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पहले विधानसभा और फिर लोकसभा के चुनाव में भाजपा के हाथों मिली करारी शिकस्त ने उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों को निराशा के गहरे गर्त में धकेल दिया था। 1990 के बाद से राज्य में विलुप्त प्रजाति बन चुकी कांग्रेस के साथ-साथ सपा और बसपा में भी लकवा-सा मार गया नजर आ रहा है। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती तो इतनी हताश हैं कि अपने कोर वोट बैंक को भीम आर्मी के पाले में जाने से रोकने तक का प्रयास नहीं करती दिख रही हैं। कांग्रेस में जरूर थोड़ी-बहुत जान प्रियंका गांधी के चलते पड़ी है लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद प्रियंका पार्टी के आईसीयू से बाहर लाने में विफल रही हैं। केवल समाजवादी पार्टी की साइकिल एक बार फिर से ट्रैक पर चलती नजर आ रही है। पिछले कुछ अर्से से कांग्रेस और बसपा नेताओं ने सपा का दामन थामना शुरू कर दिया है। भाजपा से नाराज चल रहे नेता भी अब अपना भविष्य सपा में तलाशने में जुटे बताए जा रहे हैं। राहुल गांधी की करीबी कांग्रेसी नेता और उन्नाव से दो बार सांसद रह चुकीं अनु टंडन ने गत् सप्ताह कांग्रेस से नाता तोड़ सपा ज्वाइन कर ली। उनके इस कदम को 2022 में राज्य में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों के साथ-साथ केंद्र की राजनीति को कॉरपोरेट घरानों के बदलते मिजाज से जोड़कर देखा जा रहा है।

अनु टंडन रिलायंस समूह के मालिक अंबानी परिवार की बेहद करीबी हैं। उनका सपा में जाते ही नाना प्रकार की थ्यौरी जन्म ले चुकी है। टंडन से पहले पांच बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे वरिष्ठ नेता सलीम शेरवानी भी पार्टी छोड़ सपा में शामिल हो चुके हैं। बसपा के कई बड़े नेता पिछले दिनों सपाई हो चुके हैं। इनमें पूर्व सांसद त्रिभुवन दास, केके सचान, मिथिलेश कटियार सरीखों का नाम प्रमुख है। गत् सप्ताह ही बसपा विधायक दल के 18 सदस्यों में से सात ने मायावती के खिलाफ खुलेआम बगावत कर डाली। इन सातों ने अखिलेश यादव से मुलाकात कर स्पष्ट कर दिया कि वे कहां खड़े हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक समय में विश्वस्त रहे हिंदु युवा वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह भी सपा में जा चुके हैं। चर्चा जोरों पर है कि योगी कार्यशैली से नाराज कई बड़े भाजपा नेता इन दिनों सपा प्रमुख के साथ तालमेल बढ़ा रहे हैं। खबर यह भी है कि भतीजे अखिलेश से नाराज पार्टी छोड़ बैठे सपा नेता शिवपाले भी रि-एंट्री का दरवाजा खोज रहे हैं।

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