तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम ़के ़ स्टालिन एक अलग किस्म का राजनीतिक प्रयोग इन दिनों अपने राज्य में करते नजर आ रहे हैं। दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु की राजनीति में प्रतिशोध की भावना से काम करना एक आम बात रही है। खासकर जयललिता की अन्ना द्रमुक और करुणाकरन की द्रमुक सरकारों के दौरान प्रतिशोध की आंधी चला करती थी। स्टालिन लेकिन इस प्रकार की राजनीति से दूरी बनाकर चल रहे हैं। सत्ता संभालने के बाद इसका पहला उदाहरण तब देखने को मिला जब उन्होंने लाखों की तादात में स्कूली बच्चों के लिए खरीदे गए बस्तों को तत्काल बांटने के निर्देश दिए थे। इन बस्तों में जयललिता की तस्वीर छपी होने चलते माना जा रहा था कि नई सरकार इनको रद्दी में फेंक देगी। अब एक बार फिर स्टालिन के एक निर्णय ने उनकी उदार छवि में कई गुना इजाफा कर डाला है। दरअसल पिछले दिनों राज्य निकाय चुनावों में मिली प्रचंड जीत के बाद स्टालिन ने एलान किया था कि 94 मेयर, डिप्टी मेयर, 21 नगर पंचायतों के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पदों में गठबंधन में शामिल अन्य दलों के नेताओं की ताजपोशी कराई जाएगी। इतना ही नहीं, 138 नगर पालिकाओं के प्रमुख का पद भी उन्होंने गठबंधन दलों के नेताओं को देने का एलान किया था लेकिन उनके निर्देशों को दरकिनार कर कई नगर निगमों, नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं में ऐसे पदों पर डीएमके के नेता काबिज हो गए हैं। इससे नाराज स्टालिन ने ऐसे नेताओं को तत्काल पद छोड़ने का फरमान जारी करते हुए कह डाला कि ‘पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते मैं अपने साथियों की हरकत पर शर्मिंदा हूं।’ उनके इस बयान के बाद जहां सहयोगी दलों के नेता स्टालिन के गुणगान करते नहीं अघा रहे हैं तो डीएमके के नेताओं में भारी असंतोष की खबरें आ रही है।
राजनीतिक ईमानदारी में अव्वल स्टालिन
