कभी भाजपा आलाकमान की आंखों का तारा हुआ करते राम माधव इन दिनों सुर्खियों में मोहताज हो चले हैं। मोदी-शाह युग के पहले चार बरसों में दिल्ली के सत्ता गलियारों में राम माधव के नाम का डंका बजता था। अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष रहते उन्हें जम्मू-कश्मीर का प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था। कहा जाता है कि धारा 370 समाप्त करवाने और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश व लद्दाख को उससे अलग करने की रणनीति राम माधव ने ही तैयार की थी। फिर यकायक ही माधव को हाशिए में पटक दिया गया। अब न तो वे पार्टी के महासचिव हैं, न ही दिल्ली के सत्ता गलियारों में उनकी पहले जैसी धमक-हनक बची है। ऐसे कमजोर समय में माधव को मेघालय के राज्यपाल ने एक नई मुसीबत में डाल दिया है। गत् सप्ताह राजस्थान की यात्रा पर गए गर्वनर सत्यपाल मलिक ने यह कहकर सनसनी पैदा कर डाली कि जब वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे तब उन्हें तीन सौ करोड़ की रिश्वत देने का प्रयास किया गया था। उन्होंने कहा कि उन्हें मात्र मात्र दो फाइलों पर दस्तखत करने थे जिनमें से एक फाइल उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनी से संबंधित थी तो दूसरी फाइल को पास कराने में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रभारी और संघ से जुड़े एक नेता इच्छुक थे। उनका सीधा इशारा राम माधव की तरफ था। बेचारे माधव सुर्खियों में लौटे भी तो निगेटिव कारणों के चलते। अब वे कह रहे हैं कि गवर्नर के आरोप झूठे हैं और वे गर्वनर के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करेंगे।
हाशिए पर बैठे माधव का बढ़ा संकट
