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कक्षा 12 के पाठ्यक्रम में किया गया ‘खालिस्तान’ के सन्दर्भ में सुधार

इस दौरान राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) अपने पाठ्यक्र में कुछ न कुछ बदलाव कर रही है। हाल ही में एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम में वीर सावरकार के इतिहास को जोड़ा था और अब खालिस्तान से संबंधित इतिहास को पाठ्यक्रम से हटा दिया है।

अब से एनसीईआरटी ने 12वीं कक्षा के राजनितिक विज्ञानं के सिलेबस में से अलग सिख राष्ट्र खालिस्तान की मांग के सन्दर्भ को हटा दिया गया है। इसकी जानकारी शिक्षा मंत्रालय ने दी है। शिक्षा मंत्रालय के सीनियर अधिकारियों का कहना है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) द्वारा जताई गई आपत्तियों के आधार पर यही फैसला लिया गया है। फैसला सुनाते हुए शिक्षा मंत्रालय में स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार ने कहा कि श्री आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को गलत तरीके से पेश करके सिख समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री को वापस लेने के संबंध में एसजीपीसी से ज्ञापन प्राप्त हुआ था। इस मुद्दे की जांच के लिए एनसीईआरटी द्वारा विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई थी और उसकी सिफारिशों के आधार पर निर्णय लिया गया था।’ जिसके आधार पर ‘एनसीईआरटी ने शुद्धि पत्र जारी किया है। नए शैक्षणिक सत्र के लिए किताबें छापी जा चुकी हैं, वहीं डिजिटल किताबों में बदलाव दिखेगा।’

 

पाठ्यक्रम से क्यों हटाया गया

 

गौरतलब है एसजीपीसी ने एनसीईआरटी पर यह आरोप लगाया था कि इसकी बारहवीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में सिखों के बारे में गलत ऐतिहासिक जानकारी दी गई है। एसजीपीसी की आपत्ति पुस्तक ‘स्वतंत्रता तक भारत में राजनीति ’ में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के उल्लेख से संबंधित है।
जिसमें आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के विषय में यह जानकारी दी गई थी कि ‘प्रस्ताव, संघवाद को मजबूत करने के लिए एक दलील थी, लेकिन इसकी व्याख्या एक अलग सिख राष्ट्र के लिए याचिका के रूप में भी की जा सकती है’। इसके आठ ही एक वाक्य यह भी था कि ‘अधिक चरमपंथी तत्वों ने भारत से अलगाव और ‘खालिस्तान’ के निर्माण की वकालत शुरू कर दी।’ पाठ्यक्रम में से इन दोनों ही वाक्यों को हटा दिया गया है क्योंकि सिक्खों के अनुसार यह जानकारी गलत प्रकार से दी जा रही है। एनसीईआरटी में इन बयानों को फिर इस तरह लिखा गया है कि ‘प्रस्ताव, संघवाद को मजबूत करने की दलील थी।’

 

क्या है खालिस्तान

 

खालिस्तान का शाब्दिक अर्थ है ”खालसाओं का देश”। सिख समुदाय आज़ादी के पहले से ही खालिस्तान के रूप में एक अलग राष्ट्र की मांग कर रहा है। लेकिन आज़ादी के बाद से खालिस्तान की मांग और प्रबल हो गई। जब भारत को दो टुकड़ों भारत (हिन्दू बहुल क्षेत्र) और पाकिस्तान (मुश्लिम बहुल क्षेत्र) में विभाजित कर दिया गया। इस विभाजन में पंजाब प्रान्त के भी दो टुकड़े हो गए। पंजाब का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और दूसरा हिस्सा भारत के हिस्से में आया। विभाजन के बाद आम जनता को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान में फसे हिन्दुओं को मुस्लिमों द्वारा और भारत में उपस्थित मुस्लिमों को हिन्दुओं द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था। लेकिन इन सब के बीच पंजाब में रहने वाले सिक्ख समुदाय को अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि काफी मात्रा में पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू-सिक्खों को भागकर भारत आना पड़ा। जिसके बाद सिक्ख समुदाय को ऐसा एहसास हुआ कि धर्मों की बहुलता के आधार जिस प्रकार भारत और पाकिस्तान का बटवारा हुआ है उसी प्रकार सिक्खों के लिए एक अलग राष्ट्र ‘खालिस्तान’ बनाया जाना चाहिए। इसी के चलते पाकिस्तान से आईएसआई के समर्थन के साथ साल 1947 में पंजाब में खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत हुई। जिसके परिणामस्वरूप साल 1950 में अकाली दल के नेतृत्व ‘सूबा’ आंदोलन चलाया जिसके द्वारा उन्होंने अलग प्रान्त की मांग की। लेकिन भारतीय सरकार ने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया। लेकिन आंदोलन फिर भी जारी रहा।
अतः साल 1966 में सरकार द्वारा सिक्खों की मांग को मान लिया गया और पंजाब को एक अलग राज्य बनाने का निर्णय देते हुए कहा गया कि पंजाब के अलग होने के बाद भी हिमाचल और हरियाणा भारत का हिस्सा रहेंगे। लेकिन अकालियों अर्थात खालिस्तानी समर्थकों ने इस फैसले को मानने से साफ़ इंकार कर दिया क्योंकि वे चाहते थे की चंडीगढ़ राज्य को भी पंजाब में शामिल कर दिया जाये और पंजाब से निकलने वाली नदियों पर उनके आलावा किसीका अधिकार नहीं होगा जिसका पानी हरियाणा और राजस्थान में भी जल आपूर्ति का साधन है। इस मांग को भारतीय सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। तब से आज तक यह आंदोलन शांत नहीं हो सका है।

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