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इटली ने तोड़ा इंग्लैंड का सपना 

दो सालों से कोरोना महामारी से हाहाकार मचा हुआ है । इस महामारी के चलते बीते साल  कई खेल इसकी भेंट चढ़ गए और कई खेलों को स्थगित करना पड़ा था। कई खेलों के कार्यक्रमों को बार – बार बदलना पड़ा। लेकिन अब जैसे ही कोरोना का प्रकोप थोड़ा कम हुआ तो खेल भी होने शुरू हो गए हैं। हाल ही में यूरो कप 2020 का फाइनल मुकाबला खेला गया। इस खिताबी मुकाबले में इटली ने इंग्लैंड को  पेनल्टी शूटआउट में मैच जीतकर दूसरी बार खिताब अपने नाम कर लिया। जबकि पहली बार टूर्नामेंट जीतने के इरादे से उतरी इंग्लैंड की टीम का सपना टूट गया। इसी के साथ स्टेडियम के अंदर और बाहर इंग्लिश फैंस के बीच मायूसी छा गई। मैच के बाद इंग्लैंड के कप्तान हैरी कैन की पत्नी कैटी गुडलैंड के आंसू छलक पड़े।

 

इसी के साथ इटली की टीम ने यूएफा यूरो कप जीतने का सपना फिर साकार किया है। हालांकि, यूरो कप का दूसरा खिताब जीतने के लिए इटली की टीम को एक या दो दशक नहीं, बल्कि पांच  दशक से ज्यादा का समय लगा है। वर्ष 1968 के बाद पहली बार इटली की टीम यूरोपियन चैंपियनशिप की विनर बनी है। लंदन के वेम्बली स्टेडियम में खेले गए इस महामुकाबले में मेजबान इंग्लैंड को हार झेलनी पड़ी, जबकि इटली की टीम ने शूटआउट में खिताबी जीत हासिल कर इतिहास रच दिया। 52 साल के बाद इटली की टीम को यूरो कप जीतने का मौका मिला है। यूरो कप 2020 के इस  फाइनल मुकाबले  में इटली ने शूटआउट के दौर में मेजबान इंग्लैंड को 3-2 से हरा दिया और इंग्लैंड का खिताब जीतने का सपना चकनाचूर कर दिया।

इटली और इंग्लैंड के बीच खेला गया ये मुकाबला निर्धारित समय और फिर अतिरिक्त टाइम में 1-1 से बराबरी पर रहा। ऐसे में नतीजा निकालने के लिए शूटआउट का सहारा लिया गया और इस शूटआउट में इटली ने 3-2 से बाजी मार ली। 55 साल पहले विश्व कप जीतने के बाद से इंग्लैंड अपने पहले बड़े फाइनल में हारकर वेम्बली की भीड़ के लिए दिल दहला देने वाला था। इंग्लैंड की टीम ने लंबे समय से कोई ट्रॉफी नहीं जीती है।

 

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इस बड़े मैच में स्टार खिलाड़ी और कप्तान हैरी केन और स्टार्लिंग का जलवा पूरी तरह गायब दिखा, जिसका खामियाजा इंग्लैंड को भुगतना पड़ा। इंजुरी टाइम तक मुकाबला बराबरी पर रहने के बाद पेनल्टी शूटआउट का पहला शॉट इंग्लिश कप्तान हैरी केन ने लिया और गेंद जाल में उलझा दी। इसके बाद इटली के डॉमेनिको बेरार्डी ने भी गोल दागने में कामयाबी हासिल की। इंग्लैंड के हैरी मैग्यूरे ने भी गोल दागा, जबकि इटली के आंद्रे बेलोटी चूक गए। इंग्लैंड के पास 2-1 की बढ़त थी, लेकिन इसके बाद इटली के लिए बुनाची और फेडेरिको ने दनादन गोल दागते हुए 3-2 का अंतर कर दिया। दूसरी ओर, इंग्लैंड के मार्कस रशफोर्ड, जादोन सांचो और बुकायो साका ऐसा करने में असफल रहे और इटली की टीम जीत गई।

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इटली को विजेता के रूप में 1 अरब 3 करोड़ पचास लाख रूपए की राशि दी गई

 

यूरो कप जीतने पर इटली को मिली भारी भरकम रकम 

 

इधर यूरो कप जीतने के बाद इटली की टीम को भारी भरकम इनामी राशि मिली।  इटली को विजेता के रूप में 1 अरब 3 करोड़ पचास लाख रूपए की राशि दी गई , जबकि उपविजेता इंग्लैंड की टीम को 72.48 करोड़ रूपए से संतोष करना पड़ा।

 


सेमीफाइनल खेलने वाली टीम स्पेन और डेनमार्क

 

दो सेमीफाइनलिस्ट को मिला पांच -पांच  मिलियन

 

यूरो कप 2020 की दो सेमीफाइनलिस्ट को इनाम के तौर पर 5-5 मिलियन की राशि दी गई। भारतीय रुपये के अनुसार करीब 44 करोड़ रुपये की इनामी राशि सेमीफाइनल खेलने वाली टीम स्पेन और डेनमार्क को दिया गया।

 

इटली और स्पेन में टूर्नामेंट में दागे बराबर गोल

 


इटली और स्पेन ने पूरे टूर्नामेंट में एक जैसा प्रदर्शन दिखाया. दोनों टीमों ने टूर्नामेंट में 13-13 गोल दागे। ग्रुप लीग मैचों में इटली की टीम ने सभी मुकाबले जीतकर टॉप पर रही।  ग्रुप ए में इटली की टीम 3 में से 3 मुकाबले जीतकर 9 अंक लेकर टॉप पर मौजूद रही , जबकि ग्रुप डी में इंग्लैंड की टीम 3 में से दो मुकाबचले जीतकर 7 अंक लेकर टॉप पर रही और  एक मुकाबला इंग्लैंड का ड्रॉ रहा।


इंग्लैंड की टीम

 

 

55 सालों से इंग्लैंड को यूरो कप ट्रॉफी का है इंतजार

 

इंग्लैंड की टीम जिसे फुटबॉल का जनक माना जाता है।  पिछले 55 सालों से यूरो कप ट्रॉफी का इंतजार है।  इंग्लैंड का किसी बड़े खिताब का पिछले पांच दशकों से भी अधिक समय से चला आ रहा इंतजार जारी रहा।  इंग्लैंड पिछले 55 वर्षों में पहली बार किसी बड़े टूर्नामेंट का फाइनल खेल रहा था।  उसने वर्ष 1966 में विश्व कप में जीत के बाद कोई बड़ा खिताब नहीं जीता है।  इससे पहले उसने 1990, 1996, 1998, 2004, 2006 और 2012 में बड़े टूर्नामेंटों में पेनल्टी शूटआउट में मैच गंवाये थे।

दूसरी तरफ अगर बात करें इटली की तो इटली वर्ष 2018 वर्ल्ड कप में जगह बनाने से चूक गया था। 60 साल में यह पहली बार था जब इटली वर्ल्ड कप में नहीं खेलने वाला था। अगले दिन देश के प्रमुख स्पोर्ट्स पेपर ‘ला गजेट्टा डेलो स्पोर्ट’ में हेडलाइन थी- ला फिने  यानी दी एंड। इटैलियन फुटबॉल पर अंधेरा छा गया, लेकिन एक नया सवेरा भी दूर नहीं था।

यहां से थोड़ा और पीछे चलें तो 1990 का फुटबॉल विश्व कप रोबर्टो मैनचीनी के करियर का सबसे यादगार टूर्नामेंट होने वाला था। 25 साल की उम्र में अपने क्लब सैम्पडोरिया को यूएफा कप विनर्स कप का खिताब दिलाने के बाद मैनचीनी अब अपने ही देश इटली में होने वाले वर्ल्ड कप में चमकने के लिए तैयार थे, लेकिन मैनचीनी का यह सपना साकार नहीं हो पाया। इटली के क्लब फ़ुटबॉल का स्टार होने के बावजूद मैनचीनी को पूरे टूर्नामेंट में एक भी मिनट खेलने को नहीं मिला।

चार  साल बाद उनके पास 1994 वर्ल्ड कप में खेलने का मौका था, लेकिन टूर्नामेंट शुरू होने से तीन महीने पहले कोच अरिगो साची से नाराज होकर उन्होंने वर्ल्ड कप में नहीं खेलने का फैसला किया और महज 29 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल से संन्यास ले लिया। कई सालों बाद उन्होंने माना कि यह एक बहुत बड़ी गलती थी।

इटली की जर्सी में अपना आखिरी मैच खेलने के लगभग 24 साल बाद मैनचीनी को एक बार फिर इटली की टीम का हिस्सा होने का मौका मिला, लेकिन इस बार कोच के रूप में मैनचीनी ने अपना कोचिंग करियर महज 37 साल की उम्र में शुरू किया, जब उन्हें 2001 में फियोरेंटिना की जिम्मेदारी दी गई। अगले 17 साल उन्होंने इटली के अलावा इंग्लैंड, टर्की और रूस में अलग-अलग क्लब्स के साथ कई खिताब जीते।

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