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तेलंगाना में इस बार विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष के आसार हैं। सत्तारूढ़ बीआरएस के लिए कांग्रेस के साथ भाजपा भी कड़ी चुनौती पेश कर सकती है। बीते लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने यहां पर काफी काम किया है और कुछ अहम सफलताओं के साथ वोट प्रतिशत भी बढ़ाया है। वहीं कांग्रेस को कई झटके लगे हैं। इन पांच वर्षों में एक बड़ा बदलाव सत्तारूढ़ दल के नाम में भी आया है और टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्र समिति) अब बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) बन गई है। ऐसे में कहा जा रहा है कि इस बार बीआरएस की राह आसान नहीं है। दरअसल, आंध्र प्रदेश से विभाजन के बाद अस्तित्व में आए तेलंगाना में बीआरएस का अभी तक एकतरफा राज चल रहा है। उसकी ताकत के सामने विरोधी कमजोर रहे हैं, लेकिन अब हालात वैसे नहीं हैं। आम चुनाव में भाजपा ने चार सीटें जीतकर अपनी जगह बनानी शुरू की थी। उसने दूसरे दलों के कई नेताओं को भी साथ जोड़ा है। पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की 119 सीटों में टीआरएस को 88, कांग्रेस को 19, एआईएमआईएम को सात, तेलुगुदेशम को दो, भाजपा को एक, फॉरवर्ड ब्लॉक को एक और निर्दलीय को एक सीट मिली थी। दल-बदल, इस्तीफों एवं उपचुनाव से वर्तमान में बीआरएस के 103, एआईएमआईएम के सात, कांग्रेस के पांच, भाजपा के दो एवं एक निर्दलीय विधायक हैं। तेलंगाना में इस समय बीआरएस काफी संभल कर चल रही है। उसने विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस से भी दूरी बनाकर रखी है। यही वजह है कि वह विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल नहीं हुई है। भाजपा से उसकी दूरी पहले से ही है। इसके पहले बीआरएस नेता मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने खुद ही देशभर में विभिन्न दलों के नेताओं से मुलाकात कर विपक्षी एकता की पहल की थी। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया है।

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