उत्तराखण्ड अपने जन्म के साथ ही प्रदूषित राजनीति का शिकार हो चला था। मात्र 21 बरस के भीतर-भीतर इस पर्वतीय प्रदेश में भ्रष्टाचार, अनाचार और अनैतिकता ने अपनी जड़ों को इतना गहरा जमा डाला है कि अब यहां की राजनीति में ऐसे सभी तत्व सार्वजनिक शिष्टाचार का रूप ले चुके हैं। यहां के राजनेता सत्ता प्राप्ति के लिए किसी भी प्रकार का कदम उठाने से नहीं कतराते हैं। विचारधारा के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता का नामोनिशान नहीं रह गया है। हरियाणा की तर्ज पर यहां के नेता सुविधा अनुसार अपनी विचारधारा से समझौता करते रहते हैं। 2016 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए नौ विधायक इस आयाराम-गयाराम संस्कृति के उदाहरण हैं। अब खबर जोरों पर है कि इनमें से कुछ विधायक पांच बरस सत्ता सुख भोगने के बाद कांग्रेस वापसी के लिए बेताब हो चले हैं। ऐसों में वर्तमान सरकार के मंत्री हरक सिंह रावत का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है। पार्टियां बदलते रहने के आदि हरक सिंह की दाल लेकिन गल नहीं रही है। कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उनकी रिइन्ट्री के लिए हामी नहीं भर रहे हैं। खबर यह भी जोरों पर है कि हरक सिंह ने हरीश रावत के एक बेहद करीबी नेता को साध लिया है। ये नेता अब हरीश रावत को हरक सिंह की इन्ट्री के लिए मनाने में जुटे हैं। दूसरी तरफ खांटी कांग्रेसी नेता किशोर उपाध्याय भाजपा में जाने को खासे उत्सुक बताए जा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो यदि पार्टी टिकट की उन्हें गारंटी भाजपा आलाकमान देता है तो किशोर भगवामयी होने में देर नहीं लगाएंगे। राज्य की दोनों मुख्य पार्टियों के नेताओं का आना-जाना तब तक चलता रहना तय है जब तक दोनों ही दल अपने प्रत्याशियों की सूची घोषित नहीं कर देते।
तेज हुई आयाराम-गयाराम की राजनीति
