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विश्व कप जिताने में मदद करने वाले कोच क्या कहते हैं सचिन और धोनी के बारे में?

विश्व कप जिताने में मदद करने वाले कोच क्या कहते हैं सचिन और धोनी के बारे में?

मुंबई के वानखेड़े मैदान में साल 2011 में कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने शानदार छक्के लगाकर भारत को एकदिवसीय विश्व कप में जीत दिलाई थी। बाएं हाथ के बल्लेबाज गौतम गंभीर और महेंद्र सिंह धोनी के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने 28 साल बाद विश्व कप जीता। इस जीत के बाद मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को युवा भारतीय खिलाड़ियों ने उन्हें कंधों पर बैठाकर पूरा मैदान का चककर लगया था। सचिन के साथ एक और व्यक्ति को उस दिन खिलाड़ियों ने कंधों पर बिठाया था। वह भारत के कोच गैरी कर्स्टन लेनिनी थे उन्होंने हाल ही में मीडिया को एक इंटरव्यू दिया उसमें उन्होंने टीम इंडिया और खिलाड़ियों के साथ अपने अनुभव को साझा किया।

कर्स्टन ने कहा, “मैं टीम इंडिया में सबसे आसानी से सचिन के साथ काम करने में सक्षम था। तेंदुलकर के मूल्यों और शिक्षा ने मेरे लिए उनके साथ काम करना मुश्किल नहीं बनाया। 2011 में मैंने नया विराट देखा। जब मैंने उनके खेल में एक उज्ज्वल भविष्य देखा और अब वह वास्तव में एक अनुभवी खिलाड़ी हैं। मैं भारतीय टीम की कोचिंग करके बहुत खुश था। मैं उस टीम का नेतृत्व करने के लिए भाग्यशाली था और मुझे इस पर गर्व है। सभी भारतीय खिलाड़ियों को विश्व कप जीतने की उम्मीद थी और उन्होंने उस उम्मीद को पूरा भी किया। यह एक अद्भुत यात्रा था मेरा।”

कर्स्टन ने तत्कालीन कप्तान धोनी के बारे में कहा, “महेंद्र सिंह धोनी एक महान क्रिकेटर हैं। वह अपनी बुद्धिमत्ता, शांत स्वभाव, विचार क्षमता, फिटनेस, चपलता और मैच जीतने के दृढ़ संकल्प के कारण अन्य खिलाड़ियों से अलग है। यह इन गुणों के कारण है कि वह आधुनिक क्रिकेट के महानतम क्रिकेटरों में से एक है। उसे यह तय करने का अधिकार है कि वह अपनी योग्यता के आधार पर सेवानिवृत्ति कब स्वीकार करे। किसी और को उसे सलाह नहीं देनी चाहिए।”

बता दें महेंद्र सिंह धोनी भारतीय टीम के सबसे सफलतम कप्तान हैं। धोनी कि कप्तानी में भारत ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत ने टी20 वर्ल्ड कप, चैम्पियंस ट्रॉफी और वनडे विश्व कप इन्हीं की कप्तानी में ही जीता। टीम को विश्व क्रिकेट में ताकतवर बनाने में धोनी का भी अहम योगदान रहा है। जब उन्हें कप्तान बनाया गया था तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक दिन वे इतने सफल होंगे। धोनी की क्रिकेट के मैदान पर समझ बहुत शानदार रही है जो उन्हें अन्य कप्तानों से अलग बनाती है। कई बार विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने शांत स्वभाव से बेहतरीन काम किया है।

धोनी ने अपने कप्तानी करियर में कई चौंकाने वाले निर्णय भी लिए और टीम को उनसे फायदा भी हुआ। यह विपक्षी कप्तान के लिए यह समझना मुश्किल होता था कि धोनी की अगली चाल क्या होगी। जिस चीज की उम्मीद कोई नहीं करता था, वह धोनी करके चौंका देते थे। फिनिशर की भूमिका में धोनी ने अपना काम किया है लेकिन बतौर कप्तान भी उन्होंने शानदार सोच दर्शाई है।

2007 में पाकिस्तान के खिलाफ टी 20 विश्वकप में मैच टाई होने के बाद बॉल आउट के समय धोनी ने काफी सोचकर खिलाड़ियों का चयन किया। हरभजन और सहवाग के साथ उन्होंने उथप्पा को भी गेंद फेंकने के लिए चुना। उनका यह फैसला सही भी साबित हुआ और उथप्पा ने अपनी बारी आने पर गेंदबाजी करते हुए गेंद स्टंप में डाली और भारत को उसके बाद के स्कोर पर रोक दिया।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बेंगलुरु में डेब्यू टेस्ट की पहली पारी में फ्लॉप रहने के बाद धोनी ने पुजारा को दूसरी पारी में तीन नम्बर पर द्रविड़ से पहले भेज दिया। पुजारा को इससे आत्म-विश्वास मिला और उन्होंने 72 रन बनाए। टीम ने मैच जीता और बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में बढ़त प्राप्त की।

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