कर्नाटक के सीएम बीएस येदुरप्पा लगातार संकटों से घिरे रहने के आदी बताए जाते हैं। एक समस्या से वे निपटते हैं तो दूसरी समस्या उनके रास्ते में रोड़ा अटकाने के लिए आ खड़ी होती है। कांग्रेस-जद (सेक्युलर) गठबंधन सरकार को गिराने और भाजपा की सरकार राज्य में बनाने का पूरा गेमप्लान येदुरप्पा ने रचा था। इसमें वे सफल भी हुए और सीएम भी बन गए। लेकिन भाजपा आलाकमान ने उनको काबू में रखने की नीयत से तीन उपमुख्यमंत्री भी बना डाले। इतना ही मानो काफी नहीं था कि उन्हें लंबे अर्से तक मंत्रिमंडल में विस्तार करने की छूट आलाकमान ने नहीं दी। नतीजा येदुरप्पा न तो अपने समर्थक विधायकों को मंत्री बना सके, न ही असंतुष्ट विधायकों को। बामुश्किल केंद्र से मंत्रिमंडल विस्तार की अनुमति मिली भी तो विधायकों में असंतोष ज्यादा गहरा गया। जो मंत्री बनाए गए वे भी मनमाफिक मंत्रालय न मिलने के चलते नाराज हो गए, जो मंत्री नहीं बन पाए, उन्होंने भी बगावती सुर अपना लिए। हालात इतने खराब हैं कि एक सप्ताह में तीन-तीन बार विभागों का बंटवारा बदल गया। अभी बेचारे येदुरप्पा इस संकट से बाहर निकलने की राह तलाश ही रहे थे कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के पुराने मुकदमों की सुनवाई दोबारा करने का आदेश दे डाला। येदुरप्पा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो उन्हें राहत मिली लेकिन पूरी नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे पर स्टे की उनकी मांग अस्वीकार कर दी है। राहत गिरफ्तारी पर रोक लगाने के चलते येदुरप्पा को मिली है।
कर्नाटक भाजपा के सूत्रों का हालांकि दावा है कि इन्हीं भ्रष्टाचार के मामलों को आगे रख जल्द ही भाजपा आलाकमान येदुरप्पा को हटा किसी युवा चेहरे के हाथों पार्टी और सरकार की कमान सौंपने का मन बना चुका है।