कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पंजाब प्रांत के प्रभारी हरीश रावत इन दिनों कई मोर्चों पर एक साथ युद्धरत हैं। उत्तराखण्ड कांग्रेस के एक धड़े के लाख प्रयास करने के बाद भी अंततः पार्टी आलाकमान ने अगले वर्ष होने जा रहे राज्य विधानसभा चुनावों की कमान रावत के हाथों में सौंप तो दी लेकिन रावत के कट्टर विरोधी पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बना हरीश रावत के लिए घर के भीतर ही संकट पैदा कर डाला है। हालांकि प्रदेश कांग्रेस की कमान रावत के अति करीबी गणेश गोदियाल को जरूर मिल गई है लेकिन उनके साथ चार कार्यकारी अध्यक्षों में से तीन रावत विरोधी गुट के बना डाले हैं। ऐसे में टीम रावत खुद को अपमानित महसूस तो कर ही रही है। टिकट वितरण को लेकर भी भारी घमासान की उसे आशंका सता रही है। हर कीमत पर कांग्रेस की सरकार वापसी के लिए जद्दोजहद कर रहे रावत का एक अन्य संकट पंजाब का प्रभार है।
नवजोत सिंह सिद्दू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए कैप्टन अमेरिंदर सिंह को राजी करवाने में रावत की सबसे अहम् भूमिका रही। इस कार्य को अंजाम देने के तुरंत बाद ही पार्टी आलाकमान ने रावत को उत्तराखण्ड चुनाव की कमान सौंप यह संकेत दिया था कि अब उन्हें पंजाब प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाएगा। सूत्रों की मानें तो स्वयं रावत कई मर्तबा कांग्रेस नेतृत्व से इस बाबत अनुरोध कर चुके हैं लेकिन पंजाब कांग्रेस के भीतर कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्दू गुट की आपसी रार को विद् इन लिमिट रखने की क्षमता रखने वाला कोई दूसरा नेता पार्टी आलाकमान को सूझ नहीं रहा है। खबर गर्म है कि पिछले दिनों दिल्ली पहुंचे रावत को आलाकमान ने पंजाब में मंत्रिमंडल विस्तार का मुद्दा सुलझाने और जिला स्तरीय कांग्रेस कमेटियों के गठन होने तक प्रभारी बने रहने की बात कह डाली है। बेचारे रावत अब अपना आधा समय उत्तराखण्ड कांग्रेस की गुटबाजी को थामने तो बचा समय पंजाब के मामलों को सलटाने में लगा रहे हैं। हालांकि रावत के लिए राहत भरी एक खबर भी है। सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी ने रावत को आश्वस्त किया है कि यदि चार कार्यकारी अध्यक्षों में से किसी एक के चलते रावत की समस्या में इजाफा होता है तो ऐसे काय्र्रकारी अध्यक्ष को हटा दिया जाएगा।