भारत में क्रिकेट एक अलग धर्म के रूप में देखा जाता है। जब क्रिकेट के मैच होते हैं तो लोग अपने सारे काम छोड़कर टेलीविजन से चिपक जाते हैं। अगर क्रिकेट में विश्व कप की बात करें तो मैच के दौरान सड़कें वीरान हो जाती हैं। इसी तरह भारत-पाकिस्तान का मैच हो तो लोग उसे युद्ध के रूप में देखते हैं। समय को बड़ा बलवान माना जाता है। अगर समय का पहिया पटरी पर सवार हो तो उसकी रफ्तार के आगे बड़ी-से- बड़ी मुश्किलें आसानी से हल हो जाती हैं। फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले कालचक्र की गति जब रुकती है, तब इंसान को राजा से भिखारी बनने में सिर्फ पल भर का समय लगता है। कुछ यही हाल देश के उन खिलाड़ियों का है जो कभी अपनी खेल प्रतिभा का जौहर दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। अपने हुनर के बलबूते खेल प्रेमियों की आंखों का तारा बनने वाले खिलाड़ी कभी सपने में भी नहीं सोचे होंगे कि किस्मत की लकीरों के गर्दिश में जाते ही दुनिया उन्हें इस तरह भुला देगी कि उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होगा। इसी तरह जो भी कभी देश के लिए खिताब जीतकर अखबारों की सुर्खियां बना करता था, उसका नाम अब कहीं नहीं है।
साल 1998 में भालाजी डामोर भारतीय दिव्यांग (नेत्रहीन) क्रिकेट टीम का हीरो हुआ करता था। उनके नाम सबसे अधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड दर्ज है। वो नाम शायद आप के लिए अनसुना-सा हो लेकिन उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन के हाथों ‘मैन ऑफ द सीरीज’ के खिताब से भी नवाजा जा चुका है। गुजरात स्थित अरावल्ली जिले में रहने वाले नेत्रहीन क्रिकेटर भालाजी डामोर साल 1998 में भारत में आयोजित 7 देशों के ब्लाइंड वर्ल्ड कप में भारतीय टीम के हीरो थे। भारत की ओर से डामोर ने 125 मैचों में 150 विकेट और 3125 रन बनाए हैं। उन्होंने उस वर्ल्ड कप में सर्वाधिक विकेट लेने का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया था। लेकिन आज वे
आर्थिक तंगी के चलते सुदूर गांव में भैंस चराने पर मजबूर हैं। पता नहीं क्या कारण रहे हों, हो सकता है सरकार की अनदेखी हो या कुछ और। तकरीबन 1500 की आबादी वाले इस छोटे से गांव पीपराणा में रहने वाले 38 वर्षीय भलाजी आज गांव में भैंसों को चराकर अपनी जीविका चला रहे हैं। महज तीन हजार महीने की आमदनी पर अपनी जीविका चलाने वाले भालाजी की पत्नी खेतों में काम कर घर की आर्थिक हालत को सुधारने में अथक सहयोग करती तो हैं, लेकिन अपर्याप्त आय के कारण घर की स्थिति जस की तस बनी हुई है। वैसे तो कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में देश का नाम रोशन किया है। लेकिन कुछ समय बाद ही वे सिर्फ इतिहास बनकर कहीं दबे पड़े अखबारों के धूल खा रहे पन्नों के नीचे गुमनाम हो गए हैं। आज इन खिलाड़ियों की हालत यह है कि दो वक्त की रोटी के लिए वे जद्दोजहद कर रहे हैं। क्रिकेट में अपना जौहर दिखाने वाले भालाजी को अगर सरकार की तरफ से जरा सी मदद मिली होती तो आज वे अच्छे मुकाम पर होते। लेकिन, सरकार की उपेक्षा ने उन्हें हताश कर दिया है। आलम यह है कि अब वे खराब आर्थिक स्थिति से गुजर रहे हैं। घर की माली हालत के आगे हारकर वे टूट गए हैं। कहने के लिए तो सरकार खेल के नाम पर कई वादे करती तो है, लेकिन बहुत सारे खेल और खिलाड़ी अब भी ऐसे हैं, जिन्हें तवज्जो नहीं दी जाती। कुछ हद तक इन्हें मौका मिलता तो है, लेकिन समय के साथ- साथ उनके योगदान को भी भुला दिया जाता है। जिस तरह ढलते सूरज को देख लोग अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं ठीक उसी तरह बुरे वक्त में उन्हें भी नजरअंदाज कर दिया जाता है।
भारत ही नहीं दुनिया के सभी क्रिकेटरों को आज बड़े सम्मान से देखा जाता है। क्रिकेट का खेल ग्लैमर के साथ कमाई का बड़ा जरिया बन चुका है। आज के युवा क्रिकेट को अपने करियर के रूप में चुनने लगे हैं। भारतीय टीम के कप्तान विराट, सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धौनी, सौरव गांगुली सहित और भी कई क्रिकेटरों की कमाई करोड़ों में है।