‘अमेठी की डंका, प्रियंका-प्रियंका’ का शोर एक समय में खासा सुनाई देता था। गांधी परिवार के करीबी नेता ‘प्रियंका लाओ-कांग्रेस बचाओ’ का भी नारा खूब लगाया करते थे। उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनने के बाद लेकिन प्रियंका की नेतृत्व क्षमता को लेकर पार्टी भीतर ही सवाल उठने लगे हैं। कई बड़े कांग्रेसी नेता दबी जुबान से प्रियंका की कार्यशैली को लेकर असंतोष जताते इन दिनों 24 अकबर रोड में सुने जा रहे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि बगैर जमीनी हकीकत जाने प्रियंका गांधी ने जिद्द कर बिहार चुनाव में राजद से 70 सीटें तो हासिल कर ली, लेकिन इसमें से अधिकांश ऐसी सीटें थी जहां कांग्रेस का नाम लेने वाला तक कोई नहीं था। प्रियंका की सलाह पर ही कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल के बजाए दिल्ली से पूर्व विधायक देवेंद्र यादव को तेजस्वी यादव संग सीटों की बात करने का जिम्मा सौंपा गया था। देवेंद्र यादव ने तमाम ऐसी सीटों के लिए हामी भर ली जिनमें कांग्रेस का वजूद तक नहीं था। नतीजा पार्टी मात्र 17 सीटों पर जीत दर्ज करा पाई। प्रियंका द्वारा पंजाब में भी बेवजह कैप्टन अमरिंदर सिंह को कमजोर करने और नवजोत सिंह सिद्दू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात भी ये नेता कर रहे हैं। खबर गर्म है कि टीम प्रियंका जानबूझ कर टीम राहुल गांधी संग टकराव की स्थितियां पैदा करने का काम करने लगी हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि उत्तराखण्ड में देवेंद्र यादव को प्रभारी बनाने का निर्णय भी प्रियंका का है। वे भूल गईं कि मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में राज्य आंदोलनकारियों पर हुए जुल्म के चलते यादवों के प्रति उत्तराखण्ड में भारी नाराजगी आज तक बनी हुई है। देवेंद्र यादव बिहार के बाद अब उत्तराखण्ड में भी हरीश रावत समर्थकों को नाराज कर पार्टी का भट्टा बैठने में जुटे बताए जा रहे हैं। चर्चा है कि कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी प्रियंका गांधी को लेकर शीघ्र ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी संग बैठक करने की योजना बना रहे हैं।
ममता का बढ़ता कद
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