बिहार के मुख्यमंत्री एनडीए गठबंधन में बने रहेंगे या फिर माकूल समय आने पर वे भाजपा संग अपनी पार्टी के गठबंधन को तोड़ अगले वर्ष प्रस्तावित विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे, को लेकर पटना से लेकर दिल्ली तक नाना प्रकार की अफवाहों का बाजार गर्म है। नीतीश कुमार के तौर तरीकों और उनकी बॉडी लैंग्वेज को समझने वालों का मानना है कि बिहारी बाबू भाजपा से पिंड़ छुड़ाने का मन बना चुके हैं। उन्हें इंतजार सही मौके और समय का है। जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन उन विपक्षी दलों ने तक कर डाला जिनके सुर-ताल भाजपा संग मैच नहीं होते। जद(यू) ने लेकिन सरकार के पक्ष में वोटिंग नहीं की। नीतीश के इस निर्णय से स्पष्ट संकेत मिलने लगे हैं कि वे कुछ अलग किस्म की खिचड़ी पकाने में लगे हैं। दरअसल लालू की राष्ट्रीय जनता दल इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। लालू जेल में हैं और उनका परिवार आपसी लड़ाई में व्यस्त है। ऐसे में नीतीश कुमार यादव-मुस्लिम समीकरण पर अपना फोकस बनाए हुए हैं। बिहार भाजपा नेता भी इस बार अपने दम पर चुनाव लड़ पार्टी की सरकार बिहार में बनाना चाहते हैं। बहुत संभव है कि हरियाणा समेत तीन राज्यों की विधानसभा चुनाव बाद नीतीश भाजपा संग गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दें।
नीतीश कुमार पर जारी सस्पेंस
