राजस्थान के चुनावी संग्राम में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे के एक बयान ने हलचल पैदा कर दी है। झालावाड़ की एक रैली में उन्होंने कहा ‘मेरे बेटे सांसद दुष्यंत सिंह की बात सुनने के बाद मुझे लगता है कि मुझे संन्यास ले लेना चाहिए। क्योंकि आप सभी ने उसे इतनी अच्छी तरह प्रशिक्षित किया है कि मुझे उसे आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं है। सभी विधायक यहां हैं और मुझे लगता है कि उन पर नजर रखने की कोई जरूरत नहीं है। वे अपने दम पर लोगों के लिए काम करेंगे।’ अब इस बयान के मायने निकाले जा रहे हैं। सवाल यह कि क्या वसंुधरा अब संन्यास लेने जा रही हैं या अपनी सीएम उम्मीदवारी को मजबूत करने के लिए इमोशनल कार्ड खेला है? राजनीतिक पंडित इसे राजे का एक मजबूत सियासी पैंतरा बता रहे हैं। क्योंकि तीसरी लिस्ट में उनके कई करीबियों को टिकट मिल चुके हैं। जबकि यह भाषण बीजेपी की लिस्ट जारी होने के अगले ही दिन आया है। ऐसे में साफ तौर पर वह भाषण के जरिए समर्थकों को खास मैसेज दे रही हैं। अब तक घोषित किए गए टिकटों को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि इनमें 50 से ज्यादा सीटों पर पूर्व सीएम के करीबियों को मौका मिला है। यानी वसुंधरा राजे की बात को हाईकमान ने तवज्जो दी है। यही नहीं कैलाश मेघवाल समेत कई ऐसे नेता भी हैं, जो बीजेपी से टिकट नहीं मिलने के बावजूद भी निर्दलीय चुनाव जीतने का दमखम रखते हैं। ऐसे में वसुंधरा गुट के विधायकों की संख्या पार्टी के भीतर और बाहर, दोनों तरफ निर्णायक हो सकती है। ऐसे में उनके रिटायरमेंट वाले बयान को उनके संन्यास लेने के ऐलान से नहीं देखा जा सकता है। ये साफ तौर पर शक्ति प्रदर्शन की एक नई कोशिश है। वहीं इसे पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की राजनीति के उदाहरण से भी देखा जा सकता है, क्योंकि जब उन्होंने लगातार सीएम पद की मांग की या यूं कहें कि वह अपनी जिद पर अड़े रहे। दूसरी ओर वसुंधरारा ने खुद को सीएम दावेदार से अलग रिटायर होने की बात कह दी है। जानकारों की मानें तो ऐसा करके वो अपनी इच्छा को समर्थकों पर छोड़ने की कोशिश कर रही हैं, क्योंकि ऐसा बोलकर वो समर्थकों से भावनात्मक अपील कर उनमें एक नया जोश भरेंगी और साथ ही खुद को जिद्दी नेता के तौर पर पेश भी करने से बचेंगी जो साफ तौर पर उनकी राजनीतिक पकड़ मजबूत होने की दिशा में कदम हो सकता है।
संन्यास या इमोशनल कार्ड?
