मोदी मंत्रिमंडल में गत् माह हुए विस्तार से पहले खासी चर्चा थी कि शिवसेना एक बार फिर से एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनने जा रही है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की 8 जून को पीएम मोदी संग मुलाकात ने इन चर्चाओं को हवा देने का काम किया था। ठाकरे और संघ के बड़े नेताओं का आपस में मिलना, शिवसेना सांसद संजय राउत का पीएम मोदी की कार्यशैली को सराहना और सेना के एक विधायक द्वारा उद्धव को पत्र लिखकर भाजपा संग गठबंधन की खुली पैरोकारी करना स्पष्ट संकेत थे कि भीतरखाने कुछ न कुछ चल रहा है ऐसा लेकिन हो नहीं पाया। जानकारों का दावा है कि इसकी एक बड़ी वजह शिवसेना के पूर्व नेता नारायण राणे रहे। सेना से बगावत कर भाजपा में शामिल हो चुके राणे से उद्धव ठाकरे व्यक्तिगत तौर पर खफा बताए जाते हैं। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के अति विश्वस्त राणे को बाल ठाकरे ने 1999 में मनोहर जोशी को हटा राज्य का सीएम बनाया था। मुख्यमंत्री बनते ही राणे के तेवर बदल गए। उन्होंने सेना से इत्तर अपना राजनीतिक वजूद बनाना शुरू कर दिया था। 2005 में उन्हें शिवसेना से निकाल दिया गया। इसके बाद राणे ठाकरे परिवार के खिलाफ खुली बगावत पर उतर आए। कांग्रेस में शामिल हो पूर्व सीएम होने के बावजूद उन्होंने विलासराव देशमुख सरकार में मंत्री बनना स्वीकार नई परंपरा की नींव डाल दी। बाद में उन्हें कांग्रेस से भी निष्कासित कर दिया गया था। सेना सूत्रों की मानें तो ठाकरे चाहते थे कि भाजपा आलाकमान राणे को केंद्रीय मंत्री न बनाए। दूसरी तरफ 2019 में भाजपा में शामिल हुए राणे को गृहमंत्री अमित शाह के खासे करीबी होने के चलते भाजपा मंत्री बनाने पर अड़ी थी। नतीजा महाराष्ट्र में भाजपा-सेना गठबंधन दोबारा बनते-बनते रह गया और राणे को मोदी मंत्रिमंडल में भारी-भरकम मंत्रालय दे दिया गया।
सेना-भाजपा और राणे
