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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बढ़ता कद भाजपा भीतर ही कइयों को रास नहीं आ रहा है। मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी की राजनीति प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र तक सिमटी रही थी। जैसे ही उन्हें पार्टी ने अपने हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने की नीयत से सीएम बनाया, योगी का राजनीतिक कद पूर्वांचल से निकल यूपी के साथ-साथ पूरे देश में छा गया। उनकी बढ़ती लोकप्रियता का असर उनकी कार्य-शैली पर पड़ा है। भाजपा सूत्रों की माने तो अब योगी प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह तक के निर्देश आसानी से नहीं मानते। मोदी के विश्वस्त नौकरशाह अरविंद शर्मा को जिस तरह योगी ने उत्तर प्रदेश में पांव नहीं जमाने दिए उससे पार्टी आलाकमान की नाराजगी और चिंता में इजाफा हुआ है। कहा जा रहा है कि इसकी काट के लिए पार्टी नेतृत्व ने बकायदा रणनीति बनानी शुरू कर दी है। निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद को एमएलसी बनाए जाने के लिए योगी तैयार नहीं थे। लेकिन पीएम मोदी के चलते उन्हें ऐसा करना पड़ा। अब खबर है कि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी अकेले योगी को चेहरा बनाने के बजाए डिप्टी सीएम केशव मौर्य, संजय निषाद, दिनेश शर्मा समेत सभी जातियों के नेताओं को आगे कर मैदान में उतरेगी ताकि जीत का श्रेय अकेले योगी के खाते में न जाए। यह भी कहा जा रहा है कि यदि पार्टी 2022 के चुनावों में बहुमत के आंकड़े से दूर रहती है तो गठबंधन सरकार बनाने का प्रयास करेगी। ऐसे में सीएम तो भाजपा का ही बनेगा लेकिन योगी आदित्यनाथ नहीं बल्कि किसी नए चेहरे पर पार्टी आलाकमान दांव लगा सकती है।

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