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अगले साल होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा नेतृत्व द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे व कमल निशान पर लड़े जाने के संकेत दिए जाने के बाद राज्यों के क्षत्रपों में बेचैनी बढ़ गई है। खुद नेता तो कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन उनके खेमे मुखर होने लगे हैं। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक व मध्य प्रदेश जैसे प्रमुख राज्य भी शामिल हैं। खासकर राजस्थान, जहां पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खेमा और प्रदेश के मौजूदा नेतृत्व वाले खेमा के बीच तनातनी बनी रहती है। जयपुर में भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक के दौरान पार्टी ने इस बात को साफ करने की कोशिश की थी कि आने वाले चुनावों खासकर राजस्थान में प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा व कमल निशान ही सबसे ऊपर होगा। गौरतलब है कि राजस्थान में पार्टी में सबसे ज्यादा खेमेबाजी है। केंद्रीय नेतृत्व विभिन्न खेमों में समन्वय करने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक लगातार दबाब बनाए हुए हैं कि पार्टी को वसुंधरा राजे के चेहरे को सामने लाना चाहिए। मध्य प्रदेश व कर्नाटक में भाजपा की सरकारें हैं लेकिन वहां पर मुख्यमंत्रियों को लेकर ही अटकलबाजी चलती रहती है। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व बसवराज बोम्मई दोनों ही पार्टी को चुनाव जिता कर नहीं लाए थे और बाद में मुख्यमंत्री बने थे। ऐसे में पार्टी संगठन का कहना है कि आने वाले चुनाव में भी उनको चेहरा नहीं बनाना चाहिए बल्कि पीएम मोदी को आगे रखना चाहिए। जबकि इन मुख्यमंत्रियों के समर्थकों का कहना है कि हाल में उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा, मणिपुर में मौजूदा मुख्यमंत्रियों को ही सामने रखा गया तो इन राज्यों में क्या दिक्कत है। उत्तराखण्ड में तो खुद का चुनाव हारने के बाद भी पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया।

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