टीम इंडिया के सबसे सफल कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया है।लंबे समय से अटकलें लगाई जा रही थी कि एम एस धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के कब विदाई लेंगे।आखिरकार आज वो दिन आ ही गया।
इसके बाद उनका सफर आगे बढ़ता गया और टीम एक से बढ़कर एक नई कामयाबी हासिल करती रही। फिर वक्त आया साल 2011 का जब भारत में वनडे वर्ल्ड कप का आयोजन किया गया। ये टीम इंडिया के लिए सुनहरा मौका था अपनी धरती पर अपने फैंस के सामने फिर से दूसरी बार वनडे वर्ल्ड कप खिताब जीतने का। माही की अगुआई में टीम इंडिया ने वर्ल्ड कप में अपना सफर शुरू किया और 28 साल के बाद धोनी ने एक बार फिर से देशवासियों को वो खुशियां दी जिसका इंतजार 1983 के बाद से लगातार किया जा रहा था। माही ने भारत को दूसरा वनडे वर्ल्ड कप खिताब दिलाया।
धौनी की सफलता का करवां यही नहीं रुका वो आगे बढ़ते रहे, टीम इंडिया भी आगे बढ़ती रही और फिर साल 2013 में उन्होंने आइसीसी चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब भी टीम को दिलवाया। उनकी कप्तानी में भारत ने दो बार यानी साल 2010 और 2016 में एशिया कप खिताब भी जीता था। माही दुनिया के एकमात्र कप्तान हैं जिन्होंने आईसीसी के सारे खिताब अपनी कप्तानी में जीते। महेंद्र सिंह धौनी ने टेस्ट की कप्तानी भी पूरी दुनिया को चौंकाते हुए अचानक से छोड़ दी थी और एक बार फिर से उन्होंने अपने चाहने वालों को चौंकाते हुए एक बड़ा फैसला लिया है ।
अब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में माही का अंदाज तो हमें देखने को नहीं मिेलेगा। धौनी का नाम सामने आते ही उनका क अंदाज नजर के सामने आता है जो किसी भी परिस्थिति में अपना आपा नहीं खोता था। कप्तान के तौर पर तो वो हिट थे ही एक खिलाड़ी यानी बल्लेबाज व विकेटकीपर के तौर पर भी उन्होंने जो पहचान बनाई वो अपनेआप में काबिलेतारीफ है।
भारत के लिये उन्होंने 350 वनडे, 90 टेस्ट और 98 टी20 इंटरनैशनल मैच खेले। करियर के आखिरी चरण में वो खराब फॉर्म से जूझते रहे जिससे उनके भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जाती रहीं। उन्होंने वनडे क्रिकेट में पांचवें से सातवें नंबर के बीच में बल्लेबाजी के बावजूद 50 से अधिक की औसत से 10773 रन बनाए। टेस्ट क्रिकेट में उन्होंने 38.09 की औसत से 4876 रन बनाये और भारत को 27 से ज्यादा जीत दिलाईं। आंकड़ों से हालांकि धोनी के करियर ग्राफ को नहीं आंका जा सकता। धोनी की कप्तानी, मैच के हालात को भांपने की क्षमता और विकेट के पीछे जबर्दस्त चुस्ती ने पूरी दुनिया के क्रिकेटप्रेमियों को दीवाना बना दिया था। वो कभी जोखिम लेने से पीछे नहीं हटे। इसलिए 2007 टी20 विश्व कप का आखिरी ओवर जोगिंदर शर्मा जैसे नये गेंदबाज को दिया जो 2011 वनडे विश्व कप के फाइनल में फार्म में चल रहे युवराज सिंह से पहले बल्लेबाजी के लिए आए। दोनों बार भारत ने खिताब जीता।