उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यूं तो गोरखपुर शहरी सीट अत्यंत सुरक्षित मानी जा रही है, लेकिन उनकी राह में कांटे बिछाने का काम जिस तेजी से हो रहा है उससे वे अपने ही गढ़ में घिरते नजर आने लगे हैं। भीम आर्मी के मुखिया चन्द्रशेखर आजाद यहां से योगी के खिलाफ मैदान में ताल ठोक रहे हैं। दलित वोट का एक बड़ा हिस्सा चन्द्रशेखर की तरफ जाना निश्चित है। योगी के लिए एक बड़ी मुसीबत उनकी ही सहयोगी दल निषाद पार्टी बन चुकी है। दरअसल, निषाद पार्टी के सुप्रिमो संजय निषाद का एक स्टिंग ऑपरेशन उस चैनल में जमकर दिखाया गया जिसके कर्त्ताधर्ता मुख्यमंत्री के करीबी बताए जाते हैं। इससे नाराज निषाद कह रहे हैं कि ‘तेरे रहते लुटा है चमन बागवां, कैसे मान लूं तेरा इशारा न था।’ यदि योगी अपने रूठे सहयोगी को मनाने में नाकाम रहते हैं तो उन्हें गोरखपुर शहरी सीट पर बड़ा वोट बैंक कहे जाने वाले निषाद समाज की नाराजगी भारी पड़ सकती है। लखनऊ से लेकर गोरखपुर तक इस बात की बड़ी चर्चा है कि एक बड़े भाजपा नेता के इशारे पर भाजपा के दो सहयोगी दल निषाद पार्टी एवं अपना दल के तेवर योगी के खिलाफ जा रहे हैं। इतना ही मानो काफी नहीं था कि कभी योगी के अत्यंत विश्वस्त रहे पार्टी नेता और चार बार इस सीट से विधायक रहे राधा मोहन अग्रवाल भी अपना टिकट कट जाने के बाद से एंटी योगी हो चले हैं। 2002 में हुए लोकसभा चुनावों में योगी के इशारे पर राधा मोहन अग्रवाल ने भाजपा प्रत्याशी शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ चुनाव लड़ा था। शिव प्रताप चुनाव हार गए थे। पूर्वांचल की राजनीति में बड़े ब्राह्मण नेता शिव प्रताप शुक्ला कभी भी इस हार को भूले नहीं। 2016 में उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में वित्त राज्यमंत्री बना पार्टी आलाकमान ने योगी की नाराजगी मोल ली थी। अब इन्हीं शुक्ला को योगी के चुनाव का जिम्मा पार्टी ने सौंप दिया है। खबर है कि शुक्ला अंदर खाने योगी के खिलाफ चक्रव्यूह तैयार करने का काम कर सकते हैं।