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The Sunday Post Special

अम्बेडकर मात्र दलितों के नेता नहीं थे

 

बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर को सामान्यतः दलितों का मसीहा माना जाता है। लेकिन जब कभी बाबा साहब ने अपने विचार दर्शन को स्पष्ट रूप में सामने रखा तो उन्होंने सम्पूर्ण समता पर ही बल दिया। उदाहरण के तौर पर उनकी इस उक्ति को देखें जो उन्होंने समाजवादियों पर टिपण्णी करते हुए दी थी। उन्होंने कहा,”समाजवादियों को भ्रम है कि चूंकि यूरोप के समाज की वर्तमान अवस्था में सम्पत्ति का प्रमुख आधार है, इसलिए यह बात भारत पर भी सही है या यूरोप में भी अतीत काल में सत्य थी। धर्म, सामाजिक प्रतिष्ठा और संपत्ति सभी सत्ता और शक्ति के स्रोत हैं। ”

उन्होंने यह भी कहा कि,” यदि समाजवादी समाजवाद को एक निश्चित वास्तविकता बनाना चाहते हैं तो उनको भी यह मानना चाहिए कि सामाजिक समता की समस्या एक बुनियादी समस्या है। और वे इससे बच नहीं सकते। यदि वे ऐसा न करेंगे तो उनकी क्रांति सफल न होगी, अथवा वे यदि क्रांति से पहले नहीं तो उसके बाद जाति की समस्या से दो चार होने पर बाध्य होंगे।”
ऐसी सर्वांगीण समता को हासिल करने के लिए वह यह मानते थे कि अनुसूचित जातियों और पिछड़ों की एकता अनिवार्य है और वही राजनीतिक कायापलट कर सकती है।
उन्होंने कहा कि, यह बड़े दुख की बात है कि जिन दो वर्गों की साझा समस्याएं हैं, वे इकठ्ठे नहीं हैं। अनुसूचित जातियां और पिछड़ी जातियां मिलकर इस देश की जनसंख्या में बहुसंख्यक हो जाती हैं। इस प्रकार कोई कारण नहीं दिखाई देता कि वे इस देश पर शासन नहीं कर सकतीं। देश की सत्ता को प्राप्त करने के लिए यह एकता आवश्यक है।”
“व्यापक मताधिकार के कारण यह सत्ता आपके हाथ में है। यदि आप एकत्रित होते हो तो आप भी सरकार को बदलकर अपनी सरकार स्थापित कर सकते हो।”
यह विचार उन्होंने 25 अप्रैल ,1948 को लखनऊ में आयोजित अनुसूचित जाति संघ की सभा में दिए गए भाषण में प्रस्तुत किए।इससे भी उनकी यह भूमिका रेखांकित होती है कि वे न तो मात्र दलितों की राजनीति करना चाहते थे और न ही केवल उनके नेता थे।

उनकी दलित नेता की छवि का प्रमुख आधार यह है कि वे काफ़ी लम्बे समय अरसे तक अनुसूचित जाति संघ के अध्यक्ष और नेता रहे। परन्तु यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने सबसे पहले जिस दल की स्थापना की उसका नाम ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ रखा और उसके बाद 1935 में इंडिया एक्ट के अंतर्गत विधानसभाओं के चुनावों में भी इस दल ने भाग लिया। तत्कालीन बम्बई विधानसभा में इस दल के 15 सदस्य निर्वाचित हुए थे । उसके केवल दो प्रत्याशी हारे थे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने प्रसिद्ध समाजवादी नेता श्री एस.एम जोशी और आचार्य अत्रे को एक पत्र लिखा जिसमें उनसे अनुरोध किया गया था कि वे उनके इस नए दल में शामिल हों।किंतु वे उन पत्रों पर हस्ताक्षर नहीं कर पाए क्योंकि रात को ही उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई।

दार्शनिक और समाजशास्त्रीय विश्लेषण में बाबा साहब वर्तमान शताब्दी के अग्रणी विचारक थे। उनकी विद्वता अपार थी। उन्होंने जाति प्रथा के उद्गम और विकास पर तथा बौद्ध धर्म और दर्शन पर महत्वपूर्ण कार्य किया।

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