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पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष इन दिनों खासे डिप्रेशन में बताए जा रहे हैं। पंजाब प्रदेश की कमान संभालने के साथ ही सिद्धू ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को हराने की मुहिम छेड़ डाली थी। उन्हें पूरा भरोसा था कि चुनावी वर्ष में पार्टी आलाकमान कैप्टन के स्थान पर उन्हें ही सीएम बनाने पर मजबूर हो जाएगा। ऐसा लेकिन हुआ नहीं। कांग्रेस ने एक दलित को सीएम बना न केवल भाजपा बल्कि सिद्धू को भी सकते में डाल दिया। इससे बौखलाए सिद्धू ने चन्नी को टारगेट करना शुरू करा। चन्नी लेकिन दबाव में आए नहीं। न तो सिद्धू के कहने पर राज्य का डीजीपी उन्होंने हराना, न ही एडवोकेट जनरल को। यहां तक की सिद्धू ने प्रदेश कांग्रेस की कमान छोड़ने का ऐलान कर डाला लेकिन चन्नी झुके नहीं। खबर गर्म है कि इस सबके चलते सिद्धू गहरे अवसाद में है। एक तरफ दिन-रात काम करने वाले सीएम की छवि बनाने में जुटे चन्नी की लोकप्रियता आसमान छूने लगी है तो दूसरी तरफ सिद्धू के चक्कर काटने वाले विधायक और नेता भी अपने उनसे कन्नी काटने लगे हैं। ऐसे में सिद्धू के सामने अब कोई विकल्प बचा नहीं है। यदि में पार्टी छोड़ते हैं तो कहां जाएं का संकट खड़ा हो जाएगा और यदि पार्टी में बने रहते हैं तो उन्हें चन्नी का नेतृत्व स्वीकारना होगा। बेचारे सिद्धू न घर के रहे, न घाट के।

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