उत्तराखण्ड में ‘आया राम-गया राम’ राजनीति के प्रतीक बन चुके राज्य सरकार में मंत्री हरक सिंह रावत एक बार फिर से पाला बदलने के फेर में बताए जा रहे हैं। 1991 में पहली बार विधायक बने हरक सिंह तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने थे। 1996 में उन्होंने भाजपा छोड़ जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गए। 1997 में वे दोबारा भाजपा संग हो लिए। कल्याण सिंह ने उन्हें उत्तर प्रदेश खादी ग्राम उद्योग बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया था। हरक सिंह का मन लेकिन भाजपा में रमा नहीं और वे कांग्रेस में शामिल हो गए। 2002 में वे नवगठित उत्तराखण्ड की पहली निर्वाचित विधानसभा के सदस्य कांग्रेस के टिकट पर बने। उन्हें तिवारी मंत्री मण्डल में चार विभागों का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 2016 में वे एक बार फिर से पाला बदलने को मचल उठे। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत से नाराज हो पार्टी छोड़ भाजपा की शरण ले ली। वर्तमान में त्रिवेंद्र सरकार में मंत्री हरक सिंह को लेकर देहरादून के सत्ता गलियारों में भारी चर्चा है कि एक बार फिर वे पाला बदलने का मन बना रहे हैं। दरअसल त्रिवेंद्र सरकार प्रचंड बहुमत के साथ सत्तारूढ़ है। मुख्यमंत्रियों को दबाव में लेकर काम करने, करवाने के आदि हो चुके हरक सिंह की दाल इस सरकार में गल नहीं रही है। इतना ही मानो काफी नहीं था, त्रिवेंद्र सरकार ने अपने ही श्रम मंत्री की अध्यक्षता वाले श्रम बोर्ड में भारी भ्रष्टाचार की जान के आदेश दे हरक सिंह की जांच सांसत में डाल दी है। त्रिवेंद्र रावत ने हरक सिंह को राज्य श्रमिक बोर्ड के अध्यक्ष पद से भी हटा डाला है। इस बोर्ड में शामिल हरक सिंह के करीबी दो अफसर भी कार्यमुक्त कर दिए गए हैं। चर्चाओं और अफवाहों का बाजार गर्म है कि राज्य सरकार चुनावों से ठीक पहले भ्रष्टाचार पर वार कर नाम पर हरक सिंह रावत को मंत्री पद से हटा सकती है। राज्य सरकार और भाजपा में हाशिए पर डाल दिए गए हरक सिंह रावत इन दिनों कांग्रेस के एक बड़े नेता के संपर्क में बताए जा रहे हैं। खबर है कि इन कांग्रेसी नेता के संपर्क में रावत ही नहीं बल्कि दो अन्य बड़े नेता भी शामिल हैं जिन्होंने 2016 में बगावत कर भाजपा का दामन थाम लिया था।