उत्तराखण्ड में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का वादा कर सत्ताशीन हुई थी। सरकार ने भ्रष्टाचार पर शुरुआती तेवर कड़े भी किए थे। लेकिन सीएम त्रिवेंद्र को पहला झटका एनएच-74 के चौड़ीकरण में हुए खरबों के घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की अपनी घोषणा को वापस लेने के चलते लगा। इससे उनकी भारी किरकिरी भी हुई। इसके बाद सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर प्रश्न-चिन्ह लगाने का दौर शुरू हो गया। ताजा मामला आपदाग्रस्त जनपद के जिलाधिकारी आशीष जोशी के ट्रांसफर से जुड़ा है। जोशी बेहद कर्मठ, मीडिया से दूरी रखने वाले और सदैव फील्ड में रह मोर्चा संभालने वाले अफसर माने जाते हैं। खबर हैं कि पिछले दिनों उन पर खनन से जुड़ी एक फाइल को क्लीयर करने का भारी दबाव था। सरकार की रिवर फ्रंट नीति की आड़ में इस फाइल को डीएम से स्वीकृत करने को कहा गया लेकिन जोशी ने फाइल रिजेक्ट कर दी। इससे नाराज हो खनन की पावरफुल लॉबी ने डीएम का तत्काल ट्रांसफर करवा दिया। जनपद चमोली से लेकर देहरादून के सत्ता गलियारों में एक ईमानदार अफसर की इस प्रकार विदाई को लेकर नाना प्रकार की चर्चाएं हैं जो सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर सवाल खड़ा कर रही हैं।
डीएम के ट्रांसफर का रहस्य
