डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज जयंती है। पूरा देश आज उनकी जयंती के मौके पर उन्हें याद कर रहा है। राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी। उनके चेहरे मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं। देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे।
उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त वह भारत के पहले मंत्रीमंडल 1946 एवं 1947 मेें कृषि और खाद्य मंत्री भी रह चुके हैं। लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपिता गांधी से बेहद प्रभावित थे, राजेंद्र प्रसाद को ब्रिटिश प्रशासन ने 1931 के ‘नमक सत्याग्रह’ और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान जेल में डाल दिया था। बिहार के 1934 के भूकंप के समय राजेंद्र प्रसाद जेल में थे। जेल से छूटने के बाद वे भूकंप पीड़ितों के लिए धन जुटाने में तन-मन से जुट गए और उन्होंने वायसराय से तीन गुना ज्यादा धन जुटाया था।
भारत के स्वतन्त्र होने के बाद संविधान लागू होने पर उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति का पदभार संभाला। राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतन्त्र रूप से कार्य करते रहें। हिन्दू अधिनियम पारित करते समय उन्होंने काफी कड़ा रुख अपनाया था।
राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई ऐसे दृष्टान्त छोड़े जो बाद में उनके परवर्तियों के लिए मिसाल के तौर पर काम करते रहें। सन् 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें ‘भारत रत्न’ की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया। यह उस पुत्र के लिए कृतज्ञता का प्रतीक था जिसने अपनी आत्मा की आवाज़ सुनकर आधी शताब्दी तक अपनी मातृभूमि की सेवा की थी। अपने जीवन के आख़िरी महीने बिताने के लिये उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना। यहां पर 28 फ़रवरी 1963 में उनके जीवन की कहानी समाप्त हुई।