कभी भाजपा की फायर ब्रान्ड नेता रहीं उमा भारती लंबे अर्से से हाशिए पर हैं। राम मंदिर निर्माण आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहीं उमा ने एक समय में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी संग बैर मौल लिया था। अपने राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी को तो उन्होंने एक प्रेस काॅफ्रेंस के बीच हष्तक्षेप कर बहुत बुरा-भला कह डाला था। इसके बाद भले ही संघ की पैरवी चलते मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल में वे कैबिनेट मंत्री बनाई गई लेकिन उनका जलवा कम होता चला गया। अब लेकिन एक बार फिर से उमा भारती का नाम सत्ता के गलियारों में सुनाई देने लगा है। कारण है रामंदिर आट्टाारशिला कार्यक्रम जिसमें लालकृष्ण आडवाणी को उनकी उम्र के चलते आमंत्रित नहीं किया गया, मुरली मनोहर जोशी को पूरी तरह इग्नौर करा गया और उमा भारती को तो पूछने वाला कोई था ही नहीं। उमा भारती ने गजब का पलटवार किया। बिन बुलाए ही अयोट्टया पहुंच उन्होंने एलान करा कि वे पांच अगस्त का दिन सरयू के घाट में बैठ बिताएंगी। फिर क्या था प्रट्टाानमंत्री कार्यालय और राम मंदिर ट्रस्ट को डैमेज कंट्रोल के लिए झुकना पड़ा। उमा को दोनों ने ही कार्यक्रम में आने का निमंत्रण भेजा। जानकारों का दावा है कि उमा भारती के इस स्टैंड को पार्टी के उन प्रमुख नेताओं द्वारा खासा सराहा जा रहा है जो मोदी-शाह के युग में पूरी तरह अप्रसांगिक कर दिए गए हैं।