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पुण्यतिथि विशेष : बिस्‍मिल- अशफाक उल्‍ला खान की दोस्ती का किस्सा  

भारत को आजादी दिलाने के लिए अपना सबकुछ न्‍योछावर करने वाले क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्‍मिल, अशफाक उल्‍ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को आज ही के दिन यानी कि 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई थी। आजादी के इन मतवालों को काकोरी कांड को अंजाम देने के लिए सूली पर चढ़ाया गया था।

 

19 दिसम्बर, 1927 को जिस दिन अशफाक को फांसी होनी थी। अशफाक ने अपनी जंजीरें खुलते ही बढ़कर फांसी का फंदा चूम लिया और बोले, मेरे हाथ लोगों की हत्याओं से जमे हुए नहीं हैं। मेरे खिलाफ जो भी आरोप लगाए गए हैं, झूठे हैं। अल्लाह ही अब मेरा फैसला करेगा। फिर उन्होंने वो फांसी का फंदा अपने गले में डाल लिया।

अशफाक की डायरी में से उनकी लिखी जो नज्में और शायरियां मिली हैं, उनमें से एक है –

किए थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाए,ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं,जबां तुम हो लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना

जिंदगी भर दोस्ती निभाने वाले अशफाक और बिस्मिल दोनों को अलग-अलग जगह पर फांसी दी गई। अशफाक को फैजाबाद में और बिस्मिल को गोरखपुर में। पर दोनों साथ ही इस जहान से गए और अपनी दोस्ती भी लेते गए।

  बिस्‍मिल- अशफाक उल्‍ला खान की दोस्ती का किस्सा  

अशफाक 22 अक्टूबर 1900 को यूनाइटेड प्रोविंस यानी आज के उत्तर प्रदेश के जिले शाहजहांपुर में पैदा हुए थे। अशफाक अपने चार भाइयों में सबसे छोटे थे। टीनएज में वे उभरते हुए शायर के तौर पर पहचाने जाते थे और ‘हसरत’ के तखल्लुस यानी उपनाम से शायरी किया करते थे। पर घर में जब भी शायरी की बात चलती, उनके एक बड़े भाईजान अपने साथ पढ़ने वाले रामप्रसाद बिस्मिल का जिक्र करना नहीं भूलते। इस तरह से किस्से सुन-सुनकर अशफाक रामप्रसाद के फैन हो गए थे।

तभी राम प्रसाद बिस्मिल का नाम अंग्रेज सरकार के खिलाफ की गई एक साजिश में आया। इस केस का नाम पड़ा मैनपुरी कांस्पिरेसी। अशफाक भी अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने का सपना रखते थे। इस पर बिस्मिल से मिलने की अशफाक की इच्छा और बढ़ गई. अशफाक ने ठान लिया कि रामप्रसाद से मिलना है तो मिलना है। कहते हैं कि सच्चे मन से चाहकर कोशिश करने से कुछ भी पाया जा सकता है। यही हुआ आखिर रामप्रसाद से अशफाक मिल ही गए।

उस वक्त हिंदुस्तान में गांधी जी का असहयोग आंदोलन अपने जोरों पर था। शाहजहांपुर में एक मीटिंग में भाषण देने बिस्मिल आए। अशफाक को ये पता चला तो मिलने पहुंच गए।  जैसे ही प्रोग्राम ओवर हुआ अशफाक लपककर बिस्मिल से मिले और उनको अपना परिचय उनके एक दोस्त के छोटे भाई के रूप में दिया। फिर बताया कि मैं ‘वारसी’ और ‘हसरत’ के नाम से शायरी करता हूं। बिस्मिल उनको अपने साथ ले आए और उनके कुछ शेर सुने, वे उनको पसंद आए। फिर दोनों साथ दिखने लगे। आस-पास के इलाके में बिस्मिल और अशफाक का जोड़ा फेमस हो गया।

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