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साकार होगा स्वर्ण का सपना?

भारतीय हॉकी टीम ने ओलम्पिक खेलों में चार दशक पहले 1980 में आखिरी बार स्वर्ण पदक जीता था। अब देशवासी न केवल एक और पदक जीतने की उम्मीद कर रहे हैं, बल्कि यह भी चाहते हैं कि इस बार स्वर्ण पदक जीतकर इस सूखे को समाप्त किया जाए। इसके लिए चयनकर्ताओं ने भी टीम में पांच ओलम्पिक पदार्पण करने वाले खिलाड़ियों के साथ टीम में नए जोश भरने का काम किया है। ऐसे में सवाल है कि क्या अबकी बार स्वर्ण का सपना साकार हो पाएगा?

खेलों का महाकुंभ कहे जाने वाले ओलम्पिक 2024 संस्करण यानी पेरिस ओलम्पिक का आगाज अगले महीने 26 जुलाई से शुरू हो रहा है जो 11 अगस्त तक खेला जाएगा। ओलम्पिक में खेलने को तो कई सारे खेल खेले जाते हैं, मगर हम बात करेंगे भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी की। हॉकी इंडिया ने इसके लिए 16 सदस्यीय पुरुष हॉकी टीम की घोषणा की है जो पेरिस ओलम्पिक में स्वर्ण पदक के लिए प्रतिस्पर्धा करेगी।

खास बात यह कि भारतीय हॉकी टीम ओलम्पिक खेलों में पिछले चार दशक के स्वर्ण पदक के सूखे को खत्म करने की उम्मीदों के बोझ के साथ मैदान में उतरती रही है। इस बार पेरिस ओलम्पिक में उसके पास इसे हासिल करने का सुनहरा मौका है। क्योंकि भारतीय टीम के पास आठ स्वर्ण पदकों की विरासत है। टोक्यो ओलम्पिक खेलों में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीतने के बाद से पुरुष टीम से उम्मीदें कई गुना बढ़ गई हैं। इससे पहले 1980 में भारतीय हॉकी टीम ने ओलिंपिक में आखिरी बार स्वर्ण पदक जीता था। 1928 से 1956 तक लगातार छह ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करके भारतीय हॉकी टीम ने पूरी दुनिया में अपने खेल का लोहा मनवाया था। लेकिन 1980 के बाद चार दशक से अधिक समय हो चुका है भारतीय हॉकी टीम इस प्रतियोगिता में कोई करिश्मा नहीं कर पाई है। अब देशवासी न केवल भारतीय टीम से एक और पदक जीतने की उम्मीद करते हैं, बल्कि यह भी चाहते हैं कि इस बार स्वर्ण पदक जीतकर इस सूखे को समाप्त किया जाए। इसके लिए चयनकर्ताओं ने भी टीम में पांच ओलम्पिक पदार्पण करने वाले खिलाड़ियों के साथ टीम में एक नए जोश भरने का काम किया है और टीम बेंगलुरु के साई सेंटर में चल रहे राष्ट्रीय शिविर में तैयारी कर रही है। ऐसे में सवाल है कि क्या अबकी बार दशकों से सूखा पड़ा स्वर्ण का सपना साकार हो पाएगा?

हॉकी के पूर्व दिग्गज खिलाड़ी और समीक्षकों का कहना है कि टीम इंडिया को इसके लिए काफी सुधार और मेहनत करने की जरूरत है। टीम का पहला लक्ष्य शीर्ष चार यानी सेमीफाइनल में जगह बनानी होगी। पेरिस में भारत एक चुनौतीपूर्ण ग्रुप में है, जिसमें गत चैम्पियन बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, न्यूजीलैंड और आयरलैंड जैसी टीमें हैं। इसलिए टीम का पहला लक्ष्य शीर्ष चार में रहना और क्वार्टर फाइनल में जगह बनाना होगा। दूसरा हॉकी का इतना विकास हो चुका है कि ओलम्पिक में भाग लेने वाली सभी टीमों के पास स्वर्ण पदक हासिल करने का मौका है। मगर दावेदार हमेशा की तरह बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जर्मनी और हॉलैंड होंगे। हालांकि स्पेन और फ्रांस भी कम नहीं हैं। पिछले कुछ सालों में इन टीमों ने शानदार प्रदर्शन किया है। इसलिए वो इस महाकुंभ में खिताबी दावेदार हैं। भारत ने भी वो सारी तैयारियां की हैं जिसकी उन्हें जरूरत है।

पेरिस ओलम्पिक के लिए टीम का ऐलान

पेरिस ओलम्पिक के लिए हॉकी इंडिया ने 16 सदस्यीय टीम का ऐलान कर दिया है। टीम की कप्तानी हरमनप्रीत संभालेंगे। भारतीय हॉकी टीम में पांच नए खिलाड़ियों को शामिल किया गया है। टीम की कमान जहां हरमनप्रीत के हाथ में है तो उनका डिप्टी मिडफील्डर हार्दिक सिंह को बनाया गया है। हरमनप्रीत यंग टीम के साथ अपना तीसरा ओलम्पिक खेलेंगे। हरमनप्रीत ने रियो ओलम्पिक 2016 में युवा खिलाड़ी के रूप में अपना पर्दापर्ण किया था। भारत ने टोक्यो ओलम्पिक 2020 में ब्रांज मेडल जीता था।

पांच खिलाड़ी करेंगे ओलम्पिक डेब्यू

टीम में अनुभवी गोलकीपर पीआर श्रीजेश और मिडफील्डर मनप्रीत सिंह को शामिल किया गया है। दोनों खिलाड़ी अपने चौथा ओलम्पिक खेलेंगे। इसके साथ ही गोलकीपर के रूप में कृष्ण बहादुर पाठक, मिडफील्डर नीकंठ शर्मा और डिफेंडर के रूप में जुगराज सिंह को अतिरिक्त खिलाड़ी के रूप में पेरिस जाएंगे। वहीं जो पांच खिलाड़ी अपना ओलम्पिक डेब्यू करेंगे उनमें जर्मनप्रीत सिंह, संजय, राज कुमार पाल, अभिषेक और सुखजीत सिंह शामिल हैं।

पेरिस ओलम्पिक के लिए भारतीय टीम
गोलकीपर: पीआर श्रीजेश।
डिफेंडर: जरमनप्रीत सिंह, अमित रोहिदास, हरमनप्रीत सिंह, सुमित और संजय।
मिडफील्डर: राजकुमार पाल, शमशेर सिंह, मनप्रीत सिंह, हार्दिक सिंह, विवेक सागर प्रसाद।
फॉवर्ड: अभिषेक, सुखजीत सिंह, ललित कुमार उपाध्याय, मनदीप सिंह, गुरजंत सिंह।
वैकल्पिक खिलाड़ी: नीलकंठ शर्मा, जुगराज सिंह, कृष्ण बहादुर पाठक।

गौरतलब है कि भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने आजादी के बाद 1948, 1952 और 1956 में लगातार तीन बार खिताब जीतकर हैट्रिक बनाई थी। इसके बाद पाकिस्तान ने 1960 के ओलम्पिक फाइनल में उस स्वर्णिम लय को तोड़ा था। हालांकि भारत ने 1964 में अपने पड़ोसी को एक बार फिर धूल चटाई थी, वहीं 1968 और 1972 के ओलम्पिक में कांस्य पदक के साथ संतोष करना पड़ा था। 1976 के संस्करण में वो तब तक के अपने सबसे निचले स्तर ,सातवें पायदान पर पहुंच गई थी। इसके बाद 1980 के ओलम्पिक खेलों में टीम से उतनी अपेक्षाएं नहीं थीं लेकिन 29 जुलाई 1980 को मॉस्को में भारतीय टीम ने फिर से खिताबी मुकाबले में परचम लहराया और गोल्ड मेडल अपने नाम किया। ये भारतीय हॉकी टीम का आठवां और आखिरी ओलम्पिक स्वर्ण पदक भी है।

मॉस्को ओलम्पिक 1980 में भारत की जीत का एक बड़ा कारण कई देशों का खेलों में हिस्सा न लेना भी रहा । इस संस्करण में सिर्फ छह टीमों ने भाग लिया था। इसमें 1976 ओलम्पिक की स्वर्ण पदक विजेता न्यूजीलैंड, रजत पदक विजेता ऑस्ट्रेलिया और कांस्य पदक विजेता पाकिस्तान भी शामिल नहीं था। जर्मनी, नीदरलैंड्स और ग्रेट ब्रिटेन ने भी इन खेलों में हिस्सा नहीं लिया था। इन सभी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में खेलों का बहिष्कार करने का फैसला किया था जिसका कारण सोवियत संघ का अफगानिस्तान में दखल था।

पहले ही मैच में तंजानिया को भारत ने 18-0 से हराया था भारत ने वासुदेवन भास्करन के नेतृत्व में युवा टीम उतारी थी जिसके पास प्रतिभा की कमी नहीं थी। भास्करन और बीर बहादुर छेत्री को छोड़कर बाकी टीम के खिलाड़ी अपना पहला ओलम्पिक खेल रहे थे। भारत ने पहले ही मैच में तंजानिया को 18-0 के विशाल अंतर से हराया था। इस मैच में सुरिंदर सोढ़ी ने पांच, देविंदर सिंह ने चार, भास्करन ने चार, जफर इकबाल ने दो, मोहम्मद शाहिद, मार्विन फर्नांडेज और कौशिक ने भी एक-एक गोल किए थे।
लगातार दो मैच रहे ड्रॉ जीत के साथ शुरुआत के बाद भारतीय टीम लगातार दो मैच सिर्फ ड्रॉ कराने में सफल रही थी। पोलैंड के साथ भारत ने 2-2 से ड्रॉ खेला और फिर स्पेन के साथ भी मुकाबला 2-2 से बराबरी पर रहा था।

क्यूबा और रूस को दी थी मात

भारत ने पहले क्यूबा को 13-0 से मात दी थी। इस मैच में सुरिंदर ने चार, शाहिद ने दो, देविंदर, राजिंदर अमरजीत राणा ने दो-दो गोल दागे थे वहीं भास्करन ने एक गोल किया था। इसके बाद भारत ने अगले मैच में मेजबान रूस को 4-2 से पटखनी दी थी।

स्पेन को हरा जीता था खिताब

फाइनल मुकाबले में भारत ने शुरू से मजबूत खेल दिखाया और दूसरे हॉफ की शुरुआत तक तीन गोल की बढ़त ले ली थी लेकिन स्पेन ने लगातार दो गोल कर भारत को परेशानी में डाल दिया था। मैच में छह मिनट का समय बाकी था और मोहम्मद शाहिद ने भारत के लिए गोल कर दिया। दो मिनट बाद ही स्पेन के कप्तान जुआन अमत ने एक और गोल कर भारत को परेशानी में डाला लेकिन फिर आखिरी मिनट में भारतीय डिफेंस ने स्पेन को बराबरी का गोल नहीं करने दिया और स्पेन को 4-3 से हरा ओलम्पिक में आठवां स्वर्ण पदक अपने नाम किया था।

ओलिंपिक में भारत के नाम पदक
वर्ष पदक
1928 गोल्ड मेडल
1932 गोल्ड मेडल
1936 गोल्ड मेडल
1948 गोल्ड मेडल
1952 गोल्ड मेडल
1956 गोल्ड मेडल
1960 सिल्वर मेडल
1964 गोल्ड मेडल
1968 ब्रॉन्ज मेडल
1972 ब्रॉन्ज मेडल
1980 गोल्ड मेडल
2020 ब्रॉन्ज मेडल

भारत में हॉकी की शुरुआत
भारत में हॉकी की बात करें तो इसे ब्रिटिश सेना के रेजिमेंट में सबसे पहले शामिल किया गया था। भारत में सबसे पहले ये खेल छावनियों और सैनिकों द्वारा खेला गया। भारत में झांसी, जबलपुर, जालंधर, लखनऊ, लाहौर आदि क्षेत्रों में मुख्य रूप से हॉकी खेला जाता था। लोकप्रियता बढ़ने के चलते भारत में पहला हॉकी क्लब 1855 में कोलकाता में गठन किया गया था। इसके बाद मुंबई और पंजाब में भी हॉकी क्लब का गठन किया गया। 1928 से 1956 का दौर भारत के लिए स्वर्णिम काल रहा है। 1925 में भारतीय हॉकी संघ की स्थापना हुई थी। इंडियन हॉकी फेडरेशन ने पहला अंतरराष्ट्रीय टूर 1926 में किया था, जब टीम न्यूजीलैंड दौरे पर गई थी। इस दौरान भारतीय हॉकी टीम ने 21 मैच खेले और उनमें से 18 में जीत हासिल की। इसी टूर्नामेंट में ध्यानचंद जैसी दिग्गज शख्सियत को दुनिया ने पहली बार देखा था, जो आगे चलकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बने।

ओलम्पिक में भारत का पहला कदम

भारतीय हॉकी टीम ने ओलम्पिक में पहली बार 1928 में कदम रखा। भारत को 1928 के ओलम्पिक खेलों में ग्रुप ए में रखा गया था जिसमें बेल्जियम, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया की टीम थी। भारत ने यहां स्वर्ण पदक जीता। यहीं से भारतीय हॉकी टीम के सुनहरे अतीत की शुरुआत हुई थी और फिर भारत ने अब तक रिकॉर्ड 8 ओलम्पिक स्वर्ण पदक अपने नाम किए हैं।

हॉकी खेल की विशेषताएं

दुनिया के सबसे पुराने खेलों में से हॉकी एक है। इसकी शुरुआत 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजों द्वारा की गई थी। हॉकी खेल के बारे में बात करें तो हर खेल की तरह इसमें भी दो टीमें होती हैं। टॉस होता है और जीतने वाली टीम स्ट्राइक लेती है। प्रत्येक टीम में 11-11 खिलाड़ी होते हैं, जिसमें एक गोलकीपर, चार डिफेंडर, तीन मिडफील्डर और तीन अटैकर होते हैं। इसके साथ ही पांच खिलाड़ी सबस्टिट्यूट के तौर पर बाहर होते हैं। हॉकी के मैदान की लंबाई 91.4 मीटर और चौड़ाई 55 मीटर होती है। गोलपोस्ट की चौड़ाई 3.66 मीटर और ऊंचाई 2.14 मीटर होती है। इस मैदान का आकार आयताकार होता है। खेल का मैदान एक विशेष घास से ढका रहता है। इस घास को सिंथेटिक घास कहते हैं। मैदान के बीचों-बीच एक मध्य रेखा होती है जो मैदान को दो भागों में बांटती है। हॉकी स्टिक की लंबाई सामान्य तौर पर 105 सेमी होती है। इसका वजन 737 ग्राम से अधिक नहीं हो सकता है। फील्ड हॉकी मैच खेलने की अवधि 60 मिनट होती है। हॉकी गेंद की बात करें तो यह सफेद रंग की होती है। इसका वजन 156 ग्राम से लेकर 163 ग्राम तक हो सकता है और इसकी परिधि 22.4 से 23.5 सेमी तक होती है। हॉकी में पेनल्टी कॉर्नर, पेनल्टी स्ट्रोक, फ्री हिट और लॉन्ग कॉर्नर जैसी शब्दावली इस्तेमाल की जाती है।

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