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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अब मात्र कुछ माह दूर हैं। ऐसे में प्रदेश का राजनीतिक तापमान प्रतिदिन के हिसाब से चढ़ने लगा है। एक तरफ एंटी इन्कमबेंसी से घबराई भाजपा हर कीमत पर अपनी सत्ता राज्य में बनाए रखने को आतुर है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव भाजपा के कमल को सपा की साइकिल से रौंदने की फुल प्रूफ रणनीति बनाने में जुटे हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लेकर मुलायम सिंह यादव के गढ़ इटावा तक इन दिनों खासी चर्चा है कि चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश अपने मत और मनभेद दूर कर पाने में सफल हो चुके हैं। खबर गर्म है कि शिवपाल अपनी लड़खड़ाती हुई पार्टी का विलय सपा में करने को लगभग राजी हो चुके हैं। सपा और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन लेकिन सीटों के बंटवारे पर रजामंदी न होने के चलते अभी अधर में लटका हुआ है। सूत्रों की मानें तो सपा प्रमुख अखिलेश और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी अब आपस में बैठ इस मुद्दे को सुलझाने वाले हैं। सपा सुप्रीमो अखिलेश भाजपा को चुनौती देने की हैसियत रखने वाले छोटे से छोटे राजनीतिक दल संग भी वार्ता करने में जुटे हैं। चर्चा है कि शीघ्र ही सुहेलदेव समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर संग सपा सीटों का बंटवारा फाइनल करने जा रही है। खबर यह भी पुख्ता है कि आम आदमी पार्टी संग भी सपा का गठजोड़ लगभग तय हो चुका है। आप नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह इस विषय पर अखिलेश यादव संग बातचीत कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में एक बड़ी खबर किसी ऐसे ब्राह्मण चेहरे के सपा में शामिल होने की भी है जिसको राष्ट्रीय स्तर पर जनता पहचानती है। साथ ही कभी बसपा का हिस्सा रहे एक दलित नेता को लेकर भी कयासबाजियों का दौर चालू है। वर्तमान में योगी सरकार में मंत्री ये नेता भी सपा में एंट्री लेने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि शिवपाल की सपा में वापसी के बाद ही अखिलेश आम आदमी पार्टी, सुहेलदेव समाज पार्टी, अपना दल (कृष्णा पटेल) आदि संग गठबंधन का ऐलान करेंगे। सपा प्रमुख की सक्रियता से भाजपा खेमे में भारी खलबली का माहौल बताया जा रहा है।

 

अधर में चिराग, अब बंगला भी खतरे में

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