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संघ संग तमिलनाडु का बढ़ता टकराव

तमिलनाडु की राजनीति का एक बड़ा सच यह है कि वहां की सरकारों का केंद्र के प्रतिनिधि अर्थात् राज्यपाल संग कभी भी सौहार्दपूर्ण रिश्ता नहीं रहा है। वर्तमान में राज्य की सत्ता पर काबिज डीएमके की पूर्व में दो बार सरकारें, 1976 और 1991 में इसी टकराव के चलते बर्खास्त कर दी गई थी। वर्तमान में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। केंद्र ने पूर्व आईपीएस आरएन रवि को तमिलनाडु का राज्यपाल सितंबर 2021 में नियुक्त किया। उनकी नियुक्ति के तुरंत बाद डीएमके सरकार में शामिल एक पार्टी ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक रहते रवि के कार्यकाल को निंदनीय बता डाला। तब से लेकर राज्य सरकार और राजभवन के रिश्ते दिन दूनी-रात चौगुनी रफ्तार से खराब होते जा रहे हैं। 25 अप्रैल के दिन जब राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों संग राजभवन में बैठक कर रहे थे, राज्य सरकार ने विधानसभा में दो कानून पारित कर राज्यपाल की विश्वविद्यालयों से जुड़ी शक्तियों को सीमित कर डाला। ‘नीट’ को लेकर भी राज्य सरकार और राज्यपाल में ठनी हुई है। तमिलनाडु विधानसभा अपने प्रदेश में ‘नीट’ परीक्षा लागू न करने संबंधी विधेयक ला चुकी है जिस पर राज्यपाल ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया है। संसद में डीएमके सांसद राज्यपाल की तुरंत वापसी को लेकर हंगामा तक खड़ा कर चुके हैं। स्टालिन सरकार एन. रवि से इसलिए भी खासी नाराज है क्योंकि गवर्नर उसके 52 विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं। इनमें वह बिल भी शामिल हैं जिसमें राजीव गांधी हत्याकांड के अभियुक्तों को रिहा करने की बात कही गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्यपाल संग टकराव तमिलनाडु की राजनीति का हिस्सा बन चुका है। डीएमके के पहले मुख्यमंत्री सी. अन्नादुरई ने तो राजभवन की उपयोगिता पर तंज कसते हुए यह तक कह डाला था कि किसी भी राज्य में राज्यपाल उतना ही आवश्यक है जितना किसी बकरे के लिए उसकी दाढ़ी जरूरी होती है।

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