केंद्र सरकार और आंदोलनरत किसानों के बीच दसवें दौर की बातचीत के दौरान कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को गृहमंत्री अमित शाह का फोन आया। इस फोन के बाद कृषि मंत्री ने किसानों के सामने तीनों संशोधित कानूनों को 18 माह के लिए टालने का प्रस्ताव रखा। भाजपा सूत्रों का कहना है कि यह मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक है। वह हर कीमत पर बजट सत्र से पहले इस आंदोलन को समाप्त देखना चाह रही है। दरअसल, सरकार को डर है कि यदि किसान धरने पर डटे रहे तो पूरा बजट सत्र इस आंदोलन की भेंट चढ़ जाएगा। सरकार जानती है कि विपक्ष इस सत्र में भारी हंगाम खड़ा करेगा। सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दलों के पास किसान आंदोलन के साथ-साथ अर्नब गोस्वामी की लीक हुई वट्सअप चैट का दमदार मसला है तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार के पास इन दोनों ही मुद्दों की काट के नाम पर कुछ खास है नहीं। सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार हर कीमत पर किसान आंदोलन का हल संसद के बाहर निकालना चाह रही है। इसके लिए वह 18 महीनों तक नए कृषि कानूनों पर रोक लगाने को तैयार हैं। इतना ही नहीं यदि आवश्यकता पड़ी तो वह सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत अंडर टेकिंग देने पर भी राजी बताई जा रही है। समस्या लेकिन यह कि किसानों का केंद्र सरकार पर भरोसा पूरी तरह खत्म हो चला है। यही कारण है कि उन्होंने इस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया है और अब वे जोर-शोर से 26 जनवरी को अपनी गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर रैली की तैयारियों में जुट गए हैं। भाजपा सूत्रों का दावा है कि इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा राजनीतिक नुकसान कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर का हुआ है जिनकी काबिलियत पर अब भाजपा आलाकमान का भरोसा समाप्त हो चुका है।
…तो गृहमंत्री का फोन भी हुआ फेल
