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करिश्माई वार्न का अचानक जाना

  •    पंकज शर्मा

चार जून 1993 को ओल्ड ट्रेफर्ड ग्राउंड में एशेज ट्रॉफी का पहला टेस्ट मैच खेला जा रहा था। ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी सस्ते में निपट चुकी थी। इंग्लैंड की बल्लेबाजी अच्छी चल निकली थी। पिच पर धुरंधर बल्लेबाज माइक गेटिंग थे। दूसरी तरफ एक ऐसा गेंदबाज था, जो अपनी पहचान के लिए जूझ रहा था। वह बारह-तेरह टेस्ट मैच खेलकर भी कुछ खास नहीं कर पाया था। लेकिन इस मैच में कुछ और ही करिश्मा होना था। एक ऐसा करिश्मा जिसकी कोई उम्मीद नहीं कर रहा था। तब वार्न ने दो कदम रनअप लेकर गेंद फेंक दिया था। पिच पर टप्पा खाने के बाद बाहर जाती गेंद को माइक गेटिंग निश्चिंत होकर छोड़ देते हैं। गेंद जादुई तरीके से नब्बे डिग्री घूमती है और वे क्लीन बोल्ड हो जाते हैं। गेटिंग को काठ मार देता है। ऐसा लगता है मानो पिच पर वे जड़ हो गए हो। उनके लिए समझ पाना जटिल था कि आखिर हुआ क्या?

वार्न की उस गेंद पर पूरी दुनिया झूम उठती है। 13 सितंबर 1969 को जन्मे चौबीस वर्षीय शेन कीथ वार्न महज एक गेंद फेंक वार्न पूरी दुनिया में छा जाते हैं। उस गेंद को ‘वॉल ऑफ द सेंचुरी’ का नाम दिया जाता है। कल तक जिस खिलाड़ी को ठीक-ठाक तरीके से कोई जानता तक नहीं था, उनके करिश्माई गेंद पर पूरी दुनिया उन पर फिदा हो गई। शेन चमकते सितारे की तरह क्रिकेट के ग्राउंड में लगभग सत्रह वर्षों तक जगमगाते रहे। 4 मार्च की रात अचानक दिल का दौरान पड़ने से बावन वर्ष के संक्षिप्त जीवन जीने के बाद शेन वॉर्न का निधन हो गया। वे अपने कुछ दोस्तों के साथ हालैंड छुट्टियां मनाने गए हुए थे। शेन हमेशा अपनी गेंदबाजी से चौंकाते रहे। पूरी दुनिया उनके फेंके गए गेंदों को एकटक देखती रही। उनकी उपस्थिति मात्र से पूरे ग्राउंड में शोर मचने लगता था। वे चुपचाप इस तरह से दुनिया से कूच करेंगे इस बात पर यकीन करना सरल न था। चौंकाना शेन वार्न की फितरत में शुमार हो चुका था।


वार्न से भारत का रिश्ता अटूट था। उन्होंने अपना डेब्यू मैच भारत के खिलाफ सिडनी में 2 जनवरी 1992 में खेला था। 2007 में जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने से पहले टेस्ट विकेट को एक ऐसा अनोखा पहाड़ खड़ा कर दिया, जिसे छू पाना सिर्फ मुथैय्या मुरलीधरण के वश में ही था। उन्होंने कुल 145 टेस्ट मैच खेले और 708 विकेट अपने नाम दर्ज किए। क्रिकेट शेन का जुनून था। उस दौर में क्रिकेट की पिच पर तेज गेंदबाजों का परचम लहराता था। वार्न ने अपनी लेग स्पिन से न केवल बल्लेबाजों को छकाया बल्कि स्पिन क्रांति का बिगुल फूंक दिया। दुनिया के हर छोटे-बड़े ग्राउंड में क्रिकेट का ककहरा सीखते नवयुवक के लिए शेन वार्न एक जरूरी सिलेबस की तरह हो गए थे। अपने दो सधे हुए कदमों से नाप कर जब वे गेंद फेंकते थे, तब बड़े से बड़े बल्लेबाज के लिए समझ पाना दुष्कर हो जाता था कि उसे बैक फुट पर खेले अथवा फ्रंटफुट पर। जब तक बल्लेबाज कुछ निर्णय कर पाते, तब तक गेंद विकेट से जा टकराती और बल्लेबाज बेसुध होकर पैवेलियन लौट आते। वार्न की बलखाती गेंदों को खेलना किसी के लिए आसान नहीं था। पूरी दुनिया के बल्लेबाजों में सचिन तेंदुलकर एकलौते ऐसे बल्लेबाज थे जिन्होंने शेन को परखा था।

इसलिए ‘क्रिकेट के भगवान’ उनके सपने में अक्सर आते-जाते रहते थे। शेन वार्न की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से विदाई हुई तब वे भारतीय प्रीमियम लीग का हिस्सा बने। पहले एक खिलाड़ी के तौर पर, फिर राजस्थान रॉयल के कोच के रूप में। एकदम नए खिलाड़ियों से सजी टीम पर किसी को यकीन न था कि वह इस सीरीज को जीत पाएगी। क्रिकेट के पंडितों ने राजस्थान रॉयल को नौसिखिया करार दे चुके थे। अपने जीते जी लगभग किवदंती बन चुके वार्न के लिए भविष्यवाणी करना किसी जोखिम की तरह ही था। वार्न ने एक कोच के रूप में जादू बिखेरा और राजस्थान रॉयल चैम्पियन बन कर उभरी। शुरुआती आईपीएल में ही शेन का सिक्का चल पड़ा था। एक बार फिर से भारत का हर क्रिकेट प्रेमी शेन का मुरीद बन गया था।
शेन जितने क्रिकेट के मैदान में चर्चित रहे, उतने ही मैदान के बाहर भी उनका विवादों से गहरा नाता रहा। उनके ऊपर कई तरह के आरोप लगे।

क्रिकेट के करियर की शुरुआती दिनों में उन पर आरोप लगा था कि मौसम और पिच की जानकारी उन्होंने सट्टेबाजों को दे दी थी। उन्हें क्रिकेट खेलने पर एक साल का प्रतिबंध झेलना पड़ा। शेन के लिए वह दौर किसी बुरे ख्वाब की तरह था। एक चमकदार करियर पर बदनुमा दाग लग चुका था। पर वे एक फाइटर थे। क्रिकेट के ग्राउंड से बाहर न निकले और कमेंट्री के पेशे को थाम लिया। एक साल बीतने के बाद फिर गेंद से करिश्मा करने का सिलसिला चल पड़ा। अपने क्रिकेट करियर के सबसे ऊंचाई पर जब शेन पहुंचे तब वे डोप टेस्ट में फेल हो गए। फिर उनके खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

शेन वार्न अपने निजी जीवन के मैदान पर भी उलटफेर करते रहे और सुर्खियों में छाए रहे। 1995 में सिमोन कालाहन से परिणय सूत्र में बंधे। उन पर आरोप लगा कि शादी के बाद उनके कई महिला मित्रों से संबंध रहे। शादी, तलाक और अफेयर के बीच शेर्न का जीवन झूलता रहा। वॉर्न कभी-कभार ही अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन किया करते थे। कई बार तो अपने ऊपर लगे आरोप को सहजता से स्वीकार भी किया। अपनी गलतियों को स्वीकार करने की अदा उन्हें बड़ा बनाती रही।
वास्तव में, वे क्रिकेट के मैदान में एक फाइटर की तरह लड़े और जीवन के मैदान में भी। क्रिकेट उनके जीवन का सबसे बड़ा आधार था। वे जब कभी अपनी टीम से बाहर हुए, अपनी पूरी ताकत से दोबारा वापस किया। उनके रहते ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम को जीतने की आदत-सी लग गई थी। टेस्ट मैच हो या एकदिवसीय, शेन जीत की गारंटी थे।

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