पिछले पंद्रह वर्षों से बिहार में राज कर रहे नीतीश कुमार इन दिनों गहरे विषाद में बताए जा रहे हैं। सत्ता में हर कीमत पर बने रहने की कला के पारंगत नीतीश को शायद अहसास हो चला है कि वर्ष के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की हार निश्चित है।
बिहारी बाबू ने इसी के चलते भाजपा से दूरी बनाने के संकेत देने शुरू कर दिए हैं, लेकिन प्रशांत किशोर ने उनकी नींद ‘बात बिहार की’ मुहिम चलते उड़ा डाली है। विपक्षी दल भी नौ माह बाद होने जा रहे चुनाव के लिए अपनी कमर कसते नजर आने लगे हैं।
एनडीए के पूर्व सहयोगी उपेन्द्र कुशवाहा, जतिन माझी और मुकेश साहनी समेत सभी नीतीश विरोधियों ने बैठकों का दौर शुरू कर दिया है। खबर है कि विपक्षी दल इस बार नीतीश के मुकाबिल सवर्ण, मुस्लिम और बैकवर्ड का गठबंधन बनाने में जुटे हैं।
राजद ने पहल करते हुए ठाकुर नेता जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना डाला है। नतीश से बेहद खफा उनके पुराने सखा शरद यादव ने भी पटना में इन दिनों डेरा डाल दिया है।
खबर है कि प्रशांत किशोर संग नीतीश विरोधियों की मैराथन बैठकें शुरू हो चुकी हैं। दूसरी तरफ प्रदेश भाजपा का एक बड़ा वर्ग इस बार नीतीश कुमार को सीएम चेहरा न बनाने की डिमांड कर रहा है।
इन नेताओं का मानना है कि भले ही बिहार में नीतीश भाजपा के लिए अपरिहार्य हैं, लेकिन पार्टी उनके चलते अपना विस्तार राज्य में नहीं कर पा रही है। इन सबके चलते नीतीश कुमार खासे परेशान बताए जा रहे हैं।