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लोगों की नौकरियों के लिए एआई बन रहा काल

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( एआई ) का आज पूरी दुनिया में बोलबाला है। विश्व के अधिकतर देशों में आए दिन नई – नई तनिकों का अविष्कार हो रहा है। लेकिन लोगों का काम आसान बनाने के लिए लाइ गई यह तकनीकें धीरे- धीरे मनुष्य के लिए वरदान की जगह अभिशाप बनती जा रही हैं।

हाल ही में किये गए एक सर्वे में पाया गया है कि दुनियाभर के देशों में करीब 36 प्रतिशत लोगों का मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के चलते उनकी नौकरीयां खतरे में हैं। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप द्वारा इस सर्विस में 18 देशों को शामिल किया गया है। जिसमें कम्पनी के कर्मचारियों सहित बड़े अधिकारीयों को मिलाकर लगभग 12 हजार 800 लोगों से बात की गई है।
जिसमें से कई ऐसे लोग हैं जो आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस को दुनिया के लिए वरदान मानते हैं और पूरी तरह इसका समर्थन भी करते हैं। तो वहीं एक दूसरे पक्ष का मनना है कि आने वाले समय में एआई दुनिया के लिए काल बन जायेगा। सर्वे के अनुसार लोगों का यह मानना है कि चैटजीपीटी और डैल-ई जैसी एआई की नई तकनीकों के आने से व्यापार में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। लगभग 60 प्रतिशत भारतीय कार्यक्षेत्रों पर इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ें हैं। इस पुरे सर्वे के अनुसार दुनिया के 36 प्रतिशत लोगों का मानना है कि एआई के विस्तार के कारण उनकी नौकरियों के लिए खतरा पैदा हो गया है। पिछले साल 2022 में पीडब्ल्युसी द्वारा जारी किये गए अपने सर्वे ‘एनुअल ग्लोबल वर्कफोर्स ‘ में बताया था कि विश्व के एक तिहाई लोगों को यह डर है कि आने वाले तीन सालों में नई तकनीकें उनकी जगह ले लेगी और वो बेरोजगार हो जायेंगे। इसी प्रकार इस वर्ष मार्च के महीने में गोल्डमैन सॅक्स ग्रुप द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के मताबिक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के चलते लगभग 30 करोड़ नौकरियों के लिए खतरा पैदा हो सकता है।

 

भारत में क्या है स्थिति

 

भारत के करीब 61 फीसदी लोग एआई को आने वाले समय के लिए अच्छा मानते हैं। 72.8 फीसदी लोगों का मानना है कि यह लाभकारी है। करीब 88 प्रतिशत लोगों के अनुसार एआई उनके रोजगार पर प्रभाव डालेगा। सर्वे के अनुसार 52 फीसदी लोग अपने काम में इसके असर को लेकर बेहद आशावादी हैं जबकि 2018 में ऐसे लोगों की संख्या केवल 35 फीसदी थी।

 

एआई को रोकने के लिए बन सकते हैं कानून

 

बिल गेट्स और एलन मस्क से लेकर स्टीफन हॉकिंग तक के दिग्गज वैज्ञानिक एआई को इंसानों के लिए खतरा बता रहे हैं। एक तरफ गूगल, फेसबुक से लेकर दुनिया की तमाम टेक्नोलॉजी कंपनियां इस तकनीक पर अरबों डॉलर खर्च कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ चीन, रूस, अमेरिका जैसे देशों की सरकारें इस तकनीक पर अपना अधिकार जमाने की कोशिश कर रही हैं। बात यहां तक पहुंच गई है कि उनके लिए सख्त कानूनों की मांग की जाने लगी है। यूरोपीय संघ के देशों में AI लेकर ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया गया है। यूरोपीय संसद की एक समिति द्वारा हाल ही में इस आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) कानून के मसौदे पर मुहर लगा दी है। अब इस मसौदे पर चर्चा होगी और संसद के आगामी सत्र में इस पर मतदान होगा। वैज्ञानिकों का एक वर्ग इसे इंसानों के लिए जीवन बदलने वाली तकनीक बता रहा है, जो उन्हें बीमारियों से छुटकारा दिलाने और उन्हें लंबा जीवन देने में मदद करेगी। दूसरी श्रेणी के लोग इसे परमाणु बम से भी अधिक घातक हथियार मान रहे है। डर इस बात का है कि जो चीज लोगों की मदद के लिए बनाई गई है वही हमारी मुसीबत न बन जाए।

 

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