केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों में बदलाव करके एक बड़े जनआंदोलन की नींव रखने का काम कर डाला। सरकार के सलाहकारों और रणनीतिकारों ने देश के अन्नदाता की ताकत को कमतर आंकने की भारी भूल कर डाली जिसका नतीजा सामने है। किसान आंदोलन के नेता इन तीनों कानूनों को वापस लेने की जिद्द पकड़ बैठे है। केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों संग कई दौर की बातचीत के बेनतीजा रहने से सरकार भारी दबाव में आ चुकी है। मामले की नजाकत को देर से समझने के बाद स्वयं केंद्रीय गृह मंत्री ने मोर्चा अब संभाल जरूर लिया है लेकिन किसान संगठनों संग उनकी वार्ता भी विफल रही है। एक तरफ सरकार लगातार किसान नेताओं को समझाने में जुटी है तो दूसरी तरह आंदोलनरत् किसान संगठनों में फूट डालने के भी जबरदस्त प्रयास किए जा रहे हैं। ‘फूट डालो’ नीति का पहला उदाहरण हर राज्य के किसान को अलग से बातचीत करने का न्यौता भेजना था जो विफल हो गया। फिर ‘स्वराज अभियान’ के योगेन्द्र यादव के किसान प्रतिनिधिमंडल में शामिल किए जाने का विरोध रहा। योगेन्द्र यादव ने इसके बाद खुद ही सरकारी बातचीत से किनारा कर लिया। अब खबर है कि भाजपा समर्थक किसान नेताओं को आगे कर केंद्र सरकार आंदोलन को कमजोर करने की नीति पर आगे बढ़ रही है। हरियाणा के एक किसान प्रतिनिधिमंडल संग कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की बातचीत को सोशल और गोदी मीडिया में जमकर परसा गया। खबर फैलाई गई कि किसानों को नए कानूनों के लाभ समझने में सरकार सफल हो रही है। दरअसल सरकार जल्द से जल्द इस आंदोलन को समाप्त करवाना चाह रही है। इस मामले को देख रहे मंत्रियों की तरह से कहा जा रहा है कि सरकार किसानों की मांक को मानते हुए तीनों कानूनों में संशोधन के लिए तैयार है। किसान लेकिन संशोधन के बजाए कानूनों की वापसी चाहते हैं। इस सबके बीच अमित शाह संग किसानों की वार्ता बेनतीजा रहने के बाद यकायक ही आज बुलाई गई कैबिनेट बैठक बाद सरकार के भेजे प्रस्ताव को किसान नेताओं ने सिरे से खारिज कर केंद्र सरकार और भाजपा का संकट गहरा दिया है।