कर्नाटक में जिस पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है वह एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस है। उसके वोट में पांच फीसदी की कमी आई है और सीटें लगभग आधी रह गईं। पिछली बार पार्टी ने 37 सीट जीती थी और इस बार उसे सिर्फ 19 सीटें मिली हैं। सवाल उठ रहा है कि अब जेडीएस का क्या होगा? क्या कर्नाटक की एकमात्र मजबूत क्षेत्रीय पार्टी खत्म हो जाएगी और राज्य में दो पार्टी का सिस्टम बहाल हो जाएगा? गौरतलब है कि पूरे दक्षिण भारत में कर्नाटक इकलौता राज्य है, जहां भाजपा और कांग्रेस यानी दोनों राष्ट्रीय पार्टियां मजबूत हैं। इसके अलावा किसी राज्य में दोनों पार्टियां नहीं हैं। केरल में कांग्रेस है, जहां उसका मुकाबला वामपंथी मोर्चा से रहता है और बाकी राज्यों में प्रादेशिक पार्टियों का ही आपस में मुकाबला होता है। इसलिए देवगौड़ा की पार्टी को लेकर कर्नाटक में एक खास मतदाता समूह में क्षेत्रीयता की प्रबल भावना रहती है तो उसका खत्म होना आसान नहीं होगा। इसके बावजूद यह सवाल है कि इस विधानसभा में पार्टी का क्या होगा? क्या कांग्रेस बड़ा दिल दिखाते हुए जेडीएस को गठबंधन में लाने की कोशिश करेगी? पिछले लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां साथ मिल कर लड़ी थी और बुरी तरह हारी थी। बहरहाल कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि नतीजों से पहले देवगौड़ा से कांग्रेस आलाकमान की बात हुई थी और कहा गया था कि अगर कांग्रेस को 120 सीट भी आती है तब भी वह जेडीएस को साथ लेकर सरकार बनाएगी। अब देखना है कि कांग्रेस को 135 सीट आ गई है तो वह जेडीएस को सरकार में लेने की पहल करती है या नहीं।