन्हें पलायन करने के लिए विवश कर रही है। यह हाल सिर्फ पहाड़ का ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व का है।

विशेषज्ञ कहते हैं कि तितलियां ठंड नहीं झेल पाती जो झेल लेती हैं तो वह प्रजनन करने की स्थिति में नहीं रहती। प्राकृतिक बसावट के खत्म होने का प्रभाव तितलियों के जीवन पर भी पड़ा है। तितलियां पत्ती खाकर जिंदा रहती हैं। वनस्पतियों पर पड़े संकट के कारण उसका भोजनन भी उससे छिन रहा है। तितली ट्रस्ट द्वारा उत्तराखण्ड में किए गए सर्वे के अनुसार फाॅरेस्ट हापर, पावडर्ड ओकब्ल्यू, स्केयर बाल, एंगिल्ड पेइराॅट, टाइगर हूपर, ब्लैक प्रिंस, ग्रेट यलो सेलर सहित कई प्रजातियां अब नहीं दिखाई दे रही हैं। ये तितलियं विश्वभर में समुद्रतल से 100-1500 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती हैं। पूरे देश में तितलियों की करीब 1350 प्रजातियां हैं। अकेले उत्तराखण्ड में इसकी 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। एक समय पूरे पहाड़ में तितलियों का मनभावन संसार होता था। घरों के आगे रंग-बिरंगी तितलियां विचरण करती थी। उनका अपना एक संसार था, न जाने वह संसार कहां चला गया। नेपाल एवं इंग्लैंड में हुई तितलियों की गणना में इनकी संख्या कम हुई है। भारत में भी अब बाॅम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के तत्वाधान में पहली बार तितलियों की गणना हो रही है। 24 राज्यों के 200 जिलों में रंग-बिरंगी तितयिों की गणना होगी। इनका डाटा बनेगा। वाइल्ड लाइफ से जुड़ी 50 संस्थाएं इस काम में लगी है। इस दौरान दूरबीन, कैमरा और ड्रोन की मदद ली जा रही है। इस तरह तितलियों का विवरण प्रजातिवार उपलब्ध होगा। किसी प्रजाति की देश में कितनी तितलियां हैं।

वैश्विक जलवायु में हो रहे परिवर्तन के साथ ही जंगलों में लगने वाली आग, कीटनाशक का बढ़ता प्रयोग भी तितलियों के जीवन पर गहरा जोखिम पैदा कर रहा है।
भुवन पाण्डे, प्राणी विज्ञानी

उत्तराखण्ड में हालांकि तितलियों के संरक्षण के लिए काम हो रहा है। गंगोत्री नेशनल पार्क में माउंटेन टारटाॅइसशेल, माउंटेन अरगस, हिमालय ग्रास डार्क डार्ट, काॅमन येलो स्वलोटेल, काॅमन एमिग्रेट, काॅमन ब्ल्यू अपोलो, काॅमन रेड अपोलो आदि में दुर्लभ प्रजाति की तितलियां मौजूद हैं। यहां करीब 18 तरह की प्रजातियां अभी मौजूद हैं। उत्तराखण्ड ने अपने राज्य प्रतीकों में ‘काॅमन पीकाॅक’ तितली को शामिल किया हुआ है, ऐसा करने वाला उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र के बाद दूसरा राज्य है। वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की अध्यक्षता में राज्य वन जीव बोर्ड की बैठक हुई थी उसमें काॅमन पीकाॅक को राज्य तितली के रूप में चुना गया था। प्रदेश के भीमताल में तितली रिसर्च सेंटर है तो रुड़की में तितली बुटीक हैं। राज्य में तितलियों की प्रजातियां का लोकप्रिय बनाने के लिए देहरादून एवं नैनीतल में तितली पार्क बनाए गए हैं।

दूसरी अगर इनकी विशेषतओं पर नजर डालें तो तितलियां परागण में सहायक होती हैं। फूलों से फल एवं अनाज बनाने में सहायक होती हैं। तितलियों के गायब होने से परागण प्रक्रिया में पड़ने वाला प्रभाव पारिस्थितिक चक्र पर पड़ता है। यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह पौधों के बीच परागण में मदद करती हैं। तितलियां शाकाहारी होती हैं, इसकी आंख में 6000 लेंस लगे होते हैं। यह पैराबैंगनी किरणें देख सकती हैं। यह 15 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ सकती हैं। यह पैरों से अपना स्वाद चखती हैं। तितली के 6 पैर एवं 4 बड़े पंख होते हैं। तितलियां बहरी होती हैं लेकिन बाइब्रेशन महसूस कर सकती हैं। यह हमेशा पत्तों पर अंडे देती है। मान्यत यह भी है कि तितली का लगातार दिखना तरक्की एवं जिंदगी में खुशहाली आने का संदेश है।

 

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