राजस्थान में इन दिनों चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा गहलोत-पायलट लड़ाई में हार जीत का है। सड़क से सत्ता के गलियारों तक इसी बात का शोर भी है, खानाफूसी भी। ज्यादातर इस पूरे विवाद में गहलोत का पलड़ा भारी बता रहे हैं। ऐसों का तर्क है कि राजस्थान के सीएम गहलोत न केवल अपनी सरकार बचा पाने में सफल रहे वरन् अपने धोर प्रतिद्वंदी सचिन पायलट से उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद और प्रदेश कांग्रेस की कमान भी छीन ली। इतना ही नहीं पायलट की कांग्रेस के निष्ठा को भी ध्वस्त करने में वे सफल रहे। लेकिन बहुत सारे राजनीतिक विशलेषक सचिन पायलट की वापसी को गहलोत की न केवल हार बलिक उनका भविष्य भी इस घरवापसी के चलते अंधकारमय करार दे रहे हैं। ऐसों का मानना है कि पायलट के पास गहलोत सरकार में उपमुख्यमंत्री रहते कोई अधिकार नहीं थे। गहलोत के आदेश चलते सरकारी विज्ञापनों में उनकी तस्वीर नहीं लगाई जाती है। सरकारी विमान उन्हें यात्रा के लिए नहीं दिया जाता था। हालात इतने विकट कि अपनी विधानसभा क्षेत्र के लिए पायलट नई योजनाएं तक ला पाने में असफल रहते थे। अट्टिाकारी उनकी सुनते नहीं थे। यहां तक की उन्हें अपना निजी स्टाफ भी मनमाफिक नहीं दिया गया था। अब लेकिन बगैर किसी पद के पायलट ज्यादा ताकतवर हो उभर सकते हैं। गहलोत की इच्छा विरूद्ध कांग्रेस आलाकमान का पायलट की वापसी कराना और प्रदेश प्रभारी अरविंद पाण्डेय को हटा अजय माकन को नया प्रभारी बनाना पायलट कैंप की जीत के तौर पर देखा जा रहा है। खबर है कि पायलट के एक विश्वस्त को उपमुख्यमंत्री भी बनाया जाएगा और स्वयं सचिन को केंद्रीय संगठन में महामंत्री का पद दिया जाएगा। ऐसे में हाल-फिलहाल यह तय कर पाना कठिन है कि कौन जीता, हारा कौन।