भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो राजनीति में आकर बड़ी भूल कर बैठे हैं। हिंदी, बंगाली और उड़िया के मशहूर गायक रहे सुप्रियो ने 2014 में राजनीति में प्रवेश किया था। वे भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचे और नरेन्द्र मोदी के पहले मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री बन बैठे। भाजपा ने उनकी लोकप्रियता को पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ खासा इस्तेमाल किया। 2019 के आम चुनाव में वे दोबारा सांसद बने। उन्हें एक बार फिर से मोदी मंत्रिमंडल में जगह भी मिली। उन पर कई बार पश्चिम बंगाल में तृणमूल समर्थकों द्वारा हमला भी किया गया लेकिन मोदी भक्ति में तल्लीन सुप्रियो घबराए नहीं। वे 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों तक ममता बनर्जी की खिलाफत का झण्डा बुलंद किए रहे। इन चुनावों में भाजपा ने उन्हें विधानसभा का टिकट दिया। यहीं से उनका ‘डाउनफॉल’ शुरू हो गया। वे तृणमूल प्रत्याशी के हाथों करारी मात खा गए। इस हार से उन्हें गंभीर सदमा पहुंचा। इतना गंभीर कि उन्होंने राजनीति से ही संन्यास लेने का ऐलान कर डाला। सितंबर, 2021 में लेकिन उनका ‘हृदय परिवर्तन’ हो गया। वे वापस राजनीति में तो लौट आए लेकिन दलबदल करते हुए इस बार ‘ममतामय’ होकर। भाजपा उनके निर्णय से हैरान हो उठी। तृणमूल में सुप्रियो की इंट्री बाद कहा जा रहा था कि उन्हें पार्टी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने जा रही है। यह भी चर्चा रही कि वे
कोलकाता नगर निगम का चुनाव लड़ मेयर बनने जा रहे हैं। ऐसा कुछ लेकिन हुआ नहीं। तृणमूल ने उन्हें टिकट न देकर वर्तमान मेयर फिरहाद हाकिम के मेयर बने रहने की तरफ इशारा कर दिया है। बेचारे सुप्रियो इन दिनों पार्टी प्रत्याशियों का प्रचार करते घूम रहे हैं। जानकारों की मानें तो भाजपा में रहते उनके द्वारा ममता बनर्जी के खिलाफ किया गया ‘विषवमन’ उनकी राह का रोड़ा बना हुआ है। ममता ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी के कहने पर उनको पार्टी में तो शामिल करा लिया लेकिन इतनी जल्दी उन्हें किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने के लिए दीदी तैयार नहीं बताई जा रही हैं। बेचारे सुप्रियो न घर के रहे, न घाट के।
बेचारे बाबुल, ना घर के ना ….
