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फिर शर्मसार हुआ खेल

खेल और खेल भावना को हमेशा सकारात्मक अर्थों में लिया जाता है। माना जाता है कि यह मनुष्य को सेहतमंद बनाने के साथ उसके भीतर सद्भावना का भी विकास करता है। लेकिन पिछले कुछ समय से खेलों में हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ताजा मामला पिछले हफ्ते फीफा वर्ल्ड कप में देखने को मिला। इस पूरे वाकया ने खेल जगत को शर्मसार कर दिया है

फीफा विश्व कप 2022 में फुटबॉल के बेहतरीन मैच देखने को मिल रहे हैं। इस बीच रूस में एक फुटबॉल मैच के दौरान ऐसा नजारा दिखा, जिसे कोई भी फुटबॉल फैन नहीं देखना चाहेगा। दो टीमों के खिलाड़ी मैच के दौरान आपस में भिड़ गए और एक-दूसरे पर जमकर लात-घूंसे चलाए। मैच रेफरी और अन्य अधिकारियों ने बीच-बचाव की कोशिश की, लेकिन सारे प्रयास असफल रहे। अंत में छह खिलाड़ियों को रेड कार्ड दिखाया गया और मैदान से बाहर कर दिया गया। जेनिट और स्पार्टक के बीच यह मुकाबला पेनाल्टी शूटआउट तक पहुंचा और यहां जेनित की टीम ने 4-2 के अंतर से जीत हासिल की।

रूस कप के इस मुकाबले में दोनों टीमें पूरे मैच में गोल नहीं कर पाई थीं। ऐसे में इंजरी टाइम में दोनों टीमों के खिलाड़ी गोल करने की कोशिश कर रहे थे। इंजरी टाइम के दौरान मैच के 90वें मिनट में स्पार्टक की टीम ने अपने हाफ से फ्री किक ली। इस दौरान क्वैंसी प्रोम्स और विलियम बैरियोस आपस में टकरा गए। दोनों खिलाड़ियों के बीच कुछ बातचीत भी हुई। इसके बाद दोनों खिलाड़ी आपस में भिड़ गए। दोनों के समर्थन में उनके साथी खिलाड़ी और स्टाफ भी पहुंच गया। इसके बाद दोनों टीमों के बीच जमकर मारपीट हुई।

फुटबॉल के मैदान पर ये नजारे बेहद दुखद हैं। इस लड़ाई के दौरान रेफरी एक-एक कर खिलाड़ियों को रेड कार्ड दिखा रहे थे। उन्होंने एक के बाद एक लगातार छह खिलाड़ियों को रेड कार्ड दिखाए। फैंस रेफरी को देखकर सोशल मीडिया पर मजे ले रहे हैं। इस झगड़े की शुरुआत रोड्रिगाओ प्राडो ने की थी। जेनिट के लिए 55 नंबर की जर्सी में खेलने वाले प्राडो सबसे पहले इस झगड़े में शामिल हुए और मारपीट की शुरुआत की, लेकिन रेफरी ने उन्हें रेड कार्ड नहीं दिया। इस दौरान मैच से रेफरी का कंट्रोल पूरी तरह खत्म हो गया। दोनों टीमों के सब्स्टीट्यूट खिलाड़ी और कोच भी मारपीट का हिस्सा बने। खास बात यह है कि जिन छह खिलाड़ियों को रेड कार्ड मिले वह प्लेइंग 11 का हिस्सा नहीं थे। दोनों टीमों के तीन-तीन खिलाड़ियों को रेड कार्ड दिया गया। अंत में मैच पेनल्टी शूटआउट में खत्म हुआ। जहां जेनिट ने 4-2 से जीत हासिल कर समर्थकों को जश्न मनाने का मौका दे दिया।

गौरतलब है कि खेल और खेल भावना को हमेशा सकारात्मक अर्थों में लिया जाता है। माना जाता है कि यह मनुष्य को सेहतमंद बनाने के साथ उसके भीतर सद्भावना का भी विकास करता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंसक संघर्ष और होड़ को खेलों के मानकीकरण का नया आधार बनाया जा रहा है। इस कारण कई ऐसे खेल हमारे आस-पास से लेकर बड़े आयोजनों तक में तरजीह पा रहे हैं जिनसे मनुष्य के भीतरी सद्भाव तो कम होता ही है, ऊपर से एक हिंसक सनक तेजी से जोर पकड़ती है। जैसा कि पिछले कुछ समय से देखने को मिल रही है। ताजा मामला पिछले हफ्ते फीफा वर्ल्ड में देखने को मिला। जिसमें मैच के दौरान दो टीमों के खिलाड़ियों के बीच हिंसक झड़प हुई। इस वाकया ने पूरे खेल जगत को शर्मसार करके रख दिया है।

खेल के मैदान से सड़कों तक पहुंची हिंसा

खेल के मैदान हुए मौत का तांडव
दो महीने पहले इंडोनेशिया में फुटबॉल मैच के बाद खेल के मैदान हुए मौत के तांडव ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। इस भयावह हिंसा में 174 लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना तब हुई जब इंडोनेशिया में पूर्वी जावा के मलंग रीजेंसी के कंजुरुहान स्टेडियम में इंडोनेशियाई लीग बीआरआई लीगा-1 का एक फुटबॉल मैच खेला गया था। यह मैच अरेमा एफसी और पर्सेबाया सुरबाया के बीच खेला गया। जहां अरेमा की टीम हार गई। इस हार के बाद अरेमा के फैंस भड़क गए और मैदान में घुस गए। पुलिस ने किसी तरह खिलाड़ियों को बचाया और उपद्रवियों को काबू में करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे जिससे खचाखच भरे स्टेडियम में भगदड़ मच गई। कुछ लोग अधिकारियों को पीटने लगे। यहां तक कि कई गाड़ियों को आग के भी हवाले कर दिया गया। जिसके बाद भगदड़ मच गई और सैकड़ों लाशें मैदान में बिछ गईं।

इस भगदड़ में कई लोग कुचले गए और मारे गए। वहीं कुछ की मौत दम घुटने से हो गई। मरने वालों में एक 5 साल का बच्चा भी शामिल था । लोग बचने के लिए बाहर जाने वाले एक ही गेट पर इकट्ठा हो गए थे। एक ही गेट पर भीड़ होने से लोगों को सांस लेने में दिक्कत आने लगी और ऑक्सीजन की कमी के कारण कुछ लोगों ने गेट के पास ही दम तोड़ दिया। फुटबॉल मैचों के खूनी इतिहास पर नजर डालें तो अब तक की सबसे बड़ी हिंसा 58 साल पहले 24 मई वर्ष 1964 में हुई थी। तब पेरू के नेशनल स्टेडियम में मैच खेला जा रहा था।

दोनों टीमों के बीच बचाव करते कोच

मुकाबला था अर्जेंटीना और पेरू के बीच। दोनों टीमें टोक्यो ओलंपिक में अपनी जगह पक्की करने के लिए मैदान में डटी थीं। अर्जेंटीना मैच खत्म होने से 2 मिनट पहले 1-0 से आगे चल रही थी। तभी पेरू ने गोला दागा लेकिन, मैच रेफरी ने गोल को अमान्य करार दिया। फिर गुस्साए पेरू के फैंस मैदान में आ धमके और तांडव मचाने लगे। पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई में आंसू गैस के गोले दागे और उपद्रवियों को खदेड़ा। इससे मैदान में भगदड़ मच गई। स्टेडियम का दरवाजा बंद होने की वजह से लोगों को बाहर जाने के लिए जगह नहीं मिली। इस कारण 320 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

जीत के बाद दंगे
कतर में खेले जा रहे फीफा वर्ल्ड के एक अहम मुकाबले में मोरक्को ने बेल्जियम को हरा दिया। बेल्जियम के समर्थक इस हार से बौखला गए और राजधानी ब्रसेल्स की सड़कों पर उतर आए। इसके बाद उन्होंने जमकर तोड़फोड़ की। सिर्फ बेल्जियम ही नहीं नीदरलैंड में भी इस हार के बाद दंगे भड़क गए। दरअसल फुटबॉल विश्वकप में बेल्जियम पर मोरक्को की 2-0 से जीत के बाद बेल्जियम और नीदरलैंड के कई शहरों में दंगे भड़क उठे। ब्रसेल्स में भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने पानी की बौछार छोड़ी और आंसू गैस के गोले भी दागे।

पुलिस ने ब्रसेल्स में करीब एक दर्जन लोगों को हिरासत में लिया, जबकि उत्तरी शहर एंटवर्प में भी आठ लोगों को पकड़ा गया है। ब्रसेल्स पुलिस की प्रवक्ता इल्से वैन डे कीरे के मुताबिक कई दंगाई सड़कों पर उतर आए और कारों, ई-स्कूटरों में आग लगा दिया। आंतरिक मंत्री एनेलीज वेरलिंडेन ने कहा, ‘यह देखना दुखद है कि किस तरह से मुट्ठी भर लोग स्थिति को खराब कर रहे हैं।’

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